:-- कलियुग की माया --:
प्रथम भाग
:--डा. अजय दीक्षित " अजय " द्वारा रचित --:
(१)
धनि कलियुग महराज आप ने लीलाअजबदिखाई है उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । । नीति पंथ उठ गया कचहरी पापन से गरूआई है । धर्म गया पाताल सभी के मन बेधर्मी छाई है । ।
गुप्त हुए सच्चे वकील झूठों की बात सवाई है ।
सच्चों की परतीत नही झूठों ने सनद बनाई है । ।
न्याय छोड अन्याय करें राजों ने नीति गँवाई है । हकदारों का हक्क मेट बेहक पर कलम उठाई है । ।
जो हैं जाली फरेब वाले उनकी ही बनि आई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।।
(२)
मांसाहारी बने सन्यासी पोथी बगल दबाई हैं ।
मूड मुडाकर इक धेले में कफनी लाल रंगाई है । ।
पंथ चले लाखों पाखण्डी अदभुत कथा बनाई है ।
मुँह काला कर दिया किसी ने शिरपे जटा रखाई है ।। हुए नीच कुरसी नसीन ऊँचो को नही तिपाई है । जुगनू पहुँचे आसमान पर जाकर दुम चमकाई है। । फाँके करते संत मिले भडुओं को दूध मलाई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । ।
(३)
सास बहू से लडै बहू भी, आँख फेर झुँझलाई है । लेकर मूसल हाथ कोसती , दाँत पीस उठ धाई है । । घरवाले को छोड गैरकर,कुल की लाज गँवाई है । निजपति कीसेवा तजकर ,परपति से प्रीति लगाई है । पुरूष हुए ऐसे व्यभिचारी, विषय वासना छाई है । वेश्याओं के फन्दे में पड, घर की तजी लुगाई है । । मात पिता की करै बुराई, नारि परम सुखदाई है। उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।
(४)
व्याह बुढापे में जो करते, उनपर गजब खुदाई है । साठ बरस के आप, करी कन्या के संग सगाई है । । कुछ दिन पीछे आप मर गये,करके रांड बिठाई है । लगी करन व्यभिचार लाज तजि,घर-घर होत हँसाईहै कन्याओं की करै दलाली, मंत्री जिनका भाई है।
शर्म रही नहि वेशर्मों को बेटी बेंच कर खाई है।
त्याग दिया है बहन भांजी, साली न्योति जिमाई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । ।
(५)
गंगाजल गोरस को छोडकर,गाड़ी भाँग छनाई है । भक्ष्य अभक्ष्य लगे खाने, मदिरा की होत छकाई है । । श्वासुर बहू को कुदृष्टि देखै, अपनी नियति डुलाई है । ठट्ठा अरू मसखरीकरै, सासू से ज्वान जमाई है । ।
कहै भतीजा चचा सेअपने, तू मूरख सौदाई है।
हमें चैन करने से मतलब, किसकी चाची ताई है ।। बहिन - बहिन से लडै और, लडता भाई से भाई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।।
शेष भाग अगले दिन :-------
:-- श्रीमद्भागवत ,द्वादश स्कंध पर श्रीयुत शालिग्राम वैश्य कृत भाषाटीका से उदधृत श्लोकों का डा.अजय दीक्षित द्वारा कविता रूप में रूपान्तर क्या गया है ।
हरी ऊँ शरणम् ।
प्रथम भाग
:--डा. अजय दीक्षित " अजय " द्वारा रचित --:
(१)
धनि कलियुग महराज आप ने लीलाअजबदिखाई है उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । । नीति पंथ उठ गया कचहरी पापन से गरूआई है । धर्म गया पाताल सभी के मन बेधर्मी छाई है । ।
गुप्त हुए सच्चे वकील झूठों की बात सवाई है ।
सच्चों की परतीत नही झूठों ने सनद बनाई है । ।
न्याय छोड अन्याय करें राजों ने नीति गँवाई है । हकदारों का हक्क मेट बेहक पर कलम उठाई है । ।
जो हैं जाली फरेब वाले उनकी ही बनि आई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।।
(२)
मांसाहारी बने सन्यासी पोथी बगल दबाई हैं ।
मूड मुडाकर इक धेले में कफनी लाल रंगाई है । ।
पंथ चले लाखों पाखण्डी अदभुत कथा बनाई है ।
मुँह काला कर दिया किसी ने शिरपे जटा रखाई है ।। हुए नीच कुरसी नसीन ऊँचो को नही तिपाई है । जुगनू पहुँचे आसमान पर जाकर दुम चमकाई है। । फाँके करते संत मिले भडुओं को दूध मलाई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । ।
(३)
सास बहू से लडै बहू भी, आँख फेर झुँझलाई है । लेकर मूसल हाथ कोसती , दाँत पीस उठ धाई है । । घरवाले को छोड गैरकर,कुल की लाज गँवाई है । निजपति कीसेवा तजकर ,परपति से प्रीति लगाई है । पुरूष हुए ऐसे व्यभिचारी, विषय वासना छाई है । वेश्याओं के फन्दे में पड, घर की तजी लुगाई है । । मात पिता की करै बुराई, नारि परम सुखदाई है। उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।
(४)
व्याह बुढापे में जो करते, उनपर गजब खुदाई है । साठ बरस के आप, करी कन्या के संग सगाई है । । कुछ दिन पीछे आप मर गये,करके रांड बिठाई है । लगी करन व्यभिचार लाज तजि,घर-घर होत हँसाईहै कन्याओं की करै दलाली, मंत्री जिनका भाई है।
शर्म रही नहि वेशर्मों को बेटी बेंच कर खाई है।
त्याग दिया है बहन भांजी, साली न्योति जिमाई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है । ।
(५)
गंगाजल गोरस को छोडकर,गाड़ी भाँग छनाई है । भक्ष्य अभक्ष्य लगे खाने, मदिरा की होत छकाई है । । श्वासुर बहू को कुदृष्टि देखै, अपनी नियति डुलाई है । ठट्ठा अरू मसखरीकरै, सासू से ज्वान जमाई है । ।
कहै भतीजा चचा सेअपने, तू मूरख सौदाई है।
हमें चैन करने से मतलब, किसकी चाची ताई है ।। बहिन - बहिन से लडै और, लडता भाई से भाई है । उलटा चलन चला दुनिया में सबकी मति बौराई है ।।
शेष भाग अगले दिन :-------
:-- श्रीमद्भागवत ,द्वादश स्कंध पर श्रीयुत शालिग्राम वैश्य कृत भाषाटीका से उदधृत श्लोकों का डा.अजय दीक्षित द्वारा कविता रूप में रूपान्तर क्या गया है ।
हरी ऊँ शरणम् ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें