।।।। सिद्ध - कुंजिका स्तोत्र ।। में ।। समाई है सारी सृष्टी।।
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।। अदभुत रहस्य ।। --------ऊँ------।। डा. अजय दीक्षित ।।
सिद्ध-कुंजिका-स्तोत्र का पाठ
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शिव उवाच-श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि, कुंजिका-स्तोत्रमुत्तमम्। येन मंत्र-प्रभावेण, चंडी-जापः शुभो भवेत्। न कवचं नार्गला-स्तोत्रं, कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं चं, न न्यासों न च वार्चनम्।।कुंजिका-पाठ-मात्रेण, दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्। अति-गुह्यतरं देवि! देवनामपि दुर्लभम्। मारणं मोहनं वश्यं, स्तंभनोच्चाटनादिकम्। पाठ-मात्रेण संसिद्ध्येत कुंजिका-स्तोत्रमुत्तमम्।।
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मंत्र---------ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।
नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, नमस्ते मधु-मर्दिनि। नमः कैटभ-हारिण्यै, नमस्ते महिषार्दिनि।
नमस्ते शुंभ-हंत्र्यै च निशुभांसुर-घातिनी। जाग्रतं हि महादेवी! जपं सिद्धिं कुरुष्व में।
ऐंकारी सृष्टृरूपायै, ह्रींकारी प्रतिपालिका। क्लीकारी काल-रूपिन्यै, बीज-रूपे नमोस्तुते।
चामुंडा चंडघाती च, यैकारी वर-दायिनी। विच्चै चाभयदा नित्यं, नमस्ते मंत्र-रूपिणि।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी, वां वीं वागधीश्वरी तथा। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवी शां शीं शूं मे शुभं कुरु।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे! भवान्यै ते नमो नमः।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तंं कुरु-कुरु स्वाहा। पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा। सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व में।
फल श्रुति
इदं तु कुंजिका-स्तोत्रं मंत्र-जागर्ति-हेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति। यस्तु कुंजिकया देवि! हीनां सप्तशतीं पठेत्। न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।
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।। ब्याख्या ।।
बहुत लोग हमारे प्राचीन शास्त्रों और ऋषि मुनियों के ज्ञान कों बहुत ही हलके में लेते है. वे जानते नहीं की प्रत्येक स्तोत्र अपने आप में गुढ अर्थ निहित है. और अगर उसे समझ लिया जाए तो फिर क्या असंभव है ।
समर्थ श्री सदगुरुदेव श्री जगजीवन साहेब ने "अघ-बिनाश" नामक ग्रन्थ में स्वर्ण निर्माण करने की विधि का उल्लेख किया है । संसार को बताया है स्वर्ण की तरह- -किसी भी वस्तु का निर्माण करना सम्भव है। यदि उसे सिद्ध- कुन्जिका सिद्ध है तो -------------
--- देखिए कैसे सम्भव है ---
“ऐंकारी सृष्टि रूपायै” :---------
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अर्थात ऐं बीज मंत्र की सहायता से कुछ भीनिर्माण किया जा सकता है, और जब मै कहता हूँ की कुछ भी मतलब कुछ भी ही है... इसलिए जब खरल क्रिया करते हुए इस मंत्र का जाप किया जाय तो पारद में सृजन की शक्ति निर्मित हो जाती है (सदगुरुदेव जी ने भीइस बीज मन्त्र के बारे में बहुत वर्णन किया है ) इस ऐं मंत्र के द्वारा बिना गर्भ के बालक कों जन्म दिया जा सकता है. इस् क्रिया कों महर्षि वाल्मीकि ने त्रेता युग में सफलतापूर्वक प्रदार्शित किया था जब कुश(भगवन राम के पुत्र) का जन्म हुआ था. मै यहाँ प्रक्रिया तो नहीं परंतु पारद से इसका क्या संबंध है ये बताने का प्रयास कर रहा हूँ।
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“ह्रींकारी प्रतिपालिका”
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अर्थात माया बीज, इस् भौतिक जगत में किसी भीधातु का रूपांतरण कर समस्त भौतिक सुखो का उपभोग किया जा सकता है. जब ह्रीं मंत्र का जाप रूपांतरण क्रिया के दौरान किया जाए तो सफल रूपान्तर संभव है. और इससे सफलता के प्रतिशत द्विगुणित भी हो जाते है ।
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“क्लींकारी काम रूपिणयै”
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अर्थात क्लीं बीज मंत्र आकर्षण के लिए होता है जससे बंधन क्रिया कों सफलता पूर्वक संपन्न किया जा सकता है. यह बीज साधक की देह कों दिव्य कर विशुद्द पारद सामान कर देता है. यह काम बीज आतंरिक अल्केमी में उपयोग होता है.. इस संबंधित कई साधनाए सदगुरुदेव ने दि है ।
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“बीजरूपे नमोस्तु ते” -----
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अर्थात यहाँ कहा गया है की मै नमन कर्ता हू इन बीज रूपी शक्तियों कों. हे पारद मै बीज स्वरूप में आपकी पूजा करता हू. ये इस् बात का भी प्रतीक है की मै ऐसा करके पारद कों बीज स्वरूप में पूज कर सिद्ध सूत का भी निर्माण करता हू. जिस से समस्त संसार की दरिद्रता का नाश हो सकता है. जो प्रत्येक रसायनशास्त्री का ध्येय हो सकता है ।
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“चामुंडा चंडघाती”
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अर्थात मृत्यु कों भी परास्त कर, अगर प्रत्येक संस्कार कों सफलता पूर्वक संपन्न किया जाए तो इस से रोग रूपी मृत्यु पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है, चंड यहाँ दानव का घोतक है. यहाँ “च” शब्द नाश/मृत्यु हे जिसे पारद में प्रेरित कर ऐसा पारद निर्माण किया जा सकता हे जिससे अकाल मृत्यु, इच्छा मृत्यु प्राप्त की जा सकती है ।
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“च यैकारी वरदायिनी”
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अर्थात समस्त प्रकार के वरदान देने वाले पारद जो इस् सम्पूर्ण क्रिया का फल है ।
“विच्चै चाभयदा नित्यम नमस्ते मंत्ररुपिणी ”
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अर्थात समस्त प्रकार के आरक्षण इस पारद तंत्र विज्ञान में है इस विच्चै बीज में. इस से सभी प्रकार की विनाशकारी शक्तियों से आरक्षण प्राप्त किया जा सकता हे, अभयम अर्थात एक दिव्यता जहा भय वास ही नहीं करता और जो केवल इसी से संभव है ।
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“धां धीं धूं धूर्जटे”
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अर्थात समस्त प्रकार के प्रलयकारी शक्तियो कों इस से वश में किया जा सकता है. धुर्जटा शक्ति (जो शिव का ही एक रूप है ) अर्थात ऐसे सम्पुटित पारद से हमारे समस्त दोष जो शत्रुवत है उनसे भी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है ।
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“वां वीं वूं वागधीश्वरी”
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अर्थात जो माँ सरस्वती से संबंधित है. (ज्ञान की देवी) - यहाँ माँ सरस्वती पारद से कैसे संबंधित है ? समर्थ श्री जगजीवन साहेब बताते हैं --- सा + रस + वती . यहाँ पारद कों रस कहा है (अब मुझे समझ आया की प्रत्येक देवी के नाम में एक गुप्त अर्थ छुपा है) ।
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“क्रां क्रीं क्रूं कलिका देवी”
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अर्थात बिना माँ काली के, जो काल की देवी है, और निश्चित काल के बिना कैसे हम पारद संस्कार कर सकते हे अपितु हम तो सभी काल के बंधन में है. इसीलिए उनकी कृपा से ही पारद के द्वारा काल पर विजय प्राप्त की जा सकती है. इसीलिए इस् बीज मंत्र द्वारा असंभव कों भी सम्भव किया जा सकता है। इसी सन्दर्भ में महाकाली साधना इस् बीज मंत्र का विश्लेषण किया है ।
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“शां शीं शूं में शुंभ कुरु”
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अर्थात इस संसार की सभी अचूक एवं धनात्मक शक्तियाँ सफलता प्राप्ति हेतु हमें सहायता करे। और इस् बीज मंत्र द्वारा ये सभी पारद में समाहित हो जाये।
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“हुं हुं हुंकार रूपिणयै”
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यह बीज मंत्र आधारित है नियंत्रण शक्ति पर. पारद अग्नि स्थायी क्रिया इसी पर आधारित है. ‘समर्थ श्री जगजीवन साहेब सदगुरुदेव जी ने एक एसी क्रिया का उल्लेख किया है जिस में उन्होंने केवल श्वास द्वारा पारद शिवलिंग का निर्माण किया है. केवल ‘हुं’ बीज मंत्र जो किसी भी वस्तु कों आकार देने में संभव है और ये केवल इसी बीज मंत्र द्वारा ही यह संभव हो सकता है. ठीक जेसे स्तम्भन क्रिया में होता है. और बहुत से रसायन शास्त्रियों के लिए अग्निस्थायी पारद बनाना उनका स्वप्न रहता है. जो केवल इस बीज मंत्र द्वारा ही संभव है।
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“जं जं जं जम्भनादिनी”
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अर्थात सभी प्रकार की ज्रभंकारी शक्तियों जो मुक्ति हेतु उपस्थित होती है।
“भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी....”
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अर्थात माँ भैरवी (भगवती पार्वती) के आशीर्वाद के बिना कैसे हमें पारद के लाभ मिल सकते है. हे माँ मै आपका नमन करता हूँ की आपकी कृपा के बिना इस बीज मंत्र से संस्कारित पारद का लाभ समस्त संसार कों मिल ही नहीं सकता ।
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“अं कं चं.....
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स्वाहा ” ये सभी बीज मंत्र पारद की प्राण प्रतिष्ठा के लिए उपयोग होते है. प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही इस में प्राणों का संचार होता है और तभी ये पारस पत्थर में परावर्तित होता है साधक के लिए. इस् क्रिया कों करने का संकेत ये बीज मंत्र ही दर्शाते है. और इन्ही के कारण ये क्रिया संपन्न होती है।
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“पां पीं पूं पार्वती पूर्णा”
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जेसा की आप सभी जानते है की गंधक अर्थात पार्वती बीज हे रसायन तंत्र की भाषा में, और बिना इस् बीज के कैसे भला पारद(शिव बीज अर्थात वीर्य) का बंधन संभव है.. इसीलिए इन तीन बीज मंत्रो से ही पारद बंधन क्रिया संपन्न होती हैा
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“खां खीं खूं खेचरी तथा”
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इसका अर्थ है कैसे खेचरत्वता अर्थात आकाश गमन क्षमता कों पारद में संस्कारित कर इन तीन बीज मंत्रो से इस् क्रिया कों संपन्न कीया जा सकता है. हमने बहुत से लेखो में खेचरी गुटिका के बारे में पढ़ा है परन्तु इसका निर्माण केसे होता है ? परन्तु इस् बिंदु पर सभी मौन हो जाते है.. अगर वर्ण माला में अ से ज्ञ तक (हिंदी शब्दमाला ५२ अक्षरों की होती है ) परन्तु इसमें किस अक्षर का उपयोग होता है खेचरी गुटिका के निर्माण में ये एक अद्भुत रहस्य है. उपरोक्त पंक्तिय वही रहस्य उद्घाटित करती है. ये हमारा सौभाग्य ही होगा अगर हम सदगुरुदेव के श्री चरणों में इस् उपलक्ष साधना एवं वही रहस्य का प्रकटीकरण की प्रर्थना करे और हमें वे प्रदान करे।
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“सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं”–
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अर्थात ये तीन बीज है जो हमें सिद्धि प्रदान करने में सहायक होते है साथ ही साथ पारद विज्ञान में भि, क्यों की अगर सिर्फ रसायन क्रिया कर के ही सब हासिल होना होता तो अब तक वैज्ञानिको ने सभी सिद्धियाँ प्राप्त कर ली होती. जब की उनके पास तो सभी सुविधाए उपलब्ध होती है. इसीलिए यह स्पष्ट है की मंत्र सिद्धि इस् विज्ञान का अभिन्न अंग है सफलता प्राप्ति हेतु.
“अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती” भगवान शिव कहते है हे पार्वती जी से की इस रहस्य कों कभी भी ऐसे स्थान पर उजागर नहीं करना चाहिए जहा साधक सदगुरू और पारद के प्रति समर्पित ना हो.
“न तस्य जायते सिद्धिररणये रोदनं यथा” अर्थात जिस किसी कों अगर इन सूत्रों का ज्ञान नहीं होगा तो वह कदापि पारद विज्ञान में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता.. उसके सभी किये प्रयास व्यर्थ हो जायेंगे इन सूत्रों के बिना इसीलिए ये तो वही बात हुई की अरण्य में अकेले विलाप करना ।
जय श्री राम
जय हनुमान
।।ऊँ जगजीवन दासाय नम: ।।
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