💚💚जय श्री सीताराम जी 💚💚
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महिषासुर का वध
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जगदम्बा के श्रीअंगों की कांति उदयकाल के सहस्रों सूर्यों के समान है । वे लाल रंग की साड़ी पहने हुए हैं। उनके गले में मुण्डमाला शोभा पा रही है। उनके मस्तक पर चन्द्रमा के साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है। ऐसी देवी को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ ।
अपनी सेना का संहार होता देख महिषासुर ने भैंसे का रूप धारण करके देवी के गणों को त्रास देना आरम्भ किया। किन्हीं को थूथन से मारकर, किन्हीं के ऊपर खुरों का प्रहार करके, कुछ को सींगों से विदीर्ण करके, किन्हीं को सिंहनाद से, कुछ को चक्कर देकर और कितनों को निःस्वास वायु के झोंके से धराशायी कर दिया।
इससे जगदम्बा को बड़ा क्रोध हुआ । उधर महिषासुर भी क्रोध में भरकर धरती को खुरों से खोदने लगा तथा अपने सींगों से ऊंचे-ऊंचे पर्वतों को उठाकर फेंकने और गर्जने लगा ।उसकी पूंछ से टकराकर समुद्र सब ओर से धरती को डुबोने लगा, उसके सींगों के प्रहार से बादलों के टुकड़े-टुकड़े हो गये। इस प्रकार क्रोध में भरे हुए उस दैत्य को अपनी ओर आते देख चंडिका ने उसका वध करने के लिए महान क्रोध किया। उन्होंने पाश फेंक कर उस असुर को बाँध लिया। बँध जाने पर उसने भैंसे का रूप त्याग दिया और तत्काल सिंह के रूप में प्रकट हो गया।
उस अवस्था में जगदम्बा ज्योंही उसका मस्तक काटने के लिए उद्यत हुईं, त्यों ही वह खड्गधारी पुरुष के रूप में दिखाई देने लगा। तब देवी ने तुरंत बाणों की वर्षा करके ढाल और तलवार के साथ उस पुरुष को भी बींध डाला। इतने में वह महान गजराज के रूप में परिणत हो गया तथा सूंड़ से देवी के विशाल सिंह को खींचने लगा। खींचते समय देवी ने तलवार से उसकी सूंड़ काट डाली।
तब उस महादैत्य ने पुनः भैंसे का रूप धारण कर लिया और पहले की ही भाँति तीनों लोकों को व्याकुल करने लगा। तब क्रोध में भरी हुई जगन्माता उत्तम मधु का पान करने और लाल आँखें करके हँसने लगीं।
देवी ने कहा-- ओ मूढ़। मैं जब तक मधु पीती हूँ, तब तक तू क्षणभर के लिए खूब गर्ज ले। मेरे हाथ से यहीं तेरी मृत्यु हो जाने पर अब शीघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे।
यों कहकर देवी उछलीं और उस महादैत्य के ऊपर चढ़ गयीं। फिर अपने पैर से उसे दबाकर उन्होंने शूल से उसके कण्ठ में आघात किया। उनके पैर में दबा होने पर भी महिषासुर अपने मुख से दूसरे रूप में बाहर होने लगा। अभी आधे शरीर से ही वह बाहर निकल पाया था कि देवी ने उसे रोक दिया। आधा निकला होने पर भी वह महादैत्य देवी से युद्ध करने लगा।
तब देवी ने बहु बड़ी तलवार से उसका मस्तक काट गिराया। फिर तो हाहाकार करती हुयी दैत्यों की सारी सेना भाग गयी तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न हो गये।
देवताओं ने दिव्य महर्षियों के साथ दुर्गादेवी का स्तवन किया। गन्धर्वराज गाने लगे तथा अप्सराएँ नृत्य करने लगीं।
---श्री हरिः शरणम्---
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