शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

देवपूजा के योग्य और अयोग्य पुष्प

देवपूजा के योग्य और अयोग्य पुष्प

अग्निदेव कहते हैं – वसिष्ठ ! भगवान् श्रीहरि पुष्प, गंध, धुप, दीप और नैवेद्य के समर्पण से ही प्रसन्न हो जाते है | मैं तुम्हारे सम्मुख देवताओं के योग्य एवं अयोग्य पुष्पों का वर्णन करता हूँ | पूजन में मालती-पुष्प उत्तम हैं | तमाल-पुष्प भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है | मल्लिका (मोतिया) समस्त पापोंका नाश करती है तथा यूथिका (जूही) विष्णुलोक प्रदान करनेवाली है | अतिमुक्तक (मोगरा) और लोध्रपुष्प विष्णुलोक की प्राप्ति करानेवाले हैं | करवीर-कुसुमों से पूजन करनेवाला वैकुण्ठ को प्राप्त होता है तथा जपा-पुष्पों से मनुष्य पुण्य उपलब्ध करता है | पावंती, कुब्जक और तगर-पुष्पों से पूजन करनेवाला विष्णुलोक का अधिकारी होता है | कर्णिकार (कनेर)- द्वारा पूजन करने से वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है एवं कुरुंट (पीली कटसरैया) के पुष्पोंसे किया हुआ पूजन पापोंका नाश करनेवाला होता है | कमल, कुंद एवं केतकी के पुष्पों से परमगति की प्राप्ति होती है | बाणपुष्प, बर्बर-पुष्प और कृष्ण तुलसी के पत्तों से पूजन करनेवाला श्रीहरि के लोक में जाता हैं | अशोक, तिलक तथा आटरुष (अडूसे) के फूलों का पूजन में उपयोग करनेसे मनुष्य मोक्ष का भागी होता है | बिल्वपत्रों एवं शमिपत्रों से परमगति सुलभ होती है | तमालदल तथा भृंगराज-कुसुमों से पूजन करनेवाला विष्णुलोक में निवास करता है | कृष्ण तुलसी, शुक्ल तुलसी, कल्हार, उत्पल, पद्म एवं कोकनद – ये पुष्प पुण्यप्रद माने गये हैं ||१-७||

भगवान् श्रीहरि सौ कमलों की माला समर्पण करनेसे परम प्रसन्न होते है | नीप, अर्जुन, कदम्ब, सुगन्धित बकुल (मौलसिरी), किंशुक (पलाश), मुनि (अगस्त्यपुष्प), गोकर्ण, नागकर्ण (रक्त एरण्ड), संध्यापुष्पी (चमेली), बिल्बातक, रजनी एवं केतकी तथा कुष्माण्ड, ग्रामकर्कटी, कुश, कास, सरपत, विभीतक, मरुआ तथा अन्य सुंगधित पत्रोंद्वारा भक्तिपूर्वक पूजन करनेसे भगवान् श्रीहरि प्रसन्न हो जाते हैं | इनसे पूजन करनेवाले के पाप नाश होकर उसको भोग-मोक्ष की प्राप्ति होती हैं | लक्ष स्वर्णभार से पुष्प उत्तम है, पुष्पमाला उससे भी करोड़गुनी श्रेष्ठ है, अपने तथा दूसरों के उद्यान के पुष्पों की अपेक्षा वन्य पुष्पों का तिगुना फल माना गया है ||८-११||

झड़कर गिरे, अधिकांग एवं मसले हुए पुष्पों से श्रीहरि का पूजन न करे | इसीप्रकार कचनार, धत्तूर, गिरिकर्णिका (सफेद किणही), कुटज, शाल्मलि (सेमर) एवं शिरीष (सिरस) वृक्ष के पुष्पों से भी श्रीविष्णु की अर्चना न करे | इससे पूजा करनेवाले का नरक आदि में पतन न होता है | विष्णुभगवान का सुगन्धित रक्तकमल तथा नीलकमल-कुसुमों से पूजन होता है | भगवान शिवका आक, मदार, धत्तूर-पुष्पों से पूजन किया जाता है; किन्तु कुटज, कर्कटी एवं केतकी (केवड़े) के फुल शिव के ऊपर नहीं चढाने चाहिये | कुष्माण्ड एवं निम्ब के पुष्प तथा अन्य गंधहीन पुष्प ‘पैशाच’ माने गये हैं ||१२-१५||

अहिंसा, इन्द्रियसंयम, क्षमा, ज्ञान, दया एवं स्वाध्याय आदि आठ भावपुष्पों से देवताओं का यजन करके मनुष्य भोग-मोक्ष का भागी होता है | इनमें अहिंसा प्रथम पुष्प है, इन्द्रिय-निग्रह द्वितीय पुष्प है, सम्पूर्ण भूत-प्राणियोंपर दया तृतीय पुष्प है, क्षमा चौथा विशिष्ट पुष्प है | इसीप्रकार क्रमश: शम, तप एवं ध्यान पाँचवे, छठे और सातवे पुष्प हैं | सत्य आठवाँ पुष्प है | इनसे पूजित होनेपर भगवान् केशव प्रसन्न हो जाते हैं | इन आठ भावपुष्पों से पूजा करनेपर ही भगवान् केशव संतुष्ट होते हैं | नरश्रेष्ठ ! अन्य पुष्प तो पूजा के बाह्य उपकरण हैं, श्रीविष्णु तो भक्ति एवं दयासे समन्वित भाव-पुश्पोद्वारा पूजित होनेपर परितुष्ट होते है ||१६-१९||

जल वारुण पुष्प है; घृत, दुग्ध, दधि सौम्य पुष्प है; अन्नादि प्राजापत्य पुष्प हैं, धुप-दीप आग्नेय पुष्प हैं, फल-पुष्पादि पंचम वानस्पत्य पुष्प हैं, कुशमुल आदि पार्थिव पुष्प हैं; गंध-चंदन वायव्य कुसुम हैं, श्रद्धादि भाव वैष्णव प्रसून हैं | ये आठ पुष्पिकाएँ हैं, जो सब कुछ देनेवाली है | आसन (योगपीठ), मूर्ति-निर्माण, पंचांगन्यास तथा अष्टपुष्पिकाए – ये विष्णुरूप हैं | भगवान् श्रीहरि पूर्वोक्त अष्टपुष्पिकाद्वारा पूजन करनेसे प्रसन्न होते है | इसके अतिरिक्त भगवान् श्रीविष्णु का ‘वासुदेव’ आदि नामों से एवं श्रीशिव का ‘ईशान’ आदि नामपुष्पों से भी पूजन किया जाता है ||२०-२३||

इसप्रकार आदि आग्नेय महापुराण में ‘पुष्पाध्याय’ नामक इक्यानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ || ९१ ||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें