पोस्ट --( 57 ) श्री रामायण जी की कथाएँ . ~सुरसा ,सिंहिका और लंकिनी , विज्ञान की दृष्टि में ये तीनो क्या हो सकती है ??
श्री सुंदर काण्ड में सीता जी की खोज में लंका जाते समय श्री हनूमान जी के सम्मुख तीन बाधाए आयी जिन्हें हनूमान जी ने परास्स्त किया ।
यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि~~ कथा बिलकुल उसी प्रकार सच है जैसी लिखी है ~मेरा उद्देश्य इसमें कोई संशय पैदा करना नही है ~
मगर आधुनिक वैज्ञानिक द्दषटि से यह सब क्या हो सकता है ? इसे समझना भी जरूरी है -
(1)पहली बाधा रावण के आधीन हुए देवताओ द्वारा भेजी गयी सांपो की माता सुरसा ~
सुरसा नाम अहिन्ह के माता -- पठइन्हि आई कही तेहिं बाता ।
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा -- सुनत बचन कह पवनकुमारा ।
जोजन भर तेंहि बदन पसारा - कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ।( सुंदर कांड 1/ 2 )
सत जोजन तेहि आनन कीन्हा , अति लघु रूप पवन सूत लीन्हा।
बदन पैठि पुनि बाहर आवा , माँगा बिदा ताहि सिर नावा ।
सुरसा का श्री हनूमान जी की बुद्धि व शक्ति परखने हेतु हनूमान जी को निगलने को मुंह फैलाना और श्री हनूमान जी द्वारा अत्यंत छोटे होकर उसमे से निकल आना ~
-यह क्या हो सकता है? ~टी वी पर रहस्यमयी घटनाओं में कुछ ऐसे रहस्यमयी जगहों का विवरण आता रहता है जहा जाकर किसी अज्ञात आकर्षण शक्ति के वशीभूत होकर -समुद्री जहाज - विमान आदि हमेशा के लिए गायब हो गए । इन्हें "बर्मूडा त्रिकोण क्षेत्र" के नाम से जाना जाता है । अंतरिक्ष में भी "ब्लैक होल "है जिनमे खिचकर तमाम तारे गायब होते रहते है । क्या यह अब मानव निर्मित भी हो सकते है ? जी हाँ ! कुछ वर्ष पूर्व जमीन के नीचे -गाड पॉइंट -जानने के लिए वैज्ञानिको ने ऐसा ही चुम्कीय क्षेत्र विकसित किया था तब दुनिया परेशान हो गयी थी की कही सारा विश्व उसमे खिँचकर नष्ट न हो जाए ।
हो सकता है कि लंका की रक्षा के लिए रावण के आदेश पर सांपो की माता सुरसा द्वारा सर्पो की तरह जकडने वाला चुम्बकीय ब्लैक होल बनाया गया हो -श्री हनूमान जी को निगलने की कोशिश में वह और बडा दूना चौगुना होता रहा परन्तु ~अपने बुद्धी कौशल और सिद्धियो से ~ अत्यंत छोटे होकर उस ब्लैक होल के मुख से श्री हनुमान जी सफलता से निकल आये और यह देवी और आसुरी वैज्ञानिक निर्मित बाधा हमेशा का लिए नष्ट हो गयी
2 ---रावण द्वारा लंका की रक्षा के लिए निर्मित दूसरी बाधा सिंहिका निशाचरी --
"" निश्चरी एक सिन्धु मंह रहई -करि माया नभ के खग गहई"" ~सिंहिका निशाचरी सभी उड़ने वाले जीवो की परछाही पकड़ लेती थी और उसे खा जाती थी -उडनेवाला नष्ट हो जाता था -यह परछाहीं पकड़ने की बात अभी तक समझ में नही आती थी परन्तु ज़रा ध्यान दीजिए -यह आटोमेटिक मिसाइलो से लैस रडार सिस्टम ही तो है -परछाहीं यानी रडार पर आये सिग्नल और अपने आप मिसाईल फायर होकर उड़ने वाली वस्तु का नष्ट होना -यह आधुनिक सिस्टम रावण की लंका की रक्षा में तैनात था -जिसे श्री हनुमान जी ने पूर्णतया नष्ट कर दिया ***
3--और रावण द्वारा लंका की रक्षा में नियुक्त तीसरी सर्व् सुरक्षित सिस्टम --श्री हनूमान जी ने -
" मसक (मच्छर) समान रूप कपि धरी-लंकहि चलेहू सुमिरि नरहरी ।
फिर भी लंकिनी राक्षसी ने श्री हनूमान जी को पकड लिया तब श्री हनूमान जी ने उसपर प्रहार कर उसे लंका से बिदा कर दिया -
जरा ध्यान दीजिए -आधुनिक बराक मिसाईल जो इजरायल के साथ भारत में भी अब बन रही है कुछ इसी प्रकार की है -परन्तु अभी लंकिनी समान विकसित नहीं है -दुश्मन की मिसायल फायर होते ही बराक मिसाइल जबाब में चलकर दुश्मन की चलती हुई मिसायल का उसकी गरमी से पीछा कर उसे नष्ट कर देती है
**** मगर -लंकिनी नामक रावण की मिसाइल इतनी विकसित थी कि वह दुश्मन का रूप कितना भी छोटा हो -उसकी"" मनोभावना ""अगर लंका के हित में नही है तब भी उसे पकड कर कि वह क्या करना चाहता है मित्र है या दुश्मन -उसे पहचान कर तुरंत नष्ट कर लंका की रक्षा करती थी ****
-यह लंकिनी मिसायल भी गुलाम देवताओं द्वारा रावण को लंका की रक्षा हेतु दी गयी थी जो नष्ट होकर पुन: देवलोक चली गयी
यह अति कठिन बाधाए थी जिस कारण लंका अभेद्द थी -सामने सिन्धु के पार लंका है सभी वानर आकाशचारी थे तब भी इन्ही कारणों से किसी की हिममत वहा जाने की नही थी -इसी कारण --
" अंगद कहई जाऊ मै पारा -जिय शंशय कछु फिरती बारा " ***
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