🌹🌼हनुमान जी किस गति से उड़ते थे!🌹🙏🙏
बचपन में हनुमान जी ने छलांग लगाई और सूर्य को निगलने पहुँच गए। जटायु के भाई सम्पाती द्वारा सिंधु पार लंकापुरी में सीताजी को रखने की सूचना के बाद जामवन्तजी के प्रोत्साहन पर सागर को उड़कर पार करना, लक्ष्मण जी को शक्तिबाण लगा तो हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने गए और संजीवनी को न पहचान पाने पर पूरा पर्वत उठाकर लाए।
ये सब प्रसंग बताते हैं कि हनुमानजी सम्भवतः अपने काल के सबसे बड़े अकाशमार्गी थे। उनके उड़ने की गति क्या होगी? उपरोक्त प्रसंगों से तो यही संकेत मिलते हैं कि उनकी गति आज के युग के सबसे तेज उड़ने वाले जेट से बहुत अधिक रही होगी। परन्तु कितनी अधिक? इसका सही सही थाह तो नहीं लगाया जा सकता लेकिन ग्रन्थों में आये कुछ तथ्यों के सहारे उनकी उड़ने की गति का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया जा सकता है।
जब लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध होने वाला था उससे पहले मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी की तपस्या शुरू की थी। मेघनाथ ने पूरे दिन साधना की थी। विभीषण ने बताया कि अगर मेघनाथ की साधना पूर्ण हो गई तो फिर तीनों लोकों में मेघनाथ को कोई नहीं मार सकेगा।
इसीलिए मेघनाथ की साधना भंग करके उसे अभी युद्ध के लिए ललकारना होगा। इसके बाद हनुमान जी सहित कई वानर मेघनाथ की तपस्या भंग करने गए। उन्होंने अपनी गदा के प्रहार से मेघनाथ की तपस्या भंग करने में सफलता प्राप्त की लेकिन तब तक रात हो चुकी थी।
लक्ष्मण जी ने रात को ही मेघनाथ को युद्ध के लिए ललकारा, रामायण के अनुसार उस समय रात्रि का दूसरा पहर शुरु हो चुका था। रात्रि का चार प्रहर होते हैं। प्रत्येक पहर 3 घंटे का। अब अगर आधुनिक काल की घड़ी के हिसाब से देखें तो लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध रात के करीब 9:00 बजे शुरू हुआ होगा।
यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मण जी और मेघनाथ के बीच बेहद घनघोर युद्ध हुआ था जो लगभग 1 पहर यानी 3 घंटे तक चला था उसके बाद मेघनाथ ने अपने शक्तिशाली अस्त्र का प्रयोग किया जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। लक्ष्मण जी के मूर्छित होने का समय लगभग 12:00 बजे के आसपास का रहा होगा।
लक्ष्मण जी के मूर्छित होने से समस्त वानर सेना में हड़कंप मच गया और मेघनाथ ने मूर्छित लक्ष्मण को उठाकर ले जाने की जी तोड़ कोशिश की पर सफल न पाने पर मेघनाथ वापस चला गया। श्री राम अपने प्राणप्रिय भाई को मूर्छित देखकर शोक में डूब गए।,
उसके बाद विभीषण के कहने पर हनुमान जी लंका से सुषेण वैद्य को उठा लाए। लक्ष्मण जी अगर 12:00 बजे मूर्छित हुए तो जाहिर है उसके बाद श्री राम के शोक और विभीषण द्वारा सुषेण वैद्य लाने के लिया कहना और हनुमान जी द्वारा सुषेण वैद्य को उठा लाना इन सब में कम से कम 1 घंटा तो लग ही गया होगा। यानी रात्रि के करीब 1:00 बज चुके होंगे|
इसके बाद वैद्य द्वारा लक्ष्मण की जांच करने और उनके प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने की सलाह देने और हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान करने में भी कम से कम आधा घंटा जरूर लगा होगा।
तो हम ये मान सकते हैं कि बजरंगबली आज के समय के अनुसार करीब रात्रि में 1:30 पर संजीवनी बूटी लाने के लिए रावण की नगरी से उड़े होंगे। जहां तक सवाल उनके वापस आने का है तो निश्चित ही वह सूर्य उदय होने से पहले वापस आ गए होंगे।
यानि बजरंगबली की वापसी का समय लगभग 5:00 बजे का रहा होगा। 1:30 बजे लक्ष्मण जी की जान बचाने के लिए हनुमान जी उड़े और 5:00 बजे तक वापस आ गये इसका मतलब हनुमान जी 3:30 घंटे में द्रोणागिरी पर्वत उठाकर वापस आ गए।
लेकिन मित्रों इन 3:30 घंटों में से भी हमें कुछ समय कम करना होगा क्योंकि लंका से द्रोणागिरी के मार्ग में कालनेमि से भी भेंट हुई। फिर सरोवर में एक मगरमच्छ को उन्होंने मारा जो कि शापित देवपुरुष था और फिर उससे उन्हें कालनेमि के कपटमुनि होने की बात पता चली औए उन्होंने उसका वध भी किया।
इन सब में भी हनुमान जी का कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। उसके बाद बजरंगबली ने उड़ान भरी होगी और द्रोणागिरी पर्वत जा पहुंचे लेकिन हनुमान जी कोई वैद्य तो नहीं थे इसीलिए संजीवनी बूटी को पहचान नहीं सके और संजीवनी को खोजने के लिए वह काफी देर तक भटकते रहे होंगे।
इसमें भी उनका कम से कम आधा घंटा जरूर खराब हुआ होगा। बूटी को ना पहचान पाने की वजह से हनुमान जी ने पूरा पर्वत ही उठा लिया और वापस लंका की ओर जाने लगे। लेकिन हनुमान जी के लिए एक और मुसीबत आ गई।
हुआ यह की जब पवन पुत्र पर्वत लिए अयोध्या के ऊपर से उड़ रहे थे तो श्री राम के भाई भरत ने सोचा कि यह कोई राक्षस अयोध्या के ऊपर से जा रहा है और उन्होंने बिना सोचे समझे महावीर बजरंगबली पर बाण चला दिया। बाण लगते ही वीर हनुमान श्री राम का नाम लेते हुए नीचे आ गिरे।
हनुमान जी के मुंह से श्री राम का नाम सुनते ही भरत दंग रह गए और उन्होंने हनुमानजी से उनका परिचय पूछा तो उन्होंने (हनुमान जी) ने उन्हें राम रावण युद्ध के बारे में बताया। लक्ष्मण के मूर्छित होने का पूरा किस्सा सुनाया तब सुनकर वह भी रोने लग गए और उनसे क्षमा मांगी। हनुमानजी का उपचार किया गया।
और हनुमान जी वापस लंका की ओर चले। लेकिन इन सभी घटनाओं में भी बजरंगबली के कीमती समय का आधा घंटा फिर से खराब हो गया। अब हनुमान जी के सिर्फ उड़ने के समय की बात करें तो सिर्फ दो घंटे थे और इन्हीं दो घंटों में वह लंका से द्रोणागिरी पर्वत आए और वापस गए।
अब अगर हम उनके द्वारा तय की गई दूरी को देखें तो श्रीलंका और द्रोणागिरी पर्वत तक की दूरी लगभग “2500 किलोमीटर” है यानी कि यह दूरी आने जाने दोनों तरफ की मिलाकर 5000 किलोमीटर बैठती है
और बजरंगबली ने यही 5000 किलोमीटर की दूरी 2 घंटे में तय की। इस हिसाब से हनुमान जी के उड़ने की रफ्तार लगभग 2500 किलोमीटर प्रति घंटा की दर से निकलती है। तो इसकी तुलना अगर ध्वनि की गति से करें तो हनुमानजी की गति ध्वनि से लगभग 2गुनी बैठती है।
भारत फ्रांस से जो राफेल विमान खरीद रहा है उसकी गति 1115 किमी प्रतिघंटा और रूस से मिले सुखोई की 2100 km प्रतिघंटा, मिग 29 की रफ्तार 2400 किलोमीटर प्रति घंटा है. इस प्रकार कहा जा सकता है हनुमान जी आधुनिक भारत को प्राप्त किसी भी लड़ाकू विमान से अधिक थी मौजूद सबसे तेज लड़ाकू विमान से भी तेज उड़ते थे।
यह एक अनुमानमात्र है, हनुमानजी की गति इससे कहीं अधिक भी हो सकती है क्योंकि सूर्य तक पहुँचने और वहां इंद्र के प्रहार से मूर्छित होकर गिरने को आधार बनाकर गणना की जाय तो परिणाम कुछ और होंगे पर सूर्य को लीलने की कोशिश के प्रसंग में बहुत से छोटे-छोटे सहायक प्रसंग है और गणना जटिल हो सकती है। पोस्ट उचित लगी हो तो इस पेज को लाइक करना और पोस्ट को नीचे शेयर बटन दबाकर शेयर करना न भूलें।
!!जय-जय सियाराम!!
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