रविवार, 7 जुलाई 2019

हजारों वर्ष पुराना पृथ्वी का मानचित्र विज्ञान:--- 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🌻🍁🍁🌻। आचार्य डा.अजय दीक्षित 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

हजारों वर्ष पुराना पृथ्वी का मानचित्र विज्ञान:---
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🌻🍁🍁🌻।                आचार्य डा.अजय दीक्षित
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साधारणतया देखने पर प्रतीत होता है पीपल का पत्र और खरगोश….
किन्तु ये साधारण नहीं अपितु असाधारण विज्ञान है…
जो हमारे ऋषियों के पास था….


आज से पाँच हजार वर्ष से पूर्व ही महर्षि_वेदव्यास जी ने सम्पूर्ण पृथ्वी का भौगोलिक मानचित्र पूरी दुनिया के समक्ष रख दिया…


महाभारत मे कहा “यह पृथ्वी चन्द्रमण्डल से देखने पर दो अंशों मे खरगोश जैसी और दो अंशों मे पिप्पल (पत्तों) के रूप मे दिखाई देती है…”


महाभारत के भीष्म_पर्व मे वेदव्यास जी कहते हैं…


” सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन |
परिमण्डलो महाराज द्वीपोअसौ चक्रसंस्थित: ||
यथा हि पुरुष: पश्येदादर्शे मुखमात्मन:
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान ||


अर्थात् – हे #कुरुनन्दन सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भांति गोलाकार स्थित है….
जैसे पुरुष दर्पण मे अपना मुख देखता है उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल से दिखाई देता है..


इसके दो अंशों मे पिप्पल और दो अंशों मे महान खरगोश दिखाई देता है…


महाभारत मे कहे गये इस मानचित्र को ११वीं सदी मे रामानुजाचार्य जी ने पढ़ने के पश्चात बनाया था….


हमारे ऋषि सम्पूर्ण सृष्टि विज्ञान से अवगत थे…
इसमे कोई संशय नहीं….


किन्तु हमने ऋषियों और वेदों को समझना छोड़कर पश्चिम की ओर भागने लगे….
जो कि समस्त विज्ञान #भारत से ही लेकर
सबको अपनी खोज बता रहे है….


हमें झूठ पढ़ाया जाता है कि ग्रहों की गति का पता सबसे पहले #कैपलर ने आज से ५५० वर्ष पूर्व बताया, ..गुरूत्व शक्ति का पता न्यूटन ने सबसे पहले बताया…


तो फिर महर्षि कणाद ने वेद मन्त्रों से लेकर ईसा के जन्म से हजारों वर्ष पहले संयोगाभावे गुरूत्वात्पतनम् ओर संस्काराभावे गुरूत्वात्पतनम्! कब बताया???


वैशैषिक दर्शन में तब से लिख रखा है जब इन तथाकथित सभ्य देशों का अस्तित्व भी न था।


हमने तब यह सब आधुनिक आविष्कार क्यों न किये???


क्योंकि ऋषियों को मालूम था परिणाम,और आवश्यकता नहीं थी इन प्रकृति विनाशकारी विज्ञान साधनों की,


जो उन्हें आवश्यक होता था वह प्रकृति रक्षा के साथ ही आविष्कार कर लेते थे।


तेन त्यक्तेन भुंजीथा.. विलासिता नहीं चाहिए थी
शान्ति आनन्द #निर्भयता व स्वतन्त्रता लक्ष्य था उनका..भोगवाद नहीं…


आज आवश्यकता है पुनः अपने महापुरुषों के विज्ञान को समझने की और वेदों की ओर लौटने की ..


फिर सम्पूर्ण विज्ञान व अध्यात्म के रहस्य हमारे पास होंगे….
और भारत बनेगा पुनः महा शक्तिशाली,परम वैभवशाली विश्वगुरू…
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🌻🌻जय सियाराम जय जय हनुमान


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