श्री रामायण की कथाएँ--
श्री बालमीक रामायण युद्ध कांड 92 सर्ग के अनुसार इंद्रजीत की मृत्यु के बाद शोक से अत्यंत व्याकुल रावण ने क्रोधित होकर श्री सीता जी का वध करने का निश्चय किया और तलवार लेकर अशोक वाटिका की ओर दौड़ा ,--
मंत्रियो , मंदोदरी आदि ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की परंतु वह नही माना --श्री सीता जी भी उसको क्रोध में आते देखकर भयभीत और चिंचित हो गयी थी फिर रावण के सुशील और शुद्ध विचार वाले मंत्री
" सुपार्श्व " के बहुत प्रार्थना करने पर वह रुका और सीताजी के वध करने से विरत हुआ । सुपार्श्व ने रावण के बल , पराक्रम की प्रसंशा करते हुए ,उसे नीति की बाते समझायी तथा बोला --
"" आज कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी है इसलिए आज ही युद्ध की तैयारी करके कल अमावस्या के दिन सेना के साथ प्रस्थान करो ""
हम विजया दशमी ---दशमी तिथि को मनाते है इस हिसाब से शायद केवल राम रावण का युद्ध 11 दिन चला होगा ?
श्री बालमीक रामायण के 105 वे सर्ग के अनुसार जब श्री राम चन्द्र जी युद्ध से थककर चिंता करते हुए युद्धभूमि में खड़े थे , इतने में ही रावण भी उनके सामने युद्ध के लिए उपस्थित हुआ --यह देखकर श्री अगस्तय मुनि जो देवताओ के साथ युद्ध देखने आए थे -ने श्री राम के पास आकर उनसे भुवन भास्कर का सनातन गोपनीय स्त्रोत --" आदित्य ह्रदय स्त्रोत "" जो परम् पवित्र व संपूर्ण शत्रुओ का नाश करने वाला है --व सर्व मंगल कारक है का उपदेश दिया व पाठ करने का सुझाव दिया --
उनसे स्त्रोत को सुनकर श्री राम का सारा दुख और चिंता समाप्त हो गयी और श्री राम ने इस पावन स्त्रोत को ह्रदय में धारण किया और तीन बार आचमन करके ,शुद्घ होकर , भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका 3 बार जाप किया -- उस समय देवताओ के मध्य में खड़े होकर भगवान सूर्य देव ने भगवान श्री रामचंद्र की ओर देखा --और निशाचर राज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्ष पूर्वक कहा --" रघुनन्दन अब जल्दी करो ""
श्री राम चरित मानस लंका कांड 93 के अनुसार अपने कटे सिरों के बदले नए सिरों के प्रगट हो जाने से ,अब मृत्यु भय से मुक्त हुए रावण ने एक प्रचंड शक्ति विभीषन की ओर चलायी --
"" आवत देखी सक्ति अति घोरा । प्रनतारति भजन पन मोरा ।।
तुरत विभीषन पीछे मेला । सन्मुख राम सहेउ सोई सेला ।।""
भक्तवत्सल श्री राम का वचन है कि वे शरण मे आये हुओं के समस्त कष्टों से उनकी रक्षा करते है ,इसलिए उन्होंने विभीषण को पीछे करके स्वयम अपनी छाती पर उस शक्ति के वार को झेला - प्रभु की कुछ समय की बेहोशी से ही सभी व्याकुल हो गए --और क्रोधित विभीषन भी रावण से भिड़ गया -- रावण ने नाना प्रकार से मायावी युद्ध किया -प्रभु ने छन भर में उसकी सभी माया को काट दिया ,--फिर रावण के शीशों की बाढ़ से चिंतित और दुखी सीता जी को त्रिजिता ने रावण की मृत्यु का रहस्य बताकर समझाया था --
श्री राम सब कुछ जानते हुए भी विभीषन से रावण की मृत्यु का रहस्य जानना चाहते थे , --
,""मरइ न रिपु श्रम भयउ विशेषा । राम विभीषन तन तब देखा ।। ( लंका कांड 2101 / 102 )
उमा काल मर जाकी इच्छा । सो प्रभु जन कर प्रीति परीक्षा ।।
सुनु सर्बग्य चराचर नायक । प्रनतपाल सुर मुनि सुखदायक ।।
नाभिकुण्ड पियूष बस याकेँ । नाथ जिअत रावण बल ताकें ।।
विभीषण की बात सुनकर राम ने --
खैंचि सरासन श्रवन लगि , छाड़े सर इकतीस । रघुनायक सायक चले ,मानहु काल फनीस ।।
एक बाण ने उसकी नाभि का अम्रत कुंड सोखा और बाकी के बाणों ने उसके बीस भजाओ और दसो सिरों को काट दिया --फिर उसके धड़ के भी दो टुकड़े कर दिए ।
तासु तेज समान प्रभु आनन , हरषे देखि संभु चतुरानन ।।
रावण की आत्मा प्रभु के मुख में प्रवेश करके लीन हो गयी -, श्री ब्रम्हा जी और शंकर जी भी यह देखकर चकित रह गए --
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एक किम्वदन्ती यह चल गयी है कि श्री राम ने मरते हुए रावण से धर्म की शिक्षा लेने लक्ष्मण जी को भेजा था -- इसकी सच्चाई का कोई प्रश्न ही नही उठता है -- रावण के सभी दसो सिर काट दिए गए थे तथा धड़ भी दो हिस्सों में काट दिया गया था , आश्चर्य है फिर भी कपोल कल्पनाएं चलती रहती है
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