जय सियाराम जय जय हनुमान
आचार्य डा.अजय दीक्षित
आखिर ! कैसे हुआ म्लेच्छों का जन्म ?
आचार्य डा.अजय दीक्षित
आखिर ! कैसे हुआ म्लेच्छों का जन्म ?
म्लेच्छवंशीय राजाओं का वर्णन तथा म्लेच्छ-भाषा आदि का संक्षिप्त परिचय
शौनक ने पूछा – त्रिकालज्ञ महामुने ! उस प्रद्योत ने कैसे म्लेच्छ-यज्ञ किया ? मुझे यह सब बतलायें |
श्रीसूतजी ने कहा – महामुने ! किसी समय क्षेमक के पुत्र प्रद्योत हस्तिनापुर में विराजमान थे | उससमय नारदजी वहाँ आये | उनको देखकर प्रसन्न हो राजा प्रद्योत ने विधिवत उनकी पूजा की | सुखपूर्वक बैठे हुए मुनिने राजा प्रद्योत से कहा – ‘म्लेच्छों के द्वारा मारे गये तुम्हारे पिता यमलोक को चले गये है | म्लेच्छ यज्ञ के प्रभाव से उनकी नरक से मुक्ति होगी और उन्हें स्वर्गीय गति प्राप्त होगी |
अत: तुम म्लेच्छ यज्ञ करो |’ यह सुनकर राजा प्रद्योत की आँखे क्रोधसे लाल हो गयी | तब उन्होंने वेदज्ञ ब्राह्मणों को बुलाकर कुरुक्षेत्र में म्लेच्छ-यज्ञ को तत्काल आरम्भ करा दिया | सोलह योजन में चतुष्कोण यज्ञ कुंड का निर्माणकर देवताओं का आवाह्नकर उस राजाने म्लेच्छों का हनन किया |
ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अभिषेक कराया | इस यज्ञ के प्रभाव से उनके पिता क्षेमक स्वर्गलोक चले गये | तभीसे राजा प्रद्योत सर्वत्र पृथ्वीपर म्लेच्छहन्ता (म्लेच्छों को मारनेवाले) नामसे प्रसिद्ध हो गये | उनका पुत्र वेद्वान नामसे प्रसिद्ध हुआ |
म्लेच्छरूपमें स्वयं कलिने ही राज्य किया था | अनन्तर कलिने अपनी पत्नी के साथ नारायण की पूजाकर दिव्य स्तुति की; स्तुति से प्रसन्न होकर नारायण प्रकट हो गये | कलि ने उनसे कहा – ‘हे नाथ ! राजा वेद्वान के पिता प्रद्योत ने मेरे स्थान का विनाश कर दिया है और मेरे प्रिय म्लेच्छों को नष्ट कर दिया हैं |’
भगवान ने कहा – कले ! कई कारणों से अन्य युगों की अपेक्षा तुम श्रेष्ठ हो | अनेक रूपों को धारणकर मैं तुम्हारी इच्छा को पूर्ण करूँगा | आदम नाम का पुरुष और ह्व्यवती (हौवा) नामकी पत्नीसे म्लेच्छवशों की वृद्धि करनेवाले उत्पन्न होंगे |
यह कहकर श्रीहरि अन्तर्धान हो गये और कलियुग को इससे बहुत आनंद हुआ | उसने नीलाचल पर्वतपर आकर कुछ दिनोंतक निवास किया |
राजा वेद्वान को सुनंद नामका पुत्र हुआ और बिना संतति के ही वह मृत्यु को प्राप्त हुआ | इसके बाद आर्यावर्त देश सभी प्रकार क्षीण हो गया और धीरे-धीरे म्लेच्छों का बल बढ़ने लगा |
तब नैमिषारण्य निवासी अठासी हजार ऋषि-मुनि हिमालयपर चले गये और वे बदरी क्षेत्र में आकर भगवान् विष्णु की कथा-वार्ता में संलग्न हो गये |
सूतजी ने पुन: कहा – मुने ! द्वापर युग के सोलह हजार वर्ष शेष काल में आर्य-देश की भूमि अनेक किर्तियों से समन्वित रही; पर इतने समय में कहीं शुद्र और कहीं वर्णसंकर राजा भी हुए |
आठ हजार दो सौ दो वर्ष द्वापर युग के शेष रह जानेपर यह भूमि म्लेच्छ देश के राजाओं के प्रभाव में आने लग गयी | म्लेच्छों का आदि पुरुष आदम, उसकी स्त्री हव्यवती (हौवा)दोनों इन्द्रियों का दमनकार ध्यानपरायण रहते थे |
ईश्वर ने प्रदान नगर के पूर्वभाग में चार कोसवाला एक रमणीय महावन का निर्माण किया | पापवृक्ष के नीचे जाकर कलियुग सर्परूप धारणकर हौवा के पास आया | उस धूर्त कलि ने हौवा को धोखा देकर गूलर के पत्तों में लपेटकर दूषित वायुयुक्त फल उसे खिला दिया, जिससे विष्णु की आज्ञा भंग हो गयी |
इससे अनेक पुत्र हुए, जो सभी म्लेच्छ कहलाये | आदम पत्नी के साथ स्वर्ग चला गया | उसका श्वेत नामसे विख्यात श्रेष्ठ पुत्र हुआ, जिसकी एक सौ बारह वर्ष की आयु कही गयी है |
उसका पुत्र अनुह हुआ, जिसने अपने पितासे कुछ कम ही वर्ष शासन किया | उसका पुत्र कीनाश था, जिसने पितामह के समान राज्य किया | महल्लल नामका उसका पुत्र हुआ, उसका पुत्र मानगर हुआ | उसको विरद नामका पुत्र हुआ और अपने नामसे नगर बसाया |
उसका पुत्र विष्णुभक्तिपरायण हनूक हुआ | फलोंका हवन कर उसने अध्यात्मतत्व का ज्ञान प्राप्त किया | म्लेच्छधर्मपरायण वह सशरीर स्वर्ग चला गया | इसने द्विजों के आचार-विचार का पालन किया और देवपूजा भी की, फिर भी वह विद्वानों के द्वारा म्लेच्छ ही कहा गया | मुनियों के द्वारा विष्णुभक्ति, अग्निपूजा, अहिंसा, तपस्या और इन्द्रियदमन – ये म्लेच्छों के धर्म कहे गये हैं |
हनूक का पुत्र मतोच्छिल हुआ | उसका पुत्र लोमक हुआ, अन्तमें उसने स्वर्ग प्राप्त किया | तदनंतर उसका न्यूह नामका पुत्र हुआ, न्यूह के सीम, शम और भाव – ये तीन पुत्र हुए | न्यूह आत्मध्यान-परायण तथा विष्णुभक्त था | किसीसमय उसने स्वप्न में विष्णु का दर्शन प्राप्त किया और उन्होंने न्यूह से कहा – ‘वत्स ! सुनो, आजसे सातवे दिन प्रलय होगा |
हे भक्तश्रेष्ठ ! तुम सभी लोगों के साथ नावपर चढ़कर अपने जीवन की रक्षा करना | फिर तुम बहुत विख्यात व्यक्ति बन जाओगे | भगवान् की बात मानकर उसने एक सुदृढ़ नौका का निर्माण कराया, जो तीन सौ हाथ लम्बी, पचास हाथ चौड़ी और तीस हाथ ऊँची थी और सभी जीवों से समन्वित थी |
विष्णु के ध्यानमें तत्पर होता हुआ वह अपने वंशजो के साथ उस नावपर चढ़ गया | इसी बीच इन्द्रदेव ने चालीस दिनोंतक लगातार मेघोंसे मूसलधार वृष्टि करायी | सम्पूर्ण भारत सागरों के जलसे प्लावित हो गया | चारों सागर मिल गए, पृथ्वी डूब गयी, पर हिमालय पर्वत का बदरी-क्षेत्र पानीसे ऊपर ही रहा, वह नहीं डूब पाया |
अट्ठासी हजार बम्ह्वादी मुनिगण, अपने शिष्यों के साथ वही स्थिर और सुरक्षित रहें | न्यूह भी अपनी नौका के साथ वहीँ आकर बच गये | संसार के शेष सभी प्राणी विनष्ट हो गये | उससमय मुनियों ने विष्णुमाया की स्तुति की |
मुनियों ने कहा – ‘महाकाली को नमस्कार हैं, माता देवकी को नमस्कार हैं, विष्णुपत्नी महालक्ष्मी को, राधादेवी को और रेवती, पुष्पवती तथा स्वर्णवती को नमस्कार है | कामाक्षी, माया और माताको नमस्कार है |
महावायु के प्रभाव से –मेघों के भयंकर शब्द से एवं उग्र जल की धाराओं से दारुण भय उत्पन्न हो गया है | भैरवि ! तुम इस भयसे हम किंकरों की रक्षा करो |’ देवीने प्रसन्न होकर जल की वृद्धि को तुरंत शांत कर दिया | हिमालय की प्रान्तवर्ती सिशिना नाम की भूमि एक वर्ष में जलके हट जानेपर स्थल के रूप में दीखने लगी | न्यूह अपने वंशजों के साथ उस भूमिपर आकर निवास करने लगा |
शौनक ने कहा – मुनीश्वर ! प्रलय के बाद इससमय जो कुछ वर्तमान है, उसे अपनी दिव्य दृष्टी के प्रभाव से जानकार बतलायें |
सुतजी बोले – शौनक ! न्यूह नामका पूर्वंनिर्दिष्ट म्लेच्छ राजा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहने लगा, इससे भगवान् विष्णु ने प्रसन्न होकर उसके वंश की वृद्धी की | उसने वेद-वाक्य और संस्कृत से बहुर्भुत म्लेच्छ भाषा का विस्तार किया उधर कलि की वृद्धि के लिये ब्राह्मी भाषा को अपशब्दवाली भाषा बनाया और उसने अपने तीन पुत्रों – सीम, शम तथा भाव के नाम क्रमशः सिम, ह्यम तथा याकूत रख दिये |
याकूत के सात पुत्र हुए – जुम्र, माजूज, मादी, यूनान, तुवलोम, सक तथा तीरास | इन्हीं के नामपर अलग-अलग देश प्रसिद्ध हुए | जुम्र के दस पुत्र हुए | उनके नामों से भी देश प्रसिद्ध हुए | यूनान की अलग-अलग संताने इलीश, तरलीश,कित्ती और हुदा – इन चार नामोंसे प्रसिद्ध हुई तथा उनके नामसे भी अलग-अलग देश बसे |
न्यूह के द्वितीय पुत्र हाम (शम) से चार पुत्र कहे गये है – कुश, मिश्र, कुज, कनाआ | इनके नामपर भी देश प्रसिद्ध हैं | कुश के छ: पुत्र हुए – सवा, हबील, सर्वत, उर्गम, सवतिका और महाबली निमरुह | इनकी भी कलन, सिना, रोरक, अक्कद, वायुन और रसनादेशक आदि संताने हुई | इतनी बाते ऋषियों को सुनाकर सूतजी समाधिस्थ हो गये |
बहुत वर्षों के बाद उनकी समाधि खुली और वे कहने लगे – ‘ऋषियों ! अब मैं न्यूह के जेष्ठ पुत्र राजा सिम के वंश का वर्णन करता हूँ, म्लेच्छ राजा सिमने पाँच सौ वर्षोतक भलीभाँति राज्य किया | अर्कन्सद उसका पुत्र था, जिसने चार सौ चौतीस वर्षोतक राज्य किया |
उसका पुत्र सिंहल हुआ, उसने भी चार सौ साठ वर्षोतक राज्य किया | उसका पुत्र फलज हुआ, जिसने दो सौ चालीस वर्षोतक राज्य किया | उसका पुत्र रऊ हुआ, उसने दो सौ सैंतीस वर्षोतक राज्य किया | उसके जुज नामक पुत्र हुआ, पिताके समान ही उसने राज्य किया | उसका पुत्र नहुर हुआ, उसने एक सौ साठ वर्षोतक राज्य किया | हे राजन ! अनेक शत्रुओं का भी उसने विनाश किया | नहुर का पुत्र ताहर हुआ, पिताके समान उसने राज्य किया | उसके अविराम, नहुर और हारन – ये तीन पुत्र हुए |
हे मुने ! इसप्रकार मैंने नाममात्र से म्लेच्छ राजाओं के वंशो का वर्णन किया | सरस्वती के शापसे ये राज म्लेच्छ भाषा भाषी हो गये और अचारमे वृद्धि हुई, किन्तु मैंने संक्षेप में ही इन वंशों का वर्णन किया |
संस्कृत भाषा भारतवर्ष में ही किसी तरह बची रही | अन्य भागों में म्लेच्छ भाषा ही आनंद देनेवाली हुई |
सूतजी पुन: बोले – भार्गवतनव महामुने शौनक ! तीन सहस्त्र वर्ष कलियुग के बीत जानेपर अवन्ती नगरीमें शंख नाम का एक राजा हुआ और म्लेच्छ देश में शकों का राजा राज्य करता था | इनकी अभिवृद्धि का कारण सुनो |
दो हजार वर्ष कलियुग के बीत जानेपर म्लेच्छवंश की अधिक वृद्धि हुई और विश्व के अधिकांश भाग की भूमि म्लेच्छमयी हो गयी तथा भाँती-भाँती के मत चल पड़े |
सरस्वती का तट ब्रम्हावर्त क्षेत्र ही शुद्ध बचा था | मुशा नामका व्यक्ति म्लेच्छों का आचार्य और पूर्व पुरुष था | उसने अपने मतको सारे संसार में फैलाया |
कलियुग के आनेसे भारत में देवपूजा और वेदभाषा प्राय: नष्ट हो गयी | भारतमें भी धीरे-धीरे प्राकृत और म्लेच्छ भाषा का प्रचार प्रारम्भ हुआ |
व्रजभाषा और महाराष्ट्री – ये प्राकृत के मुख्य भेद है | इन भाषाओं के और भी चार लाख सूक्ष्म भेद है | प्राकृत में पानीय को पानी और बुभुक्षा को भूख कहा जाता हैं |
इसी तरहसे म्लेच्छ भाषा में पितृ को पैतर फादर और भ्रातू को बादर-ब्रदर कहते हैं | इसीप्रकार आहुति को आजु, जानु को जैनु, रविवार को संडे, फाल्गुन को फरवरी और षष्टि को सिक्सटी कहते हैं |
भारत में अयोध्या, मथुरा, काशी आदि पवित्र सात पूरियाँ हैं, उनमें भी अब हिंसा होने लग गयी हैं |डाकू, शवर, भिल्ल तथा मुर्ख व्यक्ति भी आर्यदेश – भारतवर्ष में भर गये है | म्लेच्छदेश में म्लेच्छ-धर्म को माननेवाले सुख से रहते हैं | यही कलियुग की विशेषता है | भारत और इसके द्वीपों में म्लेच्छों का राज्य रहेगा, ऐसा समझकर हे मुनिश्रेष्ठ ! आपलोग हरि का भजन करे |
इति श्री प्रतिसर्गपर्व का चौथा और पाँचवा अध्याय पूरा हुआ |
– हरि ॐ हरि ॐ –
जय सियाराम जय जय हनुमान
जय सियाराम जय जय हनुमान
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