-. :-- कलियुग की लीला :--
डा.अजय दीक्षित " अजय "
द्वितीय भाग
(६)
जामा अंगा दिया त्याग, अरू पगडी फारि बहाई है ।
पहन कोट पतलून शीश पर,टोपी गोल जमाई है ।।
तोड तख्त अरू सिंहासन को,लाके बेंच बिछाई है।
खीर खाँड़ को त्याग करके,रोटी डबल पकाई है ।।
तोड के ठाकुरद्वारा मसजिद,सबकी करी सफाई है ।
गिरजाघर में जा कर के,ईसा की करी बुराई है ।।
बात करैं सब अंगरेजी मा,निज भाषा बिसराई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(७)
मित्र शत्रु सम हुए प्रीति की,डाली तोड बहाई है ।
विद्या बिन हो गये विप्र,गायत्री तलक भुलाई है ।।
क्षत्रिय बैठे नारी बनकर,ले तलवार छिपाई है ।
बन आईना कुछ बनियों ने माया मुफ्त लुटाई है ।।
शूद्र हुए धनवान ब्राह्मणों,ने कीन्हीं सेवकाई है ।
ग्वाल-बाल औरमथुराके,चौबों की बातबनि आईहै।।
चारों युगों से कलि ने अपनी,नई रीति दिखलाई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(८)
अपूज पुजने लगे कहैं सब,शिर पर देवी आई है ।
घर-घर में गुलगुले शेख सैयद की चढी कढाई है।।
परब्रह्म को छोड भूत,प्रेतों की दई दुहाई है।
मूड हिलाती बैठी मालिन,कहैं कुसुम्भी माई है।।
बालभोग ठाकुरको नहि,सय्यद के लिए मिठाई है ।
संत को कम्बल नही,पतुरिया को कुर्ती सिलवाई है ।।
गुरू हरैं चेलों का धन,चेला करता चतुराई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(९)
विधवा लग गई पान चबाने,दे शुरमा मुसकाई है ।
नित करती श्रंगार देखकर,अहिवाती शरमाई है ।।
बैठे ज्वाँरी बनके घरमा,हुआ जगत अन्यायी है ।
सब लक्षण विपरीत और,घर-घर में होत लडाई है ।।
गाय जाय लाखों मारी,करता नही -कोई सुनाई है।
इसीसेपडता अकालसृष्टिमें,संपति सकल बिलाई है ।।
हो दयाल हेनाथ "अजय"पे,कलियुगकी महिमागाईहै
।। इति ।।
डा. अजय दीक्षित कृत कलियुग महिमा समाप्त
Drajaidixit@gmail.com
डा.अजय दीक्षित " अजय "
द्वितीय भाग
(६)
जामा अंगा दिया त्याग, अरू पगडी फारि बहाई है ।
पहन कोट पतलून शीश पर,टोपी गोल जमाई है ।।
तोड तख्त अरू सिंहासन को,लाके बेंच बिछाई है।
खीर खाँड़ को त्याग करके,रोटी डबल पकाई है ।।
तोड के ठाकुरद्वारा मसजिद,सबकी करी सफाई है ।
गिरजाघर में जा कर के,ईसा की करी बुराई है ।।
बात करैं सब अंगरेजी मा,निज भाषा बिसराई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(७)
मित्र शत्रु सम हुए प्रीति की,डाली तोड बहाई है ।
विद्या बिन हो गये विप्र,गायत्री तलक भुलाई है ।।
क्षत्रिय बैठे नारी बनकर,ले तलवार छिपाई है ।
बन आईना कुछ बनियों ने माया मुफ्त लुटाई है ।।
शूद्र हुए धनवान ब्राह्मणों,ने कीन्हीं सेवकाई है ।
ग्वाल-बाल औरमथुराके,चौबों की बातबनि आईहै।।
चारों युगों से कलि ने अपनी,नई रीति दिखलाई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(८)
अपूज पुजने लगे कहैं सब,शिर पर देवी आई है ।
घर-घर में गुलगुले शेख सैयद की चढी कढाई है।।
परब्रह्म को छोड भूत,प्रेतों की दई दुहाई है।
मूड हिलाती बैठी मालिन,कहैं कुसुम्भी माई है।।
बालभोग ठाकुरको नहि,सय्यद के लिए मिठाई है ।
संत को कम्बल नही,पतुरिया को कुर्ती सिलवाई है ।।
गुरू हरैं चेलों का धन,चेला करता चतुराई है ।
उलटा चलन चला दुनिया में,सबकी मति बौराई है ।।
(९)
विधवा लग गई पान चबाने,दे शुरमा मुसकाई है ।
नित करती श्रंगार देखकर,अहिवाती शरमाई है ।।
बैठे ज्वाँरी बनके घरमा,हुआ जगत अन्यायी है ।
सब लक्षण विपरीत और,घर-घर में होत लडाई है ।।
गाय जाय लाखों मारी,करता नही -कोई सुनाई है।
इसीसेपडता अकालसृष्टिमें,संपति सकल बिलाई है ।।
हो दयाल हेनाथ "अजय"पे,कलियुगकी महिमागाईहै
।। इति ।।
डा. अजय दीक्षित कृत कलियुग महिमा समाप्त
Drajaidixit@gmail.com
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