मंगलवार, 19 सितंबर 2017

श्रीरामभक्त श्रीकाकभुशुंडजी की कथा

🌷🌷 *।। श्रीरामभक्त श्रीकाकभुशुंडजी श्रीरामचरितमानस के अनुसार । बहुत सारे प्रश्न एक साथ माता पार्वती भगवान शिव से पूछ रही हैं । आप भी पढ़े सारे प्रश्नों ओर उनके उत्तरों को ।।* 🌷🌷

*राम परायन ग्यान रत गुनागार मति धीर ।*
*नाथ कहहु केहि कारन पायउ काक सरीर ॥*

*भावार्थ -* हे नाथ ! कहिए, (ऐसे) श्री रामपरायण, ज्ञाननिरत, गुणधाम और धीरबुद्धि भुशुण्डिजी ने कौए का शरीर किस कारण पाया?॥

*यह प्रभु चरित पवित्र सुहावा। कहहु कृपाल काग कहँ पावा ॥*
*तुम्ह केहि भाँति सुना मदनारी। कहहु मोहि अति कौतुक भारी ॥*

*भावार्थ -* हे कृपालु ! बताइए, उस कौए ने प्रभु का यह पवित्र और सुंदर चरित्र कहाँ पाया? और हे कामदेव के शत्रु! यह भी बताइए, आपने इसे किस प्रकार सुना ? मुझे बड़ा भारी कौतूहल हो रहा है॥

*गरुड़ महाग्यानी गुन रासी । हरि सेवक अति निकट निवासी ।*
*तेहिं केहि हेतु काग सन जाई। सुनी कथा मुनि निकर बिहाई ॥*

*भावार्थ -* गरुड़जी तो महान्‌ ज्ञानी, सद्गुणों की राशि, श्री हरि के सेवक और उनके अत्यंत निकट रहने वाले (उनके वाहन ही) हैं। उन्होंने मुनियों के समूह को छोड़कर, कौए से जाकर हरिकथा किस कारण सुनी?॥

*कहहु कवन बिधि भा संबादा। दोउ हरिभगत काग उरगादा ॥*
*गौरि गिरा सुनि सरल सुहाई। बोले सिव सादर सुख पाई ॥*

*भावार्थ -* कहिए, काकभुशुण्डि और गरुड़ इन दोनों हरिभक्तों की बातचीत किस प्रकार हुई?

*पार्वतीजी की सरल, सुंदर वाणी सुनकर शिवजी सुख पाकर आदर के साथ बोले-*

*हे पार्वती ! जब इंद्रजीत ने श्रीराम पर नागपाश चलाया। श्रीराम नागपाश में इसलिए बंध गए क्योंकि उन्होंने नागराज वासुकी को वरदान दिया था कि वह उनके सम्मान की रक्षा करेंगे। श्रीहरि के वाहन गरूड़ ने नागपाश काटकर प्रभु को बंधन मुक्त कराया।*

प्रभु नागपाश में बंध गए ! श्रीगरूड़जी को श्रीराम के भगवान होने पर संदेह हो गया। संदेह दूर करने गरुड़ ब्रह्मा के पास गए, ब्रह्मा ने शिव के पास और शिवजी ने श्रीरामभक्त श्रीकाकभुशुंडी के पास भेजा। श्रीकाकभुशुंडी ने श्रीगरूड़ का संदेह दूर किया और अपनी कथा सुनाई।

*सतयुग के पूर्व के कल्प में श्रीकाकभुशुण्डि का पहला जन्म अयोध्या में एक शूद्र के घर में हुआ। वह श्रीशिवजी के अनन्य भक्त थे किन्तु अज्ञानता में शिवजी के अलावा अन्य सभी देवताओं की निन्दा किया करते थे।*

एक बार अयोध्या में घोर अकाल पड़ा। भुशुंडी को अयोध्या छोड़कर उज्जैन जाना पड़ा। उज्जैन में वह दयालु ब्राह्मण की सेवा में लगे और उन्हीं के साथ रहने लगे।

*वह ब्राह्मण भी शिव के अनन्य भक्त थे लेकिन वह भुशुंडी की तरह भगवान विष्णु की निन्दा कभी नहीं करते थे। ब्राह्मण ने भुशुंडी को शिव जी का गूढ़ मन्त्र दिया। मन्त्र पाकर उसका अभिमान और बढ़ गया।*

अब तो वह भगवान विष्णु से जैसे द्रोह का ही भाव रखने लगा। भुशुंडी के इस व्यवहार से उसके गुरु अत्यन्त दुःखी थे। वह उसे श्रीराम की भक्ति का उपदेश देकर राह पर लाने की कोशिश करते थे। पर भुशुंडी सुनने को राजी न था।

*एक दिन भुशुंडी ने भगवान शिव के मन्दिर में अपने गुरु का अपमान कर दिया। महादेव भुशुंडी के इस व्यवहार से बड़े क्रोधित हुए। तभी आकाशवाणी हुई- मूर्ख तुमने गुरु का निरादर किया है। इसलिए तू सर्प योनि में जाएगा। सर्प योनि के बाद भी तुझे 1000 बार अनेक योनियों में जन्म लेना पड़ेगा ।*

गुरु बड़े दयालु थे। उन्होंने अपने शिष्य की शाप से मुक्ति लिए शिवजी की स्तुति करनी शुरू की। गुरु द्वारा क्षमा याचना पर आकाशवाणी हुई- मेरा शाप व्यर्थ नहीं जायेगा। इसे 1000 बार जन्म तो लेना ही पड़ेगा किन्तु यह जन्म और मृत्यु की पीड़ा से मुक्त रहेगा और इसे इसे हर जन्म की बातें याद रहेंगी।

*भुशुंडी ने विन्ध्याचल में सर्प योनि प्राप्त किया। कुछ समय बाद भुशुंडी अपने शरीर को बिना किसी कष्ट के त्याग दिया करता था। उसे हर जन्म की बातें याद रहती थीं। श्रीरामचन्द्रजी के प्रति भक्ति भी उसमें जाग गई ।*

भुशुंडी ने अन्तिम शरीर एक ब्राह्मण का पाया और ज्ञानप्राप्ति के लिए लोमश ऋषि के पास गया। लोमश ऋषि उसे जब ज्ञान देते, वह उनसे कुतर्क करने लगता। नाराज होकर लोमश ऋषि ने उसे चाण्डाल पक्षी (कौआ) होने का शाप दे दिया।

*शाप देने के बाद ऋषि को पश्चाताप हुआ। उन्होंने कौए को राममन्त्र देकर इच्छा मृत्यु का वरदान दे दिया। चूंकि भुशुंडी को कौए का शरीर पाने के बाद वरदान में राममन्त्र और इच्छामृत्यु का वरदान मिला इसलिए उसे इस शरीर से प्रेम हो गया ।*

*ताते यह तन मोहि प्रिय भयउ राम पद नेह ।*
*निज प्रभु दरसन पायउँ गए सकल संदेह ॥*

*भावार्थ -* मुझे अपना यह काक शरीर इसीलिए प्रिय है कि इसमें मुझे श्री रामजी के चरणों का प्रेम प्राप्त हुआ। इसी शरीर से मैंने अपने प्रभु के दर्शन पाए और मेरे सब संदेह जाते रहे (दूर

*वह कौए के रूप में ही रहकर राम कथा सुनाने लगे तथा काकभुशुण्डी के नाम से विख्यात हुए ।*

*।। जय श्री सीताराम ।।*

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