सोमवार, 29 जुलाई 2019

भीम और हिडिम्बा का ब्याह

आचार्य डा.अजय दीक्षित

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कौरवों द्वारा लाक्षागृह में पांडवो को मार डालने का षडयंत्र

रचा गया था जिसके बारे मे पांडवो  को पहले ही पता चल

गया और उन्होंने  रातो-रात महल के अंदर सुरंग बना लिया

और वहां से निकल गए।  लाक्षागृह षडयंत्र में अपनी जान

बचाने के बाद पांचो पांडव और माता कुंती के साथ एक

जंगल में पहुंचे । यह जंगल मायावी था और इस जंगल में

राक्षसराज हिडिम्ब का राज था ।

                                         जब पांडव भाई और कुंती इस

जंगल में पहुंचे तो उन सभी को बड़ी प्यास लगी थी

फलस्वरूप भीम उन सभी के लिए जल लेने गए और जब

लौटे तो देखा कि सभी थककर  सो चुके थे । भीमसेन को

इस बात का बड़ा अफसोस हुआ कि वे समय पर जल ला न

सके , और वे जागते हुए पहरा देने लगे ।

उधर राक्षस हिडिम्ब को अपने प्रदेश में अपने राक्षस प्रवृत्ति के

कारण मनुष्य के होने की गंध लग गई । उसने अपनी बहन

हिडिम्बा को आदेश दिया कि जल्दी से उन लोगों मनुष्यों को

उसके पास लाया जाए ।

                               हिडिम्बा अपने भाई के आदेश का

पालन करने के लिए उसी जगह पहुँच गई जहां माता कुंती

सहित चारों पांडव सो रहे थे।  हिडिम्बा ने देखा कि एक

मनुष्य ओर भी है जो इधर-उधर घूमते हुए पहरा दे रहा था।

भीमसेन की छवि देखते ही राक्षसी हिडिम्बा भूल गई कि वह

यहां किस उद्देश्य से आई थी । उसने ऐसा सुदंर विशालकाय

हष्ट पुष्ट शरीर  कभी नहीं देखा था  । वह भीम की चाल-ढाल

पर इतनी मोहित हुई कि सुध-बुध खो बैठी कि वह एक

राक्षसी  है और भीम एक मनुष्य ।  हिडिम्बा अपने आप को

रोक न सकी और एक सुंदर स्त्री का वेश धारण कर भीम के

पास गई ।



                 Bheema second pandavas


          
           हिडिम्बा भीम से बोली- 'हे वीर पुरूष ! आप कौन हैं

मैं आपको देखते ही आपपर मोहित हो गई और आपसे विवाह

की इच्छुक हूँ । ' हिडिम्बा के इतना बोलते ही वह अपने

असली रूप में आ गई जिसे देख भीम अचानक से अचम्भे में

आ गए और हिडिम्बा से इसका अर्थ पूछा।

हिडिम्बा ने कहा कि वह इस जंगल के राजा हिडिम्ब की बहन

है और यहां वह उन सभी को अपने भाई के आदेश पर

भोजन के लिए लेने आई हैं।हिडिम्बा के इतना बोलते ही भीम

गुस्से से बेकाबू हो उठे और हिडिम्बा से अपने राक्षस भाई

हिडिम्ब के पास ले जाने को कहा।

                              तत्पश्चात हिडिम्बा भीम को उनकी

माता और भाईयों सहित अपने भाई के पास ले गई ।

राक्षसराज हिडिम्ब तो पहले से ही अपने शिकार का इंतजार

कर रहा था । उन सभी मनुष्यों को एक साथ देखकर बहुत

खुश हुआ और अपनी बहन हिडिम्बा को  खुश होकर देखा ।

दूसरी ओर भीमसेन तो पहले से ही गुस्से में थे और इस

राक्षस को देखकर तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर

पहुंच गए ।

भीम गुस्से से बेकाबू हो उसकी ओर झपटे । हिडिम्ब ने भी

जब भीम को अपनी ओर झपटते देखा तो  वह भी भिड़

गया । उन दोनों में घमासान युद्ध हुआ पंरतु अंत में विजय

भीम की ही हुई । भीम राक्षसी हिडिम्बा को भी मार डालना

चाहते थे लेकिन माता कुंती ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया ।

राक्षसों की परंपरा के अनुसार जो भी व्यक्ति राजा का वध

करता है उसे उसकी कन्या या फिर उसकी बहन से विवाह कर

समस्त राक्षस समुदाय का राजा मान लिया जाता   है ।

हिडिम्बा को इस रिवाज का पता था इसलिए वह बहुत खुश

थी कि उसके मन की मुराद पूरी हो गई । परंतु जैसे ही यह

बात माता कुंती और पांडवो को पता चली उनहोंने साफ मना

कर दिया। एक तो भीम मनुष्य थे और हिडिम्बा राक्षसी  दूसरी

बात कि वे कौरवों की वजह से  एक स्थान पर नहीं रह

सकते थे  ।

हिडिम्बा ने अपने प्रेम के बारे मे भीम की माता को बताया

और उनसे निवेदन करने लगी कि वह भीम को किसी सीमा

मे बांधकर नहीं रखेगी और संतान प्राप्ति के पश्चात भीम

कहीं भी जाने के लिए मुक्त होंगे ।

हिडिम्बा के काफी अनुनय विनय करने के पश्चात माता कुंती

उसके और अपने पुत्र भीम के विवाह के लिए सहमत हो गई ।

                                    राक्षस रीति रिवाज के अनुसार

भीम और हिडिम्बा का विवाह हुआ । विवाह के साथ ही

भीम को राक्षसों का नया राजा घोषित किया जाता है ।

एक साल के भीतर ही हिडिम्बा और भीम को एक पुत्र की

प्राप्ति होती है जिसका नाम "घटोत्कच" रखा जाता है ।

संतान प्राप्ति के पश्चात  हिडिम्बा की बारी आती है कि वह

अपना दिया वचन पूरा करे । फलस्वरूप भीम अपने पुत्र

घटोत्कच को राक्षसों का नया राजा घोषित करते हैं और

अपने चार भाइयों और माता सहित वहां से विदा होते हैं ।

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