शनि दशा के फल
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आचार्य डा.अजय दीक्षित
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शनि की दशा का सामान्य फल कहा गया है कि इस दशा में बकरा, ऊँट, गधा, पक्षी, वृद्ध महिला, धन व नीचकुल के अधिपत्य का लाभ होता है. इस दशा में मनुष्यों के द्वारा ही व्यक्ति आतंक व दारिद्रय के कष्ट से दु:खी रहता है. बुद्धि का नाश हो जाता है तथा गोपनीय आचरण से मर्माहत हो जाता है. दुष्ट व्यक्तियों के द्वारा इसके धन का नाश हो जाता है. घर-परिवार में किसी ना किसी को रोग घेरे रहता है जिससे व्यक्ति का मन सदा खिन्न रहता है. मित्रादि शत्रु बन जाते हैं, कुल में विवाद रहता है और व्यक्ति की दीन अवस्था रहती है. इस दशा में विदेश यात्रा होती है, धन तथा कुल की हानि भी देखी गई है. विपदा किसी ना किसी रुप में आती रहती है. मन व्याकुल रहता है और अशुभ फल मिलने की संभावना ज्यादा रहती है.
शनि के निर्बल होने पर इस दशा में व्यक्ति निद्रा, आलस्य, कफ, वायु तथा पित्त संबंधी रोगों से परेशान रह सकता है. दाद, खुजली तथा हैजा जैसे रोगों से ग्रस्त हो सकता है. इस दशा में व्यक्ति किसी वृद्धा की इच्छा मन में रख सकता है.
अगर शनि शुभ अवस्था में जन्म कुंडली में स्थित है तब व्यक्ति प्रतापी होता है, लक्ष्मी संपन्न होता है, ग्रामादि का अधिपति होता है, देवताओं व ब्राह्मणों में आस्था रहती है. व्यक्ति स्वर्ण, वस्त्र, हाथी-घोड़ों से सुखी रहता है. व्यक्ति काव्य कला जैसे क्रिया-कलापों में अत्यधिक निपुण होता है. इस दशा में जातक सुशील तथा कीर्तिवान होता है. जीवन में जो प्राप्तियाँ पहले से मिली हुई हैं, इस दशा में उनसे और सुखी होता है. इस दशा में जातक अपने कुल में श्रेष्ठ रहता है, व्यक्ति अत्यधिक विनम्र होता है, देवताओं तथा ब्राह्मणों की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहता है.
शनि की दशा में व्यक्ति बुद्धिमान, दानी, सुशील और अनेकों कौशल से युक्त होता है. देवताओं तथा ब्राह्मणों के लिए गृह आदि का निर्माण भी व्यक्ति इस दशा में करवाता है.
परमोच्च शनि का दशा फल
यदि जन्म कुंडली में शनि अपनी अति उच्च राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति किसी ग्राम अथवा सभा मण्डल का आधिपत्य प्राप्त करता है. व्यक्ति सुशील तो होता ही है साथ ही विनोदप्रिय भी होता है लेकिन इस दशा में व्यक्ति के पिता का निधन होता है और स्वजनों के साथ क्लेश रहता है.
उच्च शनि का दशा फल
यदि जन्म कुंडली में शनि अपनी उच्च राशि में स्थित है तब व्यक्ति इसकी दशा में अपने देश का त्याग करता है. व्यक्ति को मानसिक रोग अथवा कष्ट होते हैं. यह कष्ट किसी भी रुप में व्यक्ति को भुगतने पड़ सकते हैं. व्यक्ति के व्यवसाय की हानि होती है. इस दशा में कृषि की भी हानि होती है और सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से विरोध रहता है.
मूलत्रिकोण शनि का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति देश में इधर-उधर घूमने वाला होता है. व्यक्ति वन में निवास करने वाला होता है. दो नामधारी होता है, किसी सभा और नगर का अधिपति भी हो सकता है. व्यक्ति का अपनी स्त्री व पुत्र से विरोध भी हो सकता है.
स्वराशि शनि का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में शनि अपनी ही राशि मकर या कुंभ में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति के बल, पुरुषत्व तथा कीर्ति में वृद्धि होती है. व्यक्ति सरकार का आश्रय प्राप्त करता है. इस दशा में व्यक्ति स्वर्ण, आभूषण, भूमि आदि पाता है. धैर्यवान होता है, अपने नाम के अनुकूल गुण संपन्न और सुखी होता है.
अतिमित्र और मित्र राशि में शनि का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में शनि अपनी अतिमित्र राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति सरकार से सम्मान पाता है. पुत्र-स्त्री व धन आदि से सुखी होता है. पशु, भैंस, कृषि संबंधी चीजों का व्यापार करने वाला होता है.
मित्र राशि में स्थित शनि की दशा में व्यक्ति शिल्प के कार्यों में निपुण होता है. अपने ज्ञान बल से युक्त होकर प्रतापी होता है लेकिन इसकी दशा में व्यक्ति दु:खी रहता है.
सम राशि में शनि का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में शनि अपनी सम राशि में स्थित हो तब इसकी दशा में व्यक्ति सभी से एक समान व्यवहार करता है चाहे वह घर वाले हों अथवा बाहर वाले लोग हों. इस दशा में व्यक्ति को अपने नौकरों की ओर से संकट का सामना करना पड़ सकता है. अपने बंधु-बांधवों से वैर भी इसी दशा में होता है. वात-पित्त संबंधी विकारों से शारीरिक कष्ट होता है. इस दशा में व्यक्ति को कोई ना कोई क्षति भी होती है.
आरोहिणी शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में यदि शनि आरोहिणी अवस्था (नीच और उच्च राशि के मध्य स्थित है) में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति का भाग्योदय सरकारी सहयोग के द्वारा होता है. इस दशा में व्यक्ति को वाणिज्य, कृषि, भूमि, हाथी, घोड़े, वाहन तथा स्त्री-पुत्रों का लाभ होता है.
अवरोहिणी शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में शनि यदि अवरोहिणी अवस्था (उच्च और नीच राशि के मध्य स्थित है) में स्थित है तब इस दशा में सरकार की नाराजगी हो सकती है जिसके कारण स्थान परिवर्तन करना पड़ सकता है. धन की हानि उठानी पड़ सकती है और स्त्री-पुत्रों से भी हानि उठानी पड़ सकती है. भाग्य साथ नहीं देता है और सरकार की ओर से डर लगा रहता है. इस दशा में व्यक्ति को दासता भी झेलनी पड़ सकती है. गुदा तथा आँखों के रोग से व्यक्ति कष्ट उठाता है.
शत्रु तथा अतिशत्रु राशि में शनि का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में शनि अपनी शत्रु राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति वेश्याओं से धन प्राप्त करता है. इस दशा में व्यक्ति की भूमि का नाश हो जाता है. खेती-बाड़ी की हानि होती है, व्यक्ति अपने पद से हट जाता है. इस दशा में व्यक्ति शारीरिक दुर्बलता पाता है और लोगों से शत्रुता होती है.
यदि जन्म कुंडली में शनि अतिशत्रु राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति की स्थानच्युति होती है अर्थात व्यक्ति अपने स्थान से हट जाता है. बन्धुओं से विरोध होता है, चोर तथा अग्नि से भय रहता है. सरकार अथवा सरकारी कर्मचारियों की ओर से भी भय बना रहता है और इनकी ओर से बाधाएँ उत्पन्न होती रहती है. शनि की इस दशा में नौकर व्यक्ति से नाराज रहते हैं और स्त्री व संतान भी नाराज रहती है.
नीच राशि में शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में यदि शनि अपनी नीच राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को स्त्री-पुत्रादि से हानि होती है, भाई-बन्धुओं की हानि होती है और बहुत बड़े कष्ट उठाकर अथवा नीचवृत्ति से व्यक्ति अपना जीवनयापन करता है.
उच्च ग्रह से युक्त शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में यदि शनि किसी उच्च के ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को बहुत-से सुखों की प्राप्ति होती है. थोड़ा-सा राज्य सुख भी मिल जाता है. कृषि संबंधी वस्तुओं का लाभ व्यक्ति को इस दशा में मिलता है. इस दशा में सेवाकर्मियों का नाश होता है.
नीच ग्रह से युक्त शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में शनि यदि किसी नीच ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को बहुत ज्यादा कष्ट तथा भय सताते रहते हैं. व्यक्ति छल-कपट करने वाला होता है और कई बार व्यक्ति की आर्थिक स्थिति इतनी बदतर हो जाती है कि व्यक्ति के फाके मारने अथवा उपवास की स्थिति पैदा हो जाती है. इस दशा में व्यक्ति निम्न वृत्ति के द्वारा अपना जीवनयापन करता है.
शुभ ग्रह से युक्त शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में शनि यदि किसी शुभ ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति किसी विशेष ज्ञान में वृद्धि करता है. व्यक्ति परोपकार के काम करता है, सरकार की ओर से उसके भाग्य में वृद्धि होती है जिससे भाग्य से सुख पाता है. इस दशा में व्यक्ति काले वर्ण की वस्तुओं के धान्य से लाभ पाता है और यदि व्यक्ति लोहे का काम करता है तब उससे भी लाभ पाता है.
अशुभ या पाप ग्रह से युक्त शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में यदि शनि किसी पापी अथवा अशुभ ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति अत्यधिक पापकर्म करने वाला होता है. इस दशा में व्यक्ति नीच स्त्रियों की संगति में रहने वाला होता है. इस दशा में व्यक्ति चोरों तथा निम्न स्तर के लोगों से विवाद रहता है और स्त्री के बिना ही इसे रहना पड़ता है.
शुभ ग्रह से दृष्ट शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में शनि यदि किसी शुभ ग्रह से दृष्ट है तब इसकी दशा में व्यक्ति के धन में वृद्धि होती है, स्त्री, संतान तथा नौकर-चाकरों की वृद्धि होती है लेकिन बाद में अत्यधिक कष्ट होता है. गाय, भूमि, व्यवसाय तथा कृषि का नाश होता है.
अशुभ या पाप ग्रह से दृष्ट शनि का दशाफल
जन्म कुंडली में यदि शनि पाप अथवा अशुभ ग्रह से दृष्ट है तब इसकी दशा में धन, स्त्री, पुत्रादि का नाश होता है. भाईयों तथा सेवकों का भी इस दशा में नाश होता है. इस दशा में व्यक्ति का किसी न किसी से विवाद चलता रहता है. इस दशा में व्यक्ति कुभोजन प्राप्त करता है तथा खराब गंध आदि प्राप्त होते हैं.
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बृहस्पति दशा का फल
गुरु दशा के सामान्य फल
यदि जन्म कुंडली में गुरु की दशा चलती है तब व्यक्ति को स्थान प्राप्ति होती है, वाहन का सुख होता है, सरकारी अधिकारियों से संबंध बनते हैं अथवा उनसे मित्रता होती है. यदि कोई व्यवसाय करता है तो उसके काम में वृद्धि होती है. मन प्रसन्न रहता है, वैभव की प्राप्ति होती है, व्यक्ति का ज्ञान बढ़ता है. स्त्री-पुत्रादि के सुख में वृद्धि होती है. इस दशा में सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों की ओर से उत्तम भूमि की प्राप्ति होती है. सुन्दर पत्नी/पति मिलता है, गुरुजनों से सम्मान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति उत्तम व अच्छी विद्या से युक्त होता है.
बृहस्पति की दशा में स्त्री-पुत्र, धन-धान्य, मित्र तथा रत्नों आदि का लाभ व्यक्ति को मिलता है. आरोग्य लाभ होता है, शत्रु पर विजय प्राप्त होती है और सुख की प्राप्ति होती है. इस दशा में व्यक्ति का आचरण भी शुद्ध हो जाता है क्योंकि गुरु स्वयं सात्विक ग्रह है और ज्ञान के कारक कहे गए हैं. शास्त्रों व पुराणों को पढ़ने की इच्छा बली होती है और व्यक्ति का स्वभाव विनम्र होता है. सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों की कृपा से व्यक्ति के मनोरथ पूर्ण होते हैं.
इस दशा में व्यक्ति सुशील होकर देवताओं की अर्चना तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला होता है. वैभव से संपन्न होता है तथा बुद्धिमान होता है और धनादि की कमी नहीं होती है. व्यक्ति का उठना-बैठना अच्छी संगत के लोगों के मध्य रहता है. अपने कुल-परिवार में व्यक्ति वरिष्ठ होता है और गुणों की खान होता है. इस दशा में व्यक्ति सरकारी अधिकारी अथवा सरकार में मंत्री हो सकता है. इस दशा में व्यक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं.
व्यक्ति आस्थावान होता है अर्थात यज्ञादि, ब्राह्मण तथा ईश्वर में आस्था रखने वाला होता है. वैभव संपन्न व धनी व्यक्ति होता है. पुत्रों की ओर से संतोष रहता है, बलशाली होता है, अपने कुल में श्रेष्ठ होता है. व्यक्ति भूत-भविष्य को जानने वाला अथवा इसमें रुचि रखने वाला होता है. उच्च कुलीन लोगों की संगत रहती है, सद्बुद्धि से युक्त होता है और शीलवान होने के साथ-साथ धैर्यवान होता है.
गुरु दशा के उपरोक्त फल सामान्य है अर्थात अगर गुरु अच्छी स्थिति में हैं तब ऎसे फल मिलेगें अन्यथा नहीं मिलेगें. यदि गुरु जन्म कुंडली में अशुभ है तब अपनी दशा में व्यक्ति को पेट संबंधित विकार हो सकते हैं, गुल्म, प्लीहा और गले से संबंधित विकार हो सकते हैं.
परमोच्च गुरु का दशा फल
यदि जन्म कुंडली में गुरु अपनी उच्च राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को राज्य की प्राप्ति होती है किन्तु अब राजा तो रहे नहीं है इसलिए इस दशा में सरकार में किसी अच्छे पद की प्राप्ति होती है. व्यक्ति परम सुख का अनुभव करता है और उसकी कीर्ति पताका चारों ओर लहराती है. मन को सुकून देने वाले काम व्यक्ति करता है. वाहनादि का सुख व्यक्ति को मिलता है. उच्च सरकारी पद की प्राप्ति से लाभ होता है. इस दशा में व्यक्ति अपने कुल का अधिपति भी होता है.
उच्च गुरु का दशाफल
गुरु अथवा बृहस्पति कर्क राशि में उच्च का होता है और जब उच्च के गुरु की दशा आती है तब सरकारी अथवा सरकारी अधिकारियों की अनुकम्पा जातक पर काफी रहती है. सरकार की अनुकम्पा से व्यक्ति का भाग्योदय होता है और वह जीवन में उत्तरोत्तर उन्नति करता है. इस दशा में व्यक्ति विदेश यात्रा काफी करता है. वैभव आदि की प्राप्ति होती है और दु:खों से छुटकारा मिलता है लेकिन उच्च के गुरु की दशा में व्यक्ति में स्वाभिमान भी बहुत रहता है और कभी-कभी तो यह घमंड का रूप भी ले लेता है.
मूलत्रिकोण गुरु दशा का फल
गुरु जब जन्म कुंडली में अपनी मूलत्रिकोण राशि में रहता है तब सरकार की ओर से लाभ होता है. स्त्री-पुत्रादि अथवा संतान से सुख की प्राप्ति होती है. धन की कमी नहीं रहती है और वाहन का सुख भी जातक को मिलता है. अपने स्वप्रयासों से व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है. इस दशा में धर्म-कर्म में रुचि तथा यज्ञादि कराने में भी रुचि रहती है. व्यक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है तथा लोगों के मध्य जातक लोकप्रियता पाता है.
स्वराशिगत गुरु का दशाफल
अगर जन्म कुंडली में गुरु अपनी स्वराशि धनु अथवा मीन में स्थित होता है तब सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से धन का लाभ होता है. जमीन व धान्यादि का लाभ होता है, जातक सुखी होता है और वस्त्राभूषण की प्राप्ति होती है. व्यक्ति मिष्टान्न ज्यादा ग्रहण करता है, मनभावन चीजों की पूर्त्ति करता है और वेद शास्त्रों में रुचि रहती है. काव्यादि में भी जातक की विशेष रुचि रहती है.
अतिमित्र राशि में गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में गुरु अथवा बृहस्पति अपनी अतिमित्र राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति राजा से पूज्य होता है अर्थात सरकार उसका काफी सम्मान करती है जैसे कि किसी को पूजा जा रहा हो. व्यक्ति भेरी (एक प्रकार का वाद्य यंत्र जो मुँह से बजाया जाता है) तथा मृदंग आदि वाद्यों से युक्त रहता है. वाहन आदि से संपन्न होता है तथा हर तरह से सौभाग्यशाली होता है.
मित्रराशि में गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में गुरु अपनी मित्र राशि में स्थित हो तब सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से व्यक्ति की मित्रता होती है, व्यक्ति की कीर्त्ति चारों ओर फैलती है. व्यक्ति विद्या-विवाद में विजय हासिल करता है. अन्न आदि से हर प्रकार से सुखी रहता है और व्यक्ति परोपकार करने वाला होता है. इस दशा में व्यक्ति को मिष्टान्न व सुगन्ध आदि का लाभ होता है.
समराशि में गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में बृहस्पति अपनी समराशि में स्थित है तब अपनी दशा में सरकार के द्वारा इसका भाग्योदय होता है. खेती-बाड़ी अथवा कृषि संबंधी कर्म से लाभ होता है. भले ही यह प्रत्यक्ष रुप से कृषि कर्म ना करता हो लेकिन किसी ना किसी रुप में इससे लाभ होता है. गोधन पाता है, धनी होता है और मनोविलास से लाभ पाता है. हर तरह से सुखी व संपन्न कहा जा सकता है. मित्रों से लाभ, वस्त्र व आभूषणों का लाभ होता है.
आरोही या आरोहिणी गुरु का दशाफल
यदि गुरु जन्म कुंडली में आरोही अवस्था में स्थित है अर्थात नीच व उच्च राशि के मध्य है तब इसकी दशा में व्यक्ति का समाज-सोसायटी में महत्व बढ़ता है. धन व भूमि आदि की प्राप्ति होती है. व्यक्ति की अभिरुचि गाने आदि में बढ़ जाती है. स्त्री व संतान आदि से सुख मिलता है. सरकार की ओर से सम्मान पाता है. अपने स्वप्रयासों तथा पराक्रम के बल पर यश पाता है व प्रतापी होता है. मण्डलाधिपति होता है, ब्राह्मण तथा सरकार से धन लाभ होता है. जातक मेधावी होता है, विद्वान व विनीत (सरल स्वभाव) होता है.
अवरोहिणी गुरु दशा का फल
यदि जन्म कुंडली में गुरु अथवा बृहस्पति अवरोहिणी अवस्था में है अर्थात उच्च व नीच राशि के मध्य स्थित है तब इसकी दशा में सुखों का नाश होता है और तुरंत सारे सुख नष्ट हो जाते हैं. इस दशा में अचानकपन जीवन में बहुत रहता है जैसे अभी कुछ सुख मिला और कुछ देर में ही वह सुख नष्ट भी हो गया. अचानक व्यक्ति कीर्ति पाता है और तत्काल वह कीर्ति नष्ट हो जाती है. इसलिए इस दशा को मिश्रित फल देने वाली भी कहा जा सकता है.
शत्रु राशिगत गुरु दशा का फल
शत्रु राशि में स्थित गुरु की दशा यदि जीवन में आ जाती है तब व्यक्ति को चीजों के होते हुए भी उसके सुख में कमी लगती है अथवा सुखों का उपभोग वह कर नहीं पाता है. वैसे तो इस दशा में व्यक्ति को भूमि व व्यवसाय से लाभ होता है. व्यक्ति सुख की नींद सोता है और सरकार की ओर से सम्मानित होता है लेकिन अपनी स्त्री, संतान, नौकर तथा चचेरे भाईयों को कष्ट में देखता है.
अतिशत्रु राशि में गुरु का दशाफल
जन्म कुंडली में गुरु अगर अतिशत्रु राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को शोक प्राप्त होता है, व्यक्ति को विष का भय रहता है. जमीन-जायदाद का नाश होता है तथा धनादि दिन-ब-दिन घटता रहता है. घर में पत्नी से कलह-क्लेश रहता है. सरकार से कष्ट अथवा सरकारी अधिकारियों से कष्ट मिलता है. अग्नि व चोर से भी भय तथा कष्ट रहता है.
उच्च ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में गुरु किसी उच्च ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में यह महान सुखों को पाता है, कई भवनों का निर्माण करता है तथा सरकार द्वारा पूजनीय होता है.
नीच ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में गुरु अपनी नीच राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को मानसिक कष्ट मिलते हैं जिनसे मानसिक रोग भी हो जाते हैं. इस दशा में व्यक्ति दूत (संदेश लाना और पहुंचाना) का काम करता है. इस दशा में व्यक्ति का अपनी संतान से ही विरोध हो जाता है.
शुभ ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में गुरु शुभ ग्रहों के साथ है तब इसकी दशा में उच्चाधिकारी से वाहन की प्राप्ति होती है. अच्छे, कोमल व सुन्दर वस्त्रों की प्राप्ति होती है. दान आदि से धनागमन होता है. सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से सम्मान मिलता है. यज्ञादि संपन्न कराकर सन्मार्ग पर चलने वाला होता है जिससे पुण्यलाभ होता है.
अशुभ ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में गुरु पाप अथवा अशुभ ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति पाप कर्म करने वाला ही होता है. इसका अपना विवेक काम नहीं करता है. धर्म विरुद्ध आचरण व्यक्ति का रहता है. मन तो कलुषित रहता है लेकिन बाहर से पुण्य का दिखावा करने वाला होता है लेकिन अर्थ, भूमि, स्त्री व संतान की ओर से सुखी होता है.
शुभ ग्रह से दृष्ट गुरु का दशाफल
यदि जन्म कुंडली में गुरु शुभ ग्रह से दृष्ट है अर्थात गुरु को कोई शुभ ग्रह देख रहा है तब व्यक्ति विदेश में सरकार से धन का लाभ पाता है. देवादि की अर्चना करने वाला होता है तथा तीर्थ आदि के दर्शन करता है. व्यक्ति अपने गुरुजनों का सम्मान करने वाला होता है.
अशुभ ग्रह से दृष्ट गुरु का दशाफल
जन्म कुंडली में गुरु यदि किसी पाप अथवा अशुभ ग्रह से दृष्ट है तब इसकी दशा में व्यक्ति सुखी होता है, व्यक्ति धैर्यवान व शीलवान भी होता है, यश भी पाता है, धनी व सुखी भी होता है लेकिन जब यह दशा समाप्त होने वाली होती है तब सब कुछ नष्ट भी कर जाती है.
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राहु दशा का फल
राहु जन्म कुंडली में कितना ही शुभ क्यूँ ना हो तब भी शुभफल देने में बहुत ज्यदा सक्षम नहीं कहा जा सकता. इसकी दशा में व्यक्ति मानसिक रुप से भ्रम में बना रहता है, उसे पता ही नहीं चल पाता कि क्या अच्छा तो क्या बुरा है! इसकी दशा में व्यक्ति के सुख का तथा धन का नाश होता है. कई प्रकार के रोग व व्याधियाँ मनुष्य को जकड़ लेती है. यदि शारीरिक कष्ट नहीं भी हों लेकिन मानसिक कष्टों से नहीं बचा जा सकता है. इस दशा में मनुष्य प्रवासी हो जाता है.
राहु की दशा में पिता को कष्ट होता है, पिता से वियोग भी हो सकता है तथा परिवार के कुछ लोग विरोधी हो सकते हैं और उनके द्वारा कष्टों की प्राप्ति हो सकती है. अपने घर-परिवार के प्रति आसक्ति रहती है लेकिन घर का वाताचरण सुखमय नहीं कहा जा सकता. मानसिक सुख का अभाव सदैव रहता है. असंतोष, सन्ताप, बुद्धिहीनता आदि इस दशा में देखने को मिलता है. विषम परिस्थितियों से सामना होता है जो कई बार मृत्युतुल्य कष्ट देने वाली साबित होती हैं. इस दशा में विष का भय भी बना रहता है क्योंकि राहु स्वयं विष है. व्यक्ति का जीवन संशयपूर्ण स्थिति में रहता है.
उच्च राशि में स्थित राहु दशा फल
वृष राशि में राहु को उच्च का माना जाता है तो कुछ अन्य मत से मिथुन में राहु को उच्च का माना गया है. यदि जन्म कुंडली में राहु अपनी उच्च राशि में अच्छे भाव में स्थित है तब इसकी दशा में सुखों की प्राप्ति होती है. मित्रों का सुख अथवा उनसे लाभ होता है. जातक के धन-धान्यादि में बढ़ोतरी होती है.
मूलत्रिकोण राशि में स्थित राहु दशा फल
मूलत्रिकोण राशि तय नहीं है कि कौन सी मानी जाएंगी लेकिन मेष व कर्क राशि के राहु को भी अच्छा माना गया है इसलिए इन दोनों को मूलत्रिकोण जैसी राशियाँ राहु की मान सकते हैं क्योंकि इनमें स्थित राहु की दशा में धन का लाभ होता है, विद्या से लाभ अथवा विद्या का लाभ होता है. सरकार से सम्मान, स्त्री-पुत्र का सुख तथा दासादि का सुख भी मिलता है.
कन्या, धनु और मीन राशि में राहु का फल
अगर इनमें से किसी भी एक राशि में राहु स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को स्त्री-पुत्र का लाभ व सुख मिलता है. किसी स्थान का स्वामित्व भी व्यक्ति को मिलता है. वाहन आदि का सुख भी व्यक्ति पाता है लेकिन इन राशियों में स्थित राहु की दशा जब समाप्त होने लगती है तब जो कुछ इस दशा ने दिया है वह जाते-जाते वापिस ले भी जाती है अर्थात जो उपलब्धियाँ व्यक्ति पाता है वह नष्ट हो जाती हैं.
कुछ अन्य विद्वानों के मत से सिंह, वृष, कन्या और कर्क राशि में जब राहु स्थित होता है तब अपनी दशा में व्यक्ति को जीवन की सभी सफलताएँ प्रदान कराता है. हर प्रकार की सुख-सुविधाएँ, सभी ऎश्वर्य, धन-धान्य आदि व्यक्ति को मिलते हैं. व्यक्ति परोपकार करने वाला होता है तथा वाहनादि के सुखों का भी भोग करता है.
पाप राशि में राहु का फल
यदि जन्म कुंडली में राहु किसी पाप ग्रह की राशि में स्थित है तब देह की दुर्बलता होती है. कुल का विनाश इस दशा में कहा गया है. सरकार से भय होता है, शत्रु का भय भी बना रहता है और अकसर व्यक्ति को धोखे मिलते हैं. मूत्र संबंधी व्याधियाँ होने की संभावना बनी रहती है.
शुभ-अशुभ से दृष्ट राहु का फल
यदि जन्म कुंडली में राहु किसी शुभ ग्रह से दृष्ट है तब इसकी दशा में कार्य सिद्ध होते हैं. सरकार की ओर से अथवा उच्चाधिकारियों के द्वारा व्यक्ति सम्मानित होता है. धन का आगमन भी इस दशा में रहता है लेकिन किसी स्वजन का निधन भी इस दशा में होने की संभावना बनती है.
यदि राहु किसी पाप अथवा अशुभ ग्रह से दृष्ट है तब इसकी दशा में कार्य असफल रहते हैं. जो अपना उद्योग चलाते हैं उनमें बाधा आती है. मानसिक व शारीरिक कष्ट बना रहता है. परिवार वाले ही परेशानियाँ व कष्ट उत्पन्न करने वाले बन जाते हैं. चोर व अग्नि का भय भी इस दशा में बना रहता है. सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से उत्पीड़न मिल सकता है जिससे कष्ट में वृद्धि ही होती है.
उच्च ग्रह से युक्त राहु दशा फल
यदि जन्म कुंडली में राहु उच्च के ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में सरकार की ओर से लाभ होता है, स्त्री-पुत्र की ओर से सुख की अनुभूति होती है. धन-संपदा, वस्त्र तथा आभूषण आदि का सुख भी इस दशा में मिलता है. इस दशा में व्यक्ति मालिश का सुख काफी उठाता है.
नीच ग्रह से युक्त राहु दशा फल
यदि जन्म कुंडली में राहु नीच के ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति नीच कार्यों को करके अपना जीवनयापन करता है. ऎसे कार्य जिन्हें नीच वृत्ति का समझा जाता है वह जातक करता है. किसी दुष्ट स्त्री से संबंध रख सकता है जिससे कष्ट की प्राप्ति होती है अथवा अपनी स्त्री भी दुष्टा हो सकती है और पुत्र भी कुपुत्र हो जाता है.
नीच राशि में स्थित राहु दशा फल
कुछ विद्वानों के मत से राहु वृश्चिक राशि में नीच का कहा जाता है तो कुछ अन्य के मत से राहु को धनु राशि में नीच का माना गया है. यदि जन्म कुंडली में राहु अपनी नीच राशि में स्थित है तब अग्नि व चोर का भय रहता है. सरकार, सरकारी व्यक्ति अथवा उच्चाधिकारियों की ओर से भी कष्ट की प्राप्ति होती है. व्यक्ति विदेश गमन करता है और कई विद्वान तो इस दशा में वनवास की बात भी करते हैं. विष तथा फाँसी का भय भी इस दशा में बना रह सकता है. 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
मंगल दशा का फल
मंगल दशा/अन्तर्दशा के सामान्य फल
जब किसी जन्म कुंडली में मंगल ग्रह की दशा चलती है तब इसकी दशा में शस्त्र, भूमि, वाहन और अग्नि से, औषधि से, राजा अथवा सरकार के साथ धोखाधड़ी से और अनेक प्रकार की क्रूरता से धन की प्राप्ति होती है. जातक पित्त, ज्वर, रक्त से कष्ट पाता है. नीच स्त्री का भोग और पुत्र, स्त्री और गुरु से विद्वेषण तथा कुत्सित अन्नादि का भोजन करता है.
मंगल की दशा/अन्तर्दशा में अग्नि और विष से भय तथा शस्त्र से आघात हो सकता है. जातक को शत्रु, नृपति, चोर, सर्प आदि से भय रहता है. वमनादि व्याधियों से कष्ट तथा उसके धन का क्षय होता है. ग्रहदोष से कष्ट, रक्तविकार तथा स्वजनों से विरोध होता है. मूर्छा आदि भी मंगल की दशा में प्राप्त होती है. इस दशा में कार्यों में विघ्न और जातक दीनहीन हो जाता है.
अगर भौम अर्थात मंगल ग्रह जन्म कुंडली में शुभ स्थान में स्थित है तो शस्त्रादि से, राजा से, औषधि, चतुष्पद और अनेक उद्यमों से धन की प्राप्ति होती है. इस दशा में साहस तथा अनेक उद्योग द्वारा, विवाद द्वारा चतुष्पादादि के व्यापार से धन की प्राप्ति होती है.
परमोच्च मंगल दशा के फल
अगर जन्म कुंडली में मंगल अपने परमोच्च अंशों पर स्थित है तब इसकी दशा में खेत और धन का लाभ, युद्ध में विजय, अधिक सम्मान, सहोदर, स्त्री और पुत्र का लाभ और वाणी का सुख मनुष्य को प्राप्त होता है.
उच्चस्थ मंगल दशा के फल
अगर जन्म कुंडली में मंगल अपनी उच्च राशि में स्थित है तब इसकी दशा में राज्य अथवा राजा द्वारा धन की प्राप्ति होती है. भूमि, पुत्र, बन्धुसमागम, विशिष्ट वाहनादि का सुख और विदेश यात्रा होती है.
मूल त्रिकोणस्थ मंगल का दशाफल
मंगल अपनी स्वराशि मेष में अगर शून्य से बारह डिग्री के मध्य स्थित हो तब यह मूल त्रिकोण राशि में कहलाता है. मूल त्रिकोण राशि में स्थित होने पर मंगल की दशा में व्यक्ति को मीठे पकवान खाने को मिलते हैं, पेय पदार्थों की तरफ ज्यादा रुझान रह सकता है, वस्त्राभूषण का शौक भी व्यक्ति को इसकी दशा में हो सकता है. इस दशा में व्यक्ति अगर प्राचीन धार्मिक ग्रंथों को सुनता है अथवा स्वयं उनका पाठ करता है तब इसे किसी ना किसी रुप में लाभ मिलता है.
व्यक्ति को इस दशा में अपने भाई-बहनों की ओर से भी सुख की अनुभूति होती है. उन्हें सुखी देखकर सुख का अनुभव करता है. भाई-बहनों जैसे व्यक्तियों से लाभ होता है और अपने कार्य स्थल पर भी अपने सहयोगियों से सुख पाता है. जो खेती-बाड़ी करने वाले लोग हैं उन्हें इस दशा में कृषि से संबंधित चीजों से लाभ मिलता है.
इस दशा में पुत्र व स्त्री संबंधी सुख की प्राप्ति होती है. व्यक्ति अपने पराक्रम व साहस के द्वारा धन की वृद्धि करता है. यदि व्यक्ति योद्धा है तब जीत पाने के लिए विशेष प्रयत्न करके यश पाता है.
स्वक्षेत्री मंगल दशा का फल
अगर जन्म कुंडली में मंगल अपनी राशि मेष या वृश्चिक में स्थित है तब व्यक्ति को इसकी दशा में जमीन संबंधित लाभ होता है, धन लाभ अथवा धन की प्राप्ति होती है. वाहन का सुख होता है तथा किसी विशेष स्थान का अधिकार अथवा उस पर आधिपत्य स्थापित हो सकता है. भाईयों से सुख की प्राप्ति होती है. व्यक्ति दो प्रकार से नाम कमाता है.
अतिमित्र राशि में स्थित मंगल का फल
अगर जन्म कुंडली में मंगल अपनी अतिमित्र राशि में स्थित है तब इसकी दशा आने पर व्यक्ति को सरकार की ओर से कृपा प्राप्त हो सकती है और यह कृपा धन अथवा भूमि लाभ के रुप में प्राप्त हो सकती है. व्यक्ति शुभ कर्मों के लिए यज्ञ आदि करवा सकता है. परिवार में विवाह आदि कर्म भी संपन्न हो सकते हैं. यज्ञोपवीत जैसे कर्म भी इस दशा में संपन्न हो सकते हैं. इस दशा की एक खासियत यह भी है कि इस समय अपने स्थान से दूर जाकर भाग्योदय होता है.
मित्र राशि में स्थित मंगल का फल
जन्म कुंडली में मंगल अगर अपनी मित्र राशि में स्थित है तब व्यक्ति के जो भी शत्रु हैं वह सभी मित्र बन जाते हैं. व्यक्ति के क्रोध करने के कारण विवाद व क्लेश उत्पन्न होता है जिससे जातक स्वयं भी कष्ट पाता है. यदि व्यक्ति खेती-बाड़ी करने वाला है तब इसका नाश हो सकता है. कोई जमीन आदि का काम करता है तब उसमें भी परेशानी हो सकती है. आँखों की रोशनी कमजोर हो सकती है. चोरी व अग्नि का भय बना रह सकता है. इस दशा में जातक को विशेष रुप से सतर्क रहना चाहिए.
समराशि में स्थित मंगल का फल
जन्म कुंडली में मंगल अगर अपनी सम राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति अपने स्वप्रयास से धनार्जन करता है और उसी धन से वह अपने लिए सुख संसाधन जुटाता है लेकिन इस समय में जातक का अपने आसपास के लोगों से वैर-विरोध बना रहता है, चाहे वह स्त्री हो, पुत्र हो, भाई हो, बंधु-बांधव ही क्यूँ ना हो, सभी से विरोध-सा बना रहता है. अग्नि भय तथा सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से कष्ट मिलता है.
आरोहिणी मंगल दशा का फल
यदि जन्म कुंडली में मंगल आरोहिणी स्थिति ( अपनी नीच और उच्च राशि के मध्य स्थित होने पर) में है तब यह अपनी दशा में सुख, राजा का सान्निध्य, स्वजनों में प्रधानता, धैर्य, मन की प्रसन्नता, भाग्योदय, गौ, हाथी, अश्वादि का लाभ होता है.
अवरोहिणी मंगल दशा का फल
जन्म कुंडली में मंगल अवरोहिणी स्थिति (मंगल अपनी उच्च राशि और नीच राशि के मध्य स्थित होने पर) में होने पर अपनी दशा में स्थान तथा धन का नाश कराता है, साथ ही अनेक प्रकार से दुख भी होते हैं. व्यक्ति प्रवासी हो जाता है और स्वजनों से विरोध बना रहता है. चोर, अग्नि तथा राजा से भय रहता है.
शत्रु राशि में मंगल दशा का फल
यदि जन्म कुंडली में मंगल अपनी शत्रु राशि में स्थित हो तब जिस भाव में यह स्थित है उसके फल शुभ मिलते हुए भी जातक उसका लाभ नहीं उठा पाएगा अथवा उस भाव से संबंधित चीजों के होते हुए भी उसके सुख से वंचित रह सकता है. इस दशा में युद्ध में कष्ट होना, किसी बात का शोक होना, प्रमाद की स्थिति बने रहना, गुदा रोग हो सकता है अथवा नेत्र रोग से भी जातक कष्ट पा सकता है.
अतिशत्रु राशि में मंगल का फल
जन्म कुंडली में मंगल अगर अति शत्रु राशि में स्थित है और इसकी दशा आ जाती है तब कलह-क्लेश बने रहते हैं जिनसे दुख की अनुभूति होती है. सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से कष्ट होता है. खुद के परिवार वाले तथा भाई-बांधवों से वैर रहता है. स्त्री व पुत्र से परेशानी अथवा हानि हो सकती है और जातक के मित्रों को कष्ट व रोग से परेशानी होती है.
नीच राशि में स्थित मंगल दशाफल
अगर जन्म कुंडली में मंगल अपनी नीच राशि कर्क में स्थित है तो इसकी दशा में हीन वृत्ति द्वारा स्वजनादि का भरण-पोषण, कुभोजन, हाथी, घोड़ा, स्वबन्धुजनों का राजा, चोर या अग्नि द्वारा विनाश हो सकता है. इस दशा में किसी प्रकार का मनोविकार भी हो सकता है. दासवृत्ति तथा पर अन्न पर आश्रित रहने से धीरे-धीरे स्त्री व पुत्रों का विनाश होता है.
शुभ ग्रह से युक्त मंगल दशा का फल
यदि जन्म कुंडली में मंगल शुभ ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में थोड़ा-सा सुख कुछ ही समय के लिए मिल सकता है. रोग के कारण शरीर कमजोर हो सकता है. सरकार अथवा उसके अधिकारियों से विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. विद्या आदि में भी विवाद उत्पन्न हो जाता है तथा व्यक्ति स्थान परिवर्तन कर प्रवासी हो जाता है.
पाप ग्रह से युक्त मंगल दशा का फल
यदि जन्म कुंडली में मंगल पाप ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में जातक की प्रवृत्ति प्रतिदिन पाप कर्मों में लिप्त रहने की हो जाती है. भगवान में अनास्था रहती है, सभी के प्रति क्रूरता का भाव व्यक्ति के दिल में व्याप्त रहता है. भले वह देवता अथवा पशु ही क्यूँ ना हो किसी के लिए उसके मन में दया भाव नहीं होता है.
शुभ ग्रहों से दृष्ट मंगल का फल
जन्म कुंडली में मंगल यदि शुभ ग्रहों से दृष्ट है तब भूमि तथा धन का विनाश होता है. मंगल की दशा आने पर यदि गोचर में भी यह शुभ ग्रहों से दृष्ट होता है तब जातक को उतनी अवधि में शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
पाप ग्रहों से दृष्ट मंगल का फल
मंगल ग्रह स्वयं ही सबसे क्रूर व पापी ग्रह माना जाता है और यदि इसे कोई अन्य पापी ग्रह देख रहा हो तब इसकी दशा में जातक को अनेकों प्रकार के दुख तथा कष्ट उठाने पड़ सकते हैं. सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों की नाराजगी के कारण व्यक्ति अपनी पत्नी तथा मित्रों से दूर चला जाता है और विदेश में रहता है.
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