।। हरी ऊँ ।।
आखिर मरने के बाद ! जीव कहाँ और कैसे जाता है ?
मरण काल के समय आठ प्रकार के दान जरुर करने चाहिए ।
:::::::::::::::::::::::::::::::::::डा.अजय दीक्षित
धरती से यमलोक की दूरी ८६हजार योजन है ।
मरने के बाद जीव को यमदूतों के साथ प्रतिदिन २४घंटे में क्रमश: २४७ योजन निरन्तर चलना पडता है ।
इस मार्ग से चलने वाले को अन्त में १६गाँव मिलते हैं । उन्हें पार करने के बाद जीव धर्मराज के नगर में पहुँचता है ।
उन गावों के नाम हैं-------------
१:: सौम्यपुर
२:: सौरिपुर
३:: नगेन्द्र भवन
४:: गन्धर्व
५:: शैलागम
६:: क्रौञ्च
७::क्रूरपुर
८:: विचित्र भवन
९:: बह्वापद
१०: दुख:द
११: नानाक्रन्दनपुर
१२: संतप्त भवन
१३: रौद्र नगर
१४: पयोवर्षण
१५: शीताढ्य
१६: बहुभीति
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
इनके आगे यमपुर है । यमदूतों के पाश मे बँधा हुआ वह पापी जीव मार्ग मे विलाप करता हुआ अपने गृह को त्याग कर यमलोक जाता है ।
मध्यमार्ग मे एक वैतरणी नाम की नदी है ।
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
जिसे देखने मात्र से जीव भयभीत हो जाता है । वह नदी एक सौ योजन चौडी है ।जिसके किनारे हड्डियों से बने हुए हैं ।
और जिसमें पीब- रक्त भरा हुआ है उसमे मांस पीब तथा लहू के कीचड भरे हैं वह बहुत ही गहरी एवं दुस्तरणीय है।
अग्नि की ज्वाला से तप्त घी जैसे कडाहे मे खौलता है,उसी प्रकार उस वैतरणी नदी का जल भी पापी को आते हुए देखकर खौलने लगता है ।
उस नदी मे भयंकर रुप से विलाप करता हुआ जीव छोड दिया जाता है ।
तब जीव अपने द्वारा किये गये कर्मों के लिए ग्लानि करता हुआ --------
हा पुत्र!हा पौत्र ! हा बंधु ! ऐसा कहकर विलाप करता हुआ अत्यन्त दुखी होता है।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
इस लिए बुद्धिजीवियों को चहिऐ कि वृद्धावस्था मे भगवान के नामो को जपना चाहिए तथा आठ प्रकार के दान जरुर करने चाहिऐ । जिनसे करोडों महा पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ।
आठ महादान ये हैं ::::::::::
:::::::::::::::::::::::::::
१: तिल का दान
२: लौह का दान
३: सुवर्ण का दान
४:रूई का दान
५: नमक का दान
६: सप्त धान्य का दान ( धान,जौ,गेहूँ, उडद,काकुन,चना ,मूँग )
७: गौ का दान
८: भूमि का दान
ये आठ दान श्रेष्ठ ब्राह्मण को ही देने चाहिए ।
बाकी आप की मर्जी ---------------------
।। ऊँ ।। राम ।। ऊँ ।।
डा.अजय दीक्षित
Dr Ajai Dixit@gmail.com
आखिर मरने के बाद ! जीव कहाँ और कैसे जाता है ?
मरण काल के समय आठ प्रकार के दान जरुर करने चाहिए ।
:::::::::::::::::::::::::::::::::::डा.अजय दीक्षित
धरती से यमलोक की दूरी ८६हजार योजन है ।
मरने के बाद जीव को यमदूतों के साथ प्रतिदिन २४घंटे में क्रमश: २४७ योजन निरन्तर चलना पडता है ।
इस मार्ग से चलने वाले को अन्त में १६गाँव मिलते हैं । उन्हें पार करने के बाद जीव धर्मराज के नगर में पहुँचता है ।
उन गावों के नाम हैं-------------
१:: सौम्यपुर
२:: सौरिपुर
३:: नगेन्द्र भवन
४:: गन्धर्व
५:: शैलागम
६:: क्रौञ्च
७::क्रूरपुर
८:: विचित्र भवन
९:: बह्वापद
१०: दुख:द
११: नानाक्रन्दनपुर
१२: संतप्त भवन
१३: रौद्र नगर
१४: पयोवर्षण
१५: शीताढ्य
१६: बहुभीति
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इनके आगे यमपुर है । यमदूतों के पाश मे बँधा हुआ वह पापी जीव मार्ग मे विलाप करता हुआ अपने गृह को त्याग कर यमलोक जाता है ।
मध्यमार्ग मे एक वैतरणी नाम की नदी है ।
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जिसे देखने मात्र से जीव भयभीत हो जाता है । वह नदी एक सौ योजन चौडी है ।जिसके किनारे हड्डियों से बने हुए हैं ।
और जिसमें पीब- रक्त भरा हुआ है उसमे मांस पीब तथा लहू के कीचड भरे हैं वह बहुत ही गहरी एवं दुस्तरणीय है।
अग्नि की ज्वाला से तप्त घी जैसे कडाहे मे खौलता है,उसी प्रकार उस वैतरणी नदी का जल भी पापी को आते हुए देखकर खौलने लगता है ।
उस नदी मे भयंकर रुप से विलाप करता हुआ जीव छोड दिया जाता है ।
तब जीव अपने द्वारा किये गये कर्मों के लिए ग्लानि करता हुआ --------
हा पुत्र!हा पौत्र ! हा बंधु ! ऐसा कहकर विलाप करता हुआ अत्यन्त दुखी होता है।
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इस लिए बुद्धिजीवियों को चहिऐ कि वृद्धावस्था मे भगवान के नामो को जपना चाहिए तथा आठ प्रकार के दान जरुर करने चाहिऐ । जिनसे करोडों महा पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ।
आठ महादान ये हैं ::::::::::
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१: तिल का दान
२: लौह का दान
३: सुवर्ण का दान
४:रूई का दान
५: नमक का दान
६: सप्त धान्य का दान ( धान,जौ,गेहूँ, उडद,काकुन,चना ,मूँग )
७: गौ का दान
८: भूमि का दान
ये आठ दान श्रेष्ठ ब्राह्मण को ही देने चाहिए ।
बाकी आप की मर्जी ---------------------
।। ऊँ ।। राम ।। ऊँ ।।
डा.अजय दीक्षित
Dr Ajai Dixit@gmail.com
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