गुरुवार, 24 जनवरी 2019

मूल नक्षत्र का निवास

मूल नक्षत्र शान्ति का चक्कर
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आचार्य डा.अजय दीक्षित
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मुहूर्त चिंतामणि नामक प्रसिद्ध ज्योतिष पुस्तक में साफ़ साफ़ कहा गया! है ।
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हिन्दी माह आषढ भादों आश्विन माघ इन माह में मूल
नक्षत्र का निवास स्वर्ग में होता है ।

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श्रावन, कार्तिक, चैत्र और पूस महीने में मूल का निवास
भूमि पर होता है ।

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फागुन ,ज्येष्ठ, अगहन और वैशाख महीने में मूल
नक्षत्र का निवास पाताल लोक में होता है ।

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इस प्रकार श्रावन, कार्तिक ,चैत्र ,और पूस महीने मे जो
बच्चा उत्पन्न हो उसी के मूल की शान्ति
होती है अन्यथा नही / जब
की यदि शान्ति अन्य महीनो में पैदा
की शान्ति कर दी जाए तो उलटा नुकशान हो
जाता है।

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दूसरी बात यह है की नक्षत्र के चरणों
का भी भेद है / सभी चरण अशुभ
नही होते / जो इस प्रकार है -अश्वनी

का पहला चरण पिता के लिए ख़राब होता है इस लिए शान्ति करे /
अश्लेखा सभी चरण ख़राब होते है /इस लिए शान्ति
जरुरी है / मघा के पहले दो चरण ख़राब होते है इस
लिए शान्ति जरुरी है /ज्येथा नक्षत्र के
भी चारो चरण ख़राब है /मूल नक्षत्र पहले तिन
चरण ख़राब है इस लिए शान्ति करे /अंत में रेवती का
अन्तिम चरण ख़राब होता है बाकी और
नही इस लिए शान्ति करे /उम्मीद है
काफ़ी हद तक आप की उलझन दूर हुई
हो गी /
प्रतेक नक्षत्र के चार चरण होते है /जो चरण ख़राब बताये है
उनके अलावा अन्या चरण की शान्ति जरुरी
नही है बल्कि शान्ति कर ने पर उलटा असर हो जाता
है

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

कलियुग में श्री हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का अदभुत रहस्य :-------


   कलियुग में श्री हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का अदभुत रहस्य :--- आचार्य डा.अजय दीक्षित----" की सत्य सोंच"     
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            होइ हैं सोइ जो राम रची राखा ।
को करि तर्क बढ़ावहि शाखा ।।
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हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे । वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं । वे कहां रहते हैं, कब–कब व कहां–कहां प्रकट होते हैं और उनके दर्शन कैसे और किस तरह किए जा सकते हैं, हम यह आपको बताएंगे एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप सचमुच ही चौंक जाएंगे
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
++++++++++++++++++++++++++++++++ संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
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अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरिभक्त कहाई ।।
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और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई ।।
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चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है । हनुमान को छोड़कर और किसी देवी–देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है । द्वंद्व में रहने वाले का हनुमानजी सहयोग नहीं करते हैं । हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं । किसी भी व्यक्ति को जीवन में श्रीराम की कृपा के बिना कोई भी सुख–सुविधा प्राप्त नहीं हो सकती है । श्रीराम की कृपा प्राप्ति के लिए हमें हनुमानजी को प्रसन्न करना चाहिए ।                         
+++++++++++++++++++++++++++++++++++   राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
+++++++++++++++++++++++++++++++++++  ।।उनकी आज्ञा के बिना कोई भी श्रीराम तक पहुंच नहीं सकता । हनुमानजी क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी ? हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे । वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं । हनुमानजी को धर्म की रक्षा के लिए अमरता का वरदान मिला था । इस वरदान के कारण आज भी हनुमानजी जीवित हैं और वे भगवान के भक्तों तथा धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं । जब कल्कि रूप में भगवान विष्णु अवतार लेंगे तब हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि तथा मार्कण्डेय रिषि  सार्वजनिक रूप से प्रकट हो जाएंगे ।
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क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी?
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कलियुग में श्रीराम का नाम लेने वाले और हनुमानजी की भक्ति करने वाले ही सुरक्षित रह सकते हैं । हनुमानजी अपार बलशाली और वीर हैं और उनका कोई सानी नहीं है ।      +++++++++++++++++++++++++++++++++++धर्म की स्थापना और रक्षा का कार्य ४ लोगों के हाथों में है –
+++++++++++++++++++++++++++++++++++  दुर्गा, भैरव, हनुमान और कृष्ण ।                                  चारों जुग परताप तुम्हारा ः है प्रसिद्ध जगत उजियारा ।।
++++++++++++++++++++++++++++++++++  लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञतास्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं।
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यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले । तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशयः….
अर्थात ‘हे वीर श्रीराम ! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें ।’ इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं ।                –‘एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशयः । चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत ते भविता कीर्तिः शरीरे प्यवस्तथा । लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा ।’          अर्थात् –‘हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है । संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही । जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी ।’
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा ।
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देखिए?  चारों युगों मे हनुमान जी को -------
१.    त्रेतायुग में हनुमान ः त्रेतायुग में तो पवनपुत्र हनुमान ने केसरीनंदन के रूप में जन्म लिया और वे राम के भक्त बनकर उनके साथ छाया की तरह रहे । वाल्मीकि ‘रामायण’ में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का उल्लेख मिलता है ।
२.    द्वापर में हनुमान ः द्वापर युग में हनुमानजी भीम की परीक्षा लेते हैं । इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है । महाभारत में प्रसंग है कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाते हैं । इस तरह एक बार हनुमानजी के माध्यम से श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ की शक्ति के अभिमान का मान–मर्दन करते हैं ।
३.    कलयुग में हनुमान ः यदि मनुष्य पूर्ण श्रद्घा और विश्वास से हनुमानजी का आश्रय ग्रहण कर लें तो फिर तुलसीदासजी की भांति उसे भी हनुमान और राम–दर्शन होने में देर नहीं लगेगी । कलियुग में हनुमानजी ने अपने भक्तों को उनके होने का आभास कराया है ।                   
+++++++++++++++++++++++++++++++++++ ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे –

‘चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर । तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर …’

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कहां रहते हैं हनुमानजी ? हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है ।


 उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे । एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था ।

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‘यत्र–यत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकान्जलि ।
वाष्प वारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तक ।।’


अर्थात कलियुग में जहां–जहां भगवान श्रीराम की कथा–कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां हनुमानजी गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं ।

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सीताजी के वचनों के अनुसार –

‘अजर–अमर गुन निधि सुत होऊ ।। करहु बहुत रघुनायक छोऊ … ।’


 गंधमादन पर्वत क्षेत्र और वन ः गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथों में हुआ है । महाभारत की पुरा–कथाओं में भी गंधमादन पर्वत का वर्णन प्रमुखता से आता है । हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यहां के विशालकाय पर्वतमाला और वन क्षेत्र में देवता रमण करते हैं । पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ऋषि ने भी तपस्या की थी ।


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 गंधमादन पर्वत के शिखर पर किसी भी वाहन से नहीं पहुंचा जा सकता । गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं । वे सब यहां निर्भीक विचरण करते हैं । वर्तमान में कहां है गंधमादन पर्वत ? ः– इसी नाम से एक और पर्वत रामेश्वरम के पास भी स्थित है, जहां से हनुमानजी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी, लेकिन हम उस पर्वत की नहीं बात कर रहे हैं । हम बात कर रहे हैं हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की । यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था । सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था । आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है । पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था ।

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कैसे पहुंचे गंधमादन ः पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था । इस क्षेत्र में दो रास्तों से जाया जा सकता है । पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए । संभवत महाभारत काल में अर्जुन ने असम के एक तीर्थ में जब हनुमानजी से भेंट की थी, तो हनुमानजी भूटान या अरुणाचल के रास्ते ही असम तीर्थ मे आए होंगे ।

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गुरुवार, 17 जनवरी 2019

रुद्राक्ष धारण से कौन सी कामना पूरी होती है

हर रुद्राक्ष का है एक विशेष मंत्र, पढ़ें विशेष जानकारी - किस रुद्राक्ष धारण से कौन सी कामना पूरी होती है -
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आचार्य डा.अजय दीक्षित
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क्या है रुद्राक्ष - कुछ जानने योग्य बातें :
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शिव तप के समय क्षुब्ध हो उठे और उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंद धरती पर गिरी यही रुद्राक्ष के फल के रुप में परिणित हुई। इनमें असीम शक्ति होती हैं। रुद्राक्ष जितना छोटा होता हैं, उतना अधिक प्रभावशाली होता हैं। जिसमे पिरोने योग्य छेद न हो, टूटा हो, जिसे कीड़े ने खा लिया हो, वह रुद्राक्ष नहीं धारण करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार रुद्राक्ष कोई भी धारण कर सकता हैं। रुद्राक्ष चौदह प्रकार के होते हैं। उनका अलग-अलग फल एवं पहनने के मंत्र हैं।
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किस रुद्राक्ष धारण करने से कौन सी कामना की पूर्ती होती है - मन्त्र :
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एक मुखी रुद्राक्ष- लक्ष्मी प्राप्ति,भोग एवं मोक्ष के लिए 'ॐ ह्रीं नम:' धारण मंत्र के साथ पहनें।

दो मुखी रुद्राक्ष- कामनाओं की पूर्ति के लिए धारण मंत्र-'ॐ नम:' के साथ पहनें।

तीन मुखी रुद्राक्ष -विद्या प्राप्ति के लिए धारण मंत्र-'ॐ क्लीं नम:' को बोलकर पहनें।

चार मुखी रुद्राक्ष -धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्ति के लिए धारण मंत्र-'ॐ ह्रीं नम:' का स्मरण कर पहनें।

पांच मुखी रुद्राक्ष -मुक्ति एवं मनोवांछित फल हेतु धारण मंत्र-ॐ ह्रीं क्लीं नम: के साथ पहनें।

छ: मुखी रुद्राक्ष-पाप से मुक्ति हेतु मंत्र-ॐ ह्रीं ह्रुं नम: के साथ धारण करें

सात मुखी रुद्राक्ष - ऐश्वर्यशाली होने के लिए मंत्र ॐ हुं नम: का ध्यान कर इस रुद्राक्ष को धारण करें।
आठ मुखी रुद्राक्ष-लंबी आयु प्राप्ति के लिए ॐ हुं नम: धारण मंत्र के साथ पहनें।

नौ मुखी रुद्राक्ष से सभी कामना पूर्ण होती हैं। इसे बाएं हाथ में ॐ ह्रीं ह्रुं नम: मंत्र के साथ धारण करें।

दस मुखी रुद्राक्ष संतान प्राप्ति हेतु मंत्र-ॐ ह्रीं नम: के साथ पहनें।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष सर्वत्र विजय प्राप्त करने हेतु इस धारण मंत्र-ॐ ह्रीं ह्रुं नम: के साथ पहनें।

बारह मुखी रुद्राक्ष रोगों में लाभ हेतु मंत्र-ॐ क्रौं क्षौं रौं नम: के साथ पहनें।

तेरह मुखी रुद्राक्ष सौभाग्य एवं मंगल की प्राप्ति के लिए मंत्र-ॐ ह्रीं नम: के साथ पहनें।

चौदह मुखी रुद्राक्ष समस्त पापों का नाश करता है। इसे धारण मंत्र-ॐ नम: के साथ पहनें।

इसके अलावा एक गौरीशंकर रुद्राक्ष भी होता है। यह समस्त प्रकार के सुख प्रदान करने वाला होता है। इसे बिना किसी मंत्र के मात्र शुद्धि कर धारण कर सकते हैं।
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मंगलवार, 15 जनवरी 2019

ब्राह्मण को क्यों_देवता कहा जाता है।🌺

🌺🙏🏻*ब्राह्मण को क्यों_देवता कहा जाता है।🌺🙏🏻

_*तो आइये देखते है हमारे
*धर्मशास्त्र क्या कहते है इस विषय में----*_
           
                *शास्त्रीय_मत*

_पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।_
_सागरे  सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।_
_चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः  ।_
_सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया  ।।_
_अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।_
_नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।_

*•अर्थात पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी ब्राह्मण के दक्षिण पैर में  है । चार वेद उसके मुख में हैं  अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं इसवास्ते ब्राह्मण को पूजा करने से सब देवों का पूजा होती है । पृथ्वी में ब्राह्मण जो है विष्णु रूप है इसलिए  जिसको कल्याण की इच्छा हो वह ब्राह्मणों का अपमान तथा द्वेष  नहीं करना चाहिए ।*

_•देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता: ।_
_ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता ।_

*•अर्थात् सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मन्त्रों के अधीन हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन हैं इस कारण ब्राह्मण देवता हैं ।*   

_ऊँ जन्मना ब्राम्हणो, ज्ञेय:संस्कारैर्द्विज उच्चते।_
_विद्यया याति विप्रत्वं, त्रिभि:श्रोत्रिय लक्षणम्।।_

*ब्राम्हण के बालक को जन्म से ही ब्राम्हण समझना चाहिए।*
*संस्कारों से "द्विज" संज्ञा होती है तथा विद्याध्ययन से "विप्र" नाम धारण करता है।*

*जो वेद,मन्त्र तथा पुराणों से शुद्ध होकर तीर्थस्नानादि के कारण और भी पवित्र हो गया है,वह ब्राम्हण परम पूजनीय माना गया है।*

ऊँ पुराणकथको नित्यं, धर्माख्यानस्य सन्तति:।_
_अस्यैव दर्शनान्नित्यं ,अश्वमेधादिजं फलम्।।_

*जिसके हृदय में गुरु,देवता,माता-पिता और अतिथि के प्रति भक्ति है। जो दूसरों को भी भक्तिमार्ग पर अग्रसर करता है,जो सदा पुराणों की कथा करता और धर्म का प्रचार करता है ऐसे ब्राम्हण के दर्शन से ही अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है।*

पितामह भीष्म जी ने पुलस्त्य जी से पूछा--
*गुरुवर!मनुष्य को देवत्व, सुख, राज्य, धन, यश, विजय, भोग, आरोग्य, आयु, विद्या, लक्ष्मी, पुत्र, बन्धुवर्ग एवं सब प्रकार के मंगल की प्राप्ति कैसे हो सकती है?*
यह बताने की कृपा करें।*

*पुलस्त्यजी ने कहा--*
राजन!इस पृथ्वी पर ब्राम्हण सदा ही विद्या आदि गुणों से युक्त और श्रीसम्पन्न होता है।
तीनों लोकों और प्रत्येक युग में विप्रदेव नित्य पवित्र माने गये हैं।
ब्राम्हण देवताओं का भी देवता है।
संसार में उसके समान कोई दूसरा नहीं है।
वह साक्षात धर्म की मूर्ति है और सबको मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाला है।

ब्राम्हण सब लोगों का गुरु,पूज्य और तीर्थस्वरुप मनुष्य है।

*पूर्वकाल में नारदजी ने ब्रम्हाजी से पूछा था--*
ब्रम्हन्!किसकी पूजा करने पर भगवान लक्ष्मीपति प्रसन्न होते हैं?"

ब्रम्हाजी बोले--जिस पर ब्राम्हण प्रसन्न होते हैं,उसपर भगवान विष्णुजी भी प्रसन्न हो जाते हैं।
अत: ब्राम्हण की सेवा करने वाला मनुष्य निश्चित ही परब्रम्ह परमात्मा को प्राप्त होता है।
*ब्राम्हण के शरीर में सदा ही श्रीविष्णु का निवास है।*

_जो दान,मान और सेवा आदि के द्वारा प्रतिदिन ब्राम्हणों की पूजा करते हैं,उसके द्वारा मानों शास्त्रीय पद्धति से उत्तम दक्षिणा युक्त सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान हो जाता है।_

*जिसके घरपर आया हुआ ब्राम्हण निराश नही लौटता,उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है।*
_पवित्र देशकाल में सुपात्र ब्राम्हण को जो धन दान किया जाता है वह अक्षय होता है।_
*वह जन्म जन्मान्तरों में फल देता है,उनकी पूजा करने वाला कभी दरिद्र, दुखी और रोगी नहीं होता है।जिस घर के आँगन में ब्राम्हणों की चरणधूलि पडने से वह पवित्र होते हैं वह तीर्थों के समान हैं।*

_ऊँ  विप्रपादोदककर्दमानि,_
_न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि!_
_स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि,_
_श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।_

*जहाँ ब्राम्हणों का चरणोदक नहीं गिरता,जहाँ वेद शास्त्र की गर्जना नहीं होती,जहाँ स्वाहा,स्वधा,स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है। वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान है।*

_भीष्मजी!पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राम्हण, बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।_

पितृयज्ञ(श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गये हैं।

*ब्राम्हण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य का उपभोग करते हैं। ब्राम्हण के बिना दान,होम तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं।*

_जहाँ ब्राम्हणों को भोजन नहीं दिया जाता,वहाँ असुर,प्रेत,दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं।_

*ब्राम्हण को देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिए।*

_उनके आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है,वह चिरंजीवी होता है।ब्राम्हणों को देखकर भी प्रणाम न करने से,उनसे द्वेष रखने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है,धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है।_

*कवच अभेद्य विप्र गुरु पूजा।*
*एहिसम विजयउपाय न दूजा।।*

       *------ रामचरित मानस......*

ऊँ नमो ब्रम्हण्यदेवाय,
       गोब्राम्हणहिताय च।
जगद्धिताय कृष्णाय,
        गोविन्दाय नमोनमः।।

*जगत के पालनहार गौ,ब्राम्हणों के रक्षक भगवान श्रीकृष्ण जी कोटिशःवन्दना करते हैं।*

_जिनके चरणारविन्दों को परमेश्वर अपने वक्षस्थल पर धारण करते हैं,उन ब्राम्हणों के पावन चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम है।।_
        
          🍀🌷★जय_परशुराम★🙏🏻🍀
   🌺🙏🏻।। जय माॅ कल्याणी धाम ।।🌺🙏🏻

माता कामाख्या देवी का सिद्ध सिंदूर

।। ओम ह्लीं बगलामुखी देव्वै नमः ।।
     अपनी राशि के अनुसार अभिमंत्रित कामाख्या सिन्दूर प्राप्त करें बिज़नेस, धन, नौकरी की समस्या के समाधान के लिए :-----------------------------------------------------
                 ।। आचार्य डा.अजय दीक्षित ।।
                  🥕🥕🥕🥕🥕🥕🥕🥕जैसा की आप सभी को पता है की माता कामाख्या देवी एक शक्ति पीठ है जो की सबसे शक्तिशाली शक्तिपीठ मानी गयी है और इस शक्तिपीठ से कुछ ऐसी वस्तुऐं प्रसाद के रूप में प्राप्त होती है जो की मानव जीवन की हर समस्या के निवारण के लिए प्रयोग की जाती है जिसमे से सबसे महत्त्व और पवित्र प्रसाद है:------------ कामाख्या सिन्दूर।

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कल्कि पुराण में माता कामाख्या देवी के महिमा का वर्णन करते हुए लिखा गया है की यद्यपि कामाख्या साधना करना सबके लिए संभव नहीं है परन्तु यदि माता कामाख्या देवी के प्रसाद के स्वरुप प्राप्त होने वाले सिंदूर या वस्त्र का प्रयोग जातक करता है तो उसकी सभी समस्याओ का समाधान होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।


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                कामाख्या सिद्ध सिन्दूर से लाभ
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 माँ कामाख्या देवी का सिन्दूर विशेष कर
धन की समस्या,व्यापार की समस्या,
नौकरी की समस्या,

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आपके नौकरी में उचित धन का न प्राप्त होना,
आपकी दूकान या व्यापार से धन की प्राप्ति ना होना,
आपके द्वारा दुसरो को दिया गया धन वापस ना मिलना,
या किसी कार्य में धन लगा हुआ हो और वो सफल ना हो रहा हो,
या आपकी हर कोशिश के बावजूद धन का ना मिलना,
कार्य ज्यादा कर रहे हो और धन कम प्राप्त हो रहा हो, इत्यादि

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माता कामाख्या के आशीर्वाद फलस्वरूप आपकी इन सभी समस्याओं का निदान होता है ।

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हम यह कामाख्या देवी का सिन्दूर आपकी राशि के अनुसार सिद्धि पूजन करके प्रदान करेंगे, तो यदि आप इनमे से कोई भी समस्या का समाधान चाहते है तो अवश्य संपर्क करें ।

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कामाख्या सिद्ध सिन्दूर से सम्बंधित किसी भी जानकारी के लिए संपर्क करें::--------+-++

हमारा संपर्क नंबर है:---------9452335147


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हमारी ईमेल है : drajaidixit@gmail.com   

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शनिवार, 12 जनवरी 2019

ब्रह्मवैवर्त पुराण के कुछ खास रहस्य :------

ब्रह्मवैवर्त पुराण के कुछ खास रहस्य :--------
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आचार्य डा.अजय दीक्षित
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हिंदू पंचांग के अनुसार अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि के दिन स्त्री-पुरुष संसर्ग भूलकर भी न करें। इन तिथियों में तेल मालिश, बालों में तेल लगाना भी वर्जित कहा गया है।


दीपक, शिवलिंग, शालिग्राम, मणि, देवी-देवताओं की मूर्तियां, यज्ञोपवित, स्वर्ण और शंख को कभी भी सीधे जमीन पर न रखेें। इन्हें किसी पात्र या कपड़े पर किसी ऊंचे स्थान पर रखना चाहिए।


ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार घर की स्त्रियां लक्ष्मीस्वरूपा होती हैं। इसलिए वे कभी भी बुरी वाणी न बोलें। जिन स्त्रियों की वाणी से किसी को दुख पहुंचता हो, वह अगले जन्म में कौवे की योनि में जन्म लेती हैं। पति के साथ हिंसा करने वाली स्त्री अगले जन्म में शूकरी बनती है।


इसी तरह स्त्रियों पर अत्याचार करने, उन्हें दुखी करने वाले पुरुष मृत्यु तुल्य कष्ट पाते हैं।


दिन के समय और सुबह-शाम पूजन के समय स्त्री और पुरुष को समागम नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी रूष्ट हो जाती है और कई प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाते हैं। 


बुरे करेक्टर वाले इंसान के साथ खाना-पीना, घूमना, एक स्थान पर सोना वर्जित माना गया है।


सूर्य और चंद्र को अस्त होते समय कभी भी नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से आंखों से संबंधित रोग होने की आशंका रहती है।


यदि आपने किसी को दान देने का संकल्प किया है, तो वह तय समय, तिथि और मात्रा में अवश्य करना चाहिए। यदि दान देने में विलंब हो तो तय मात्रा से दोगुना दान करना चाहिए।


प्रातः उठते ही सबसे पहले ईष्टदेव का ध्यान करें। भूमि पर पैर रखते समय पृथ्वी को प्रणाम करें। इसके बाद अधिक देर तक बिना नहाए न रहें।


कहीं बाहर से घर लौटने पर सबसे पहले घर के बाहर ही दोनों पैरों को साफ पानी से धोएं फिर प्रवेश करें।


श्रीराधा और श्रीकृष्ण का चरित्र

भगवान के ग्यारह नामों- राम, नारायण, अनंत, मुकुंद, मधुसूदन, कृष्ण, केशव, कंसरि, हरे, वैकुण्ठ और वामन को अत्यन्त पुण्यदायक तथा सहस्त्र कोटि जन्मों का पाप नष्ट करने वाला बताया गया है।

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श्रीराधा और श्रीकृष्ण के चरित्र राधा-कृष्ण श्रीमहादेवजी कहते हैं- पार्वती! एक समय की बात है, श्रीकृष्ण विरजा नामवाली सखी के यहाँ उसके पास थें इससे श्रीराधाजी को क्षोभ हुआ। इस कारण विरजा वहाँ नदीरूप होकर प्रवाहित हो गयी।

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विरजा की सखियाँ भी छोटी-छोटी नदियाँ बनीं। पृथ्वी की बहुत-सी नदियाँ और सातों समुद्र विरजा से ही उत्पन्न हैं। राधा ने प्रणयकोप से श्रीकृष्ण के पास जाकर उनसे कुछ कठोर शब्द कहे। सुदामा ने इसका विरोध किया। इस पर लीलामयी श्रीराधाने उसे असुर होने का शाप दे दिया। सुदामा ने भी लीलाक्रम से ही श्रीराधा को मानवीरूप में प्रकट होने की बात कह दी।

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सुदामा माता राधा तथा पिता श्रीहरि को प्रणाम करके जब जाने को उद्यत हुआ तब श्रीराधा पुत्रविरह से कातर हो आँसू बहाने लगीं। श्रीकृष्ण ने उन्हें समझा-बुझाकर शान्त किया और शीघ्र उसके लौट आने का विश्वास दिलाया। सुदामा ही तुलसी का स्वामी शंखचूड़ नामक असुर हुआ था, जो मेरे शूल से विदीर्ण एवं शापमुक्त हो पुन: गोलोक चला गया।


सती राधा इसी वाराहकल्प में गोकुल में अवतीर्ण हुई थीं। वे व्रज में वृषभानु वैश्य की कन्या हुईं वे देवी अयोनिजा थीं, माता के पेट से नहीं पैदा हुई थीं। उनकी माता कलावती ने अपने गर्भ में 'वायु' को धारण कर रखा था। उसने योगमाया की प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया; परंतु वहाँ स्वेच्छा से श्रीराधा प्रकट हो गयीं।





बारह वर्ष बीतने पर उन्हें नूतन यौवन में प्रवेश करती देख माता-पिता ने 'रायाण' वैश्यके साथ उसका सम्बन्ध निश्चित कर दिया। उस समय श्रीराधा घर में अपनी छाया को स्थापित करके स्वयं अन्तर्धान हो गयीं। उस छाया के साथ ही उक्त रायाण का विवाह हुआ। कृष्ण जन्म वसुदेव, कृष्ण को कंस के कारागार मथुरा से गोकुल ले जाते हुए, द्वारा- राजा रवि वर्मा 'जगत्पति श्रीकृष्ण कंस के भय से रक्षा के बहाने शैशवावस्था में ही गोकुल पहुँचा दिये गये थे।






वहाँ श्रीकृष्ण की माता जो यशोदा थीं, उनका सहोदर भाई 'रायाण' था। गोलोक में तो वह श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था, पर इस अवतार के समय भूतल पर वह श्रीकृष्ण का मामा लगता था। जगत्स्त्रष्टा विधाता ने पुण्यमय वृन्दावन में श्रीकृष्ण के साथ साक्षात् श्रीराधा का विधिपूर्वक विवाहकर्म सम्पन्न कराया था।




गोपगण स्वप्न में भी श्रीराधा के चरणारविन्दका दर्शन नहीं कर पाते थे। साक्षात् राधा श्रीकृष्ण के वक्ष: स्थल में वास करती थीं और छायाराधा रायाण के घर में। ब्रह्माजी ने पूर्वकाल में श्रीराधा के चरणारविन्द का दर्शन पाने के लिये पुष्कर में साठ हज़ार वर्षों तक तपस्या की थी; उसी तपस्या के फलस्वरूप इस समय उन्हें श्रीराधाचरणों का दर्शन प्राप्त हुआ था।




गोकुलनाथ श्रीकृष्ण कुछ काल तक वृन्दावन में श्रीराधा के साथ आमोद-प्रमोद करते रहे। तदनन्तर सुदामा के शाप से उनका श्रीराधाके साथ वियोग हो गया। इसी बीच में श्रीकृष्ण ने पृथ्वी का भार उतारा। सौ वर्ष पूर्ण हो जाने पर तीर्थ यात्रा के प्रसंग से श्रीराधा ने श्रीकृष्ण का और श्रीकृष्ण ने श्रीराधा का दर्शन प्राप्त किया। तदनन्तर तत्त्वज्ञ श्रीकृष्ण श्रीराधा के साथ गोलोकधाम पधारे। कलावती (कीर्तिदा) और यशोदा भी श्रीराधा के साथ ही गोलोक चली गयीं।



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कंस का कारागार, मथुरा प्रजापति द्रोण नन्द हुए। उनकी पत्नी धरा यशोदा हुईं। उन दोनों ने पहले की हुई तपस्या के प्रभाव से परमात्मा भगवान् श्रीकृष्ण को पुत्ररूप में प्राप्त किया था। महर्षि कश्यप वसुदेव हुए थे। उनकी पत्नी सती साध्वी अदिति अंशत: देवकी के रूप में अवतीर्ण हुई थीं। प्रत्येक कल्प में जब भगवान् अवतार लेते हैं, देवमाता अदिति तथा देवपिता कश्यप उनके माता-पिता का स्थान ग्रहण करते हैं। श्रीराधा की माता कलावती (कीर्तिदा) पितरों की मानसी कन्या थी।

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गोलोक से वसुदाम गोप ही वृषभानु होकर इस भूतलपर आये थे। दुर्गे! इस प्रकार मैंने श्रीराधा का उत्तम उपाख्यान सुनाया। यह सम्पत्ति प्रदान करने वाला, पापहारी तथा पुत्र और पौत्रों की वृद्धि करने वाला है। श्रीकृष्ण दो रूपों में प्रकट हैं- द्विभुज और चतुर्भुज। चतुर्भुजरूप से वे वैकुण्ठधाम में निवास करते हैं और स्वयं द्विभुज श्रीकृष्ण गोलोकधाम में।

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चतुर्भुजकी पत्नी महालक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और तुलसी हैं। ये चारों देवियाँ चतुर्भुज नारायणदेव की प्रिया हैं। श्रीकृष्ण की पत्नी श्रीराधा हैं, जो उनके अर्धांग से प्रकट हुई हैं। वे तेज, अवस्था, रूप तथा गुण सभी दृष्टियों से उनके अनुरूप हैं। विद्वान् पुरुष को पहले 'राधा' नाम का उच्चारण करके पश्चात् 'कृष्ण' नाम का उच्चारण करना चाहिये। इस क्रम से उलट-फेर करने पर वह पाप का भागी होता है, इसमें संशय नहीं है। कार्तिक की पूर्णिमाकों गोलोक के रासमण्डल में श्रीकृष्ण ने श्रीराधा का पूजन किया और तत्सम्बन्धी महोत्सव रचाया।

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उत्तम रत्नों की गुटिका में राधाकवच रखकर गोपोंसहित श्रीहरि ने उसे अपने कण्ठ और दाहिनी बाँह में धारण किया। भक्तिभाव से उनका ध्यान करके स्तवन किया। फिर मधुसूदन ने राधा के चबाये हुए ताम्बूल को लेकर स्वयं खाया। राधा श्रीकृष्ण की पूजनीया हैं और भगवान् श्रीकृष् राधा के पूजनीय हैं। वे दोनों एक-दूसरे के इष्ट देवता हैं। उनमें भेदभाव करने वाला पुरुष नरक में पड़ता है।[





कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
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श्रीकृष्ण के बाद धर्म ने, ब्रह्माजी ने, मैंने, अनन्त ने, वासुकिने तथा सूर्य और चन्द्रमाने श्रीराधा का पूजन किया। तत्पश्चात् देवराज इन्द्र, रुद्रगण, मनु, मनुपुत्र, देवेन्द्रगण, मुनीन्द्रगण तथा सम्पूर्ण विश्वे के लोगों ने श्री राधा की पूजा की। ये सब द्वितीय आवरण के पूजक हैं। तृतीय आवरण में सातों द्वीपों के सम्राट् सुयज्ञ ने तथा उनके पुत्र-पौत्रों एवं मित्रों ने भारतवर्ष में प्रसन्नतापूर्वक श्रीराधिका का पूजन किया। उन महाराज को दैववश किसी ब्राह्मण ने शाप दे दिया था, जिससे उनका हाथ रोगग्रस्त हो गया था।

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इस कारण वे मन-ही-मन बहुत दु:खी रहते थे। उनकी राज्यलक्ष्मी छिन गयी थी; परंतु श्री राधा के वर से उन्होंने अपना राज्य प्राप्त कर लिया। ब्रह्माजी के दिये हुए स्तोत्र से परमेश्वरी श्रीराधा की स्तुति करके राजा ने उनके अभेद्य कवच को कण्ठ और बाँह में धारण किया तथा पुष्करतीर्थ में सौ वर्षों तक ध्यानपूर्वक उनकी पूजा की। अन्त में वे महाराज रत्नमय विमानपर सवार होकर गोलोकधाम में चले गये ।

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ब्रह्मवैवर्त पुराण में कलियुग के अंत का वर्णन :

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कलियुग के अंत का वर्णन :

🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒 आचार्य डा.अजय दीक्षित

     




आने वाले समय में 16 की उम्र में ही आएगा बुढ़ापा !

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ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि कलियुग में ऐसा समय भी आएगा जब इंसान की उम्र बहुत कम रह जाएगी,युवावस्था समाप्त हो जाएगी।
इस पुराण में कलियुग में किस प्रकार का वातावरण रहेगा,इंसानों का जीवन कैसा रहेगा,स्त्री और पुरुष 
के बीच कैसे संबंध रहेंगे आदि बातों की भविष्यवाणी की गई है।
यहां जानिए इस पुराण में कलियुग के लिए क्या-क्या भविष्यवाणी पहले से ही कर दी गई है...
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इंसानों की उम्र हो जाएगी बहुत कम

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कलियुग में इंसानों की उम्र बहुत कम हो जाएगी। स्त्री और पुरुष,दोनों ही रोगी और थोड़ी उम्र वाले हो जाएंगे।
16 वर्ष की आयु में ही लोगों के बाल पक जाएंगे और वे 20 वर्ष की आयु में ही वृद्ध हो जाएंगे। युवावस्था समाप्त हो जाएगी। 
यह बात सच भी प्रतीत होती है,क्योंकि प्राचीन काल में इंसानों की औसत उम्र करीब 100 वर्ष रहती थी।
उस काल में 100 वर्ष से अधिक जीने वाले लोग 
भी हुआ करते थे,लेकिन आज के समय में इंसानों 
की औसत आयु बहुत कम (60-70 वर्ष) हो गई है। 
भविष्य में भी इंसानों की औसत उम्र में कमी आने 
की संभावनाएं काफी अधिक हैं,क्योंकि प्राकृतिक वातावरण लगातार बिगड़ रहा है और हमारी 
दिनचर्या असंतुलित हो गई है। 
पुराने समय में लंबी उम्र के बाद ही बाल सफेद 
होते थे,लेकिन आज के समय में युवा अवस्था 
में ही स्त्री और पुरुष दोनों के बाल सफेद हो 
जाते हैं। 
जवानी के दिनों में बुढ़ापे के रोग होने लगते हैं।

पुरुष होंगे स्त्रियों के अधीन

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भगवान नारायण ने स्वयं नारद को बताया है कि कलियुग में एक समय ऐसा आएगा जब सभी 
पुरुष स्त्रियों के अधीन होकर जीवन व्यतीत करेंगे। 
हर घर में पत्नी ही पति पर राज करेगी। 
पतियों को डाट-डपट सुनना पड़ेगी,पुरुषों की 
हालत नौकरों के समान हो जाएगी।
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गंगा भी लौट जाएगी वैकुंठ धाम !

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कलियुग के पांच हजार साल बाद गंगा नदी सूख जाएगी और पुन: वैकुण्ठ धाम लौट जाएगी। 
जब कलियुग के दस हजार वर्ष हो जाएंगे तब 
सभी देवी-देवता पृथ्वी छोड़कर अपने धाम लौट जाएंगे। 
इंसान पूजन-कर्म,व्रत-उपवास और सभी धार्मिक काम करना बंद कर देंगे।
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अन्न और फल नहीं मिलेगा !

एक समय ऐसा आएगा,जब जमीन से अन्न उपजना बंद हो जाएगा। पेड़ों पर फल नहीं लगेंगे। 
धीरे-धीरे ये सारी चीजें विलुप्त हो जाएंगी। 
गाय दूध देना बंद कर देगी।
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समाज हिसंक हो जाएगा

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कलियुग में समाज हिंसक हो जाएगा। 
जो लोग बलवान होंगे उनका ही राज चलेगा। मानवता नष्ट हो जाएगी। 
रिश्ते खत्म हो जाएंगे। 
एक भाई दूसरे भाई का ही शत्रु हो जाएगा।
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लोग देखने-सुनने और पढऩे लगेंगे अनैतिक चीजें !

कलियुग में लोग शास्त्रों से विमुख हो जाएंगे। अनैतिक साहित्य ही लोगों की पसंद हो जाएगा। 
बुरी बातें और बुरे शब्दों का ही व्यवहार किया जाएगा।
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स्त्री और पुरुष, दोनों हो जाएंगे अधर्मी !

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कलियुग में ऐसा समय आएगा जब स्त्री और पुरुष, दोनों ही अधर्मी हो जाएंगी। 
स्त्रियां पतिव्रत धर्म का पालन करना बंद कर देगी और पुरुष भी ऐसा ही करेंगे। 
स्त्री और पुरुषों से संबंधित सभी वैदिक नियम विलुप्त हो जाएंगे।
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चोर और अपराधियों की संख्या बहुत अधिक हो जाएगी !

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इस काल में चोर और अपराधियों की संख्या इतनी अधिक बढ़ जाएगी कि आम इंसान ठीक से जीवन जी नहीं पाएगा। 
लोग एक- दूसरे के प्रति हिंसक हो जाएंगे और 
सभी के मन में पाप प्रवेश कर जाएगा।
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कल्कि अवतार करेगा अधर्मियों का विनाश !

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कलियुग के अंतिम काल में भगवान विष्णु का 
कल्कि अवतार होगा। 
यह अवतार विष्णुयशा नामक ब्राह्मण के घर 
जन्म लेगा। 
भगवान कल्कि सभी अधर्मियों का नाश करेंगे।
भगवान कल्कि केवल तीन दिनों में पृथ्वी से समस्त
अधर्मियों का नाश कर देंगे और बहुत सालों तक विश्व पर शासन कर धर्म की स्थापना करेंगे।
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युग के अंत में ऐसे आएगा प्रलय

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कलियुग में अंतिम समय में बहुत मोटी धारा से लगातार वर्षा होगी,जिससे चारों ओर पानी ही 
पानी हो जाएगा। 
समस्त पृथ्वी पर जल हो जाएगा और प्राणियों 
का अंत हो जाएगा। 
इसके बाद 1,70,000 वर्षों का संधिकाल (एक युग के अंत और दूसरे युग के प्रारंभ के बीच के समय को संधिकाल कहते हैं)। 
संधिकाल के अंतिम चरण में एक साथ बारह सूर्य उदय होंगे और उनके तेज से पृथ्वी सूख जाएगी 
और पुनः सत्ययुग का प्रारंभ होगा।
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यह पुराण कहता है कि इस ब्रह्माण्ड में असंख्य 
विश्व विद्यमान हैं। 
प्रत्येक विश्व के अपने-अपने विष्णु, ब्रह्मा और 
महेश हैं। 
इन सभी विश्वों से ऊपर गोलोक में भगवान 
श्रीकृष्ण निवास करते हैं। 
इस पुराण के चार खण्ड हैं- ब्रह्म खण्ड, 
प्रकृति खण्ड,गणपति खण्ड और श्रीकृष्ण 
जन्म खण्ड। 
इन चारों में दो सौ अठारह अध्याय हैं।