रविवार, 25 नवंबर 2018

कृष्णाय पूर्णपुरुषाय परात्पराय यज्ञेश्वराय परकारणकारणाय।

।।हरी 🕉️ श्रीकृष्णाय नमः ।।
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                  भगवान श्री कृष्ण का अद्भूत रहस्य    

                       आचार्य डा.अजय दीक्षित
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कृष्णाय पूर्णपुरुषाय परात्पराय यज्ञेश्वराय परकारणकारणाय।

राधावराय परिपूर्णतमाय साक्षाद् गोलोकधामधिषणाय नम: परस्मै।।

अर्थात्–जो भगवान श्रीकृष्ण पूर्णपुरुष, पर से भी पर, यज्ञों के स्वामी, कारण के भी परम कारण, परिपूर्णतम परमात्मा और साक्षात् गोलोकधाम के अधिवासी हैं, इन परम पुरुष श्रीराधावर को हम सादर नमस्कार करते हैं।

                  जग उसका खेल तमाशा है,
                  वह नटवर अजब खिलाड़ी है।
                  उसके इस खेल तमाशे को,
                  क्या समझे मूढ़ अनाड़ी है।।

वह साधन-साध्य नहीं प्यारे,
बस कृपा-साध्य कहलाता है।
जिसको मिलना चाहे छलिया,
बस वही तो उसको पाता है।।

       यह नटवर नागर श्रीकृष्ण एक विचित्र खिलाड़ी हैं। कभी तो मात्र दर्शक बनकर देखते हैं, कभी स्वयं भी वह लीला में कूद पड़ते हैं और खेलने लगते हैं।

यह लीला कब से प्रारम्भ हुई है, कुछ पता नहीं। कब तक चलेगी, इसका भी कोई निर्णय नहीं। कभी प्रलय करके एक बार सारा खेल समेट भी लिया जाए, तो पुन: सृष्टि रचना का वही पुराना क्रम चालू हो जाता है।

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देवताओं के प्रार्थना करने पर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अवतार धारण करना स्वीकार कर लेते हैं। अब अवतार का आयोजन होने लगता है।

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इतने में वहां एक दिव्य रथ आता है और उसमें से उतरकर शंख-चक्र-गदा-पद्मधारी चतुर्भुज नारायण महाविष्णु सबके देखते-देखते भगवान श्रीकृष्ण के श्रीविग्रह में लीन हो गये।

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यह परम आश्चर्य देखकर सभी देवताओं को बड़ा विस्मय हुआ।

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तदन्तर दूसरे दिव्य रथ पर पृथ्वीपति श्रीविष्णु पधारते हैं और वे भी राधिकेश्वर भगवान में विलीन हो जाते हैं।

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दूसरा महान आश्चर्य देखकर सभी देवता विस्मित हो गए। उसी समय प्रचण्ड पराक्रमी भगवान नृसिंह पधारे और वे भी श्रीकृष्ण के तेज में समा गए।

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इसके बाद सहस्त्र भुजाओं से सुशोभित श्वेतद्वीप के विराट्पुरुष भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह में प्रविष्ट हो गए।

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फिर धनुष-बाण लिए कमललोचन भगवान श्रीराम, सीताजी व तीनों भाइयों सहित आए और श्रीकृष्ण के विग्रह में लीन हो गए।

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भगवान यज्ञनारायण अपनी पत्नी दक्षिणा के साथ पधारे, वे भी श्रीकृष्ण के श्यामविग्रह में लीन हो गए।

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तत्पश्चात् भगवान नर-नारायण जो जटा-जूट बांधे, अखण्ड ब्रह्मचर्य से शोभित, मुनिवेष में वहां उपस्थित थे, उनमें से नारायण ऋषि भी श्रीकृष्ण में लीन हो गए।

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किन्तु नर ऋषि अर्जुन के रूप में दृष्टिगोचर हुए। इस प्रकार के विलक्षण दिव्य दर्शन प्राप्तकर देवताओं को महान आश्चर्य हुआ और उन सबको यह भलीभांति ज्ञात हो गया कि परमात्मा श्रीकृष्ण ही स्वयं परिपूर्णतम भगवान हैं   ।

और वे पुन: भगवान की स्तुति करने लगे।

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा

🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼🔼जय सियाराम जय जय हनुमान

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