मंगलवार, 19 सितंबर 2017

कथा सुमन्त जी की

🌷🌷जय श्री सीताराम जी 🌷🌷
💐💐💐💐💐💐💐💐💐

          एक बार राम अपनी सभा में बैठे थे कि एक सेवक ने आकर कहा -- हे महाराज ! आपका वृद्ध मन्त्री सुमन्त्र स्वर्गगामी हो गया ।उसकी पत्नियाँ सती होने हेतु आपकी आज्ञा मागती हैं ।यह समाचार सुनकर श्री राम जी एक रथ पर आरुढ़ होकर सुमन्त्र के घर गये ।वहाँ पहुँच कर उन्होंने सुमन्त्र की जन्म कुन्डली मँगायी और उसे पण्डितों को दिखलाया ।उससे यह ज्ञात हुआ कि नौ हजार नौ सौ निन्यानवे वर्ष सुमन्त्र की कुल आयु थी।उसमें सब तो व्यतीत हो गये, अब केवल नौ दिन शेष रह गये हैं ।तब श्री राम ने गुरु वशिष्ठ को बुलाकर उनसे कहा कि हे गुरो! त्रेतायुग में दस हजार वर्ष मनुष्य की आयु मानी गयी है ।इस नियम से यमराज ने मेरे राज्य में मेरा अपमान किया है, जो इस नियम की अवहेलना की है ।ज्ञात होता है वह मेरे द्वारा दण्डित होगा ।क्योंकि मेरे इस मंत्री की आयु में अभी नौ दिन शेष हैं, फिर यमराज ने क्यों इन्हें अपने यहाँ मँगा लिया है? अतः अब मैं यम को बाँध कर यहाँ ले आता हूँ और सुमंत्र को जीवित करता हूँ ।
         वशिष्ठ जी से ऐसा कहकर श्री रामचन्द्र जी गरुड़ पर जा बैठे और धनुषटंकार करते हुए यमराज की संयमिनीपुरी की ओर चल दिये ।मार्ग में देखा तो यम  के दूत सुमन्त्र को बाँधे लिए जा रहे थे ।दृष्टि पड़ते ही राम ने दूतों को मारकर सुमन्त्र को छुड़ा लिया ।इस पर यमदूतों ने विनयपूर्वक कहा कि हमने आपका क्या अपराध किया था कि जिसके कारण आपने हमारा यह अधिकार छीन लिया है ।राम ने कहा कि अभी इसके जीवन के नौ दिन शेष हैं फिर तुम लोग इसे कैसे बाँध कर ले जा रहे हो? जब इसके दिन पूरे हो जाँय तब सानन्द इसे ले जाना।राम की बात सुनकर यमदूत बोले -- राघव इसके जन्म की कथा अपूर्ण है ।जब यह जन्म लेने लगा था, तब माता की योनि से सर्वप्रथम इसके दोनों हाथ और मस्तक बाहर निकल आये थे ।तदनन्तर दसवें दिन इसके और अंग निकले थे ।श्रेष्ठ मंत्रों से पण्डितों ने  इसकी रक्षा कर ली थी।इसी से इसका नाम सुमन्त्र पड़ा था।तब जिस दिन इसके हाथ तथा मस्तक बाहर आया था, उसी दिन से आज तक इसकी  आयु समाप्त हो गयी।आप जो इसके नौ दिन बतलाते हैं, यह संदिग्ध है।अतएव हे राम ! इसमें हमारा कोई दोष नहीं है ।आपने व्यर्थ ही हमें मारा है ।
          तब उनकी इस बात को सुनकर राम ने कहा -- हे यम के दूतों! जिस दिन माता के गर्भ से इसका जन्म हुआ है, वही दिन इसके जन्म का दिन है ।उसी दिन को इसके माता पिता तथा ज्योतिषियों ने इसका जन्म दिन अंकित किया है ।अतएव वास्तव में अभी इसके नौ दिन शेष हैं ।तुम लोग जाओ और आज के दसवें दिन इसे ले जाना।उस दिन मैं अवरोध नहीं करूँगा ।
          राम जी की बात को सुनकर दूत वहीं से लौट गये ।राम जी भी  लौटकर अयोध्या चले आये।राम सुमन्त्र के घर आये।वहाँ उन्होंने सब लोगों को सुमन्त्र के साथ प्रसन्न देखा।सुमन्त्र ने राम को देखकर प्रणाम किया और उनकी पूजा की।पश्चात् राम अपने भवन को गये ।सुमन्त्र ने अपने जीवन के नौ दिन शेष जानकर पर्याप्त पुण्य दान किया ।यम के दूत अपनी पगड़ी फेंक कर यम से बोले -- हे यमराज ! तुम कैसे अपने अधिकार की रक्षा करते हो? अपने अनुचरों की यह दुर्दशा देख कर क्या तुम्हें लज्जा नहीं आती? मार्ग में राम ने हमसे सुमन्त्र को छुड़ा लिया और कहा कि अभी इसके जीवन के नौ दिन शेष हैं ।जब उसके वह नौ दिन पूरे हो जाँयगे तभी राम उसे आने देंगे ।अब हम लोग जल में डूबकर अपने प्राण विसर्जन कर देंगे ।
         तब दूतों की यह बात सुनकर यमराज क्रोध के मारे  लाल हो गये और दूतों से कहा कि तुम सब कुछ भी खेद प्रकट न करो।मैं आज ही राम को बाँध कर उनके इस कृत्य का दण्ड दूँगा।तुम जाकर सेना तैयार करो।तब तक मैं इन्द्र के पास जाता हूँ ।ऐसा कहकर यमराज तत्क्षण इन्द्र के पास चले गये ।उन्हें सारा वृतान्त सुनाया और सहायता करने की प्रार्थना की।यम की बातें सुनकर इन्द्र ने कहा कि हे यमराज ! क्या तुम उन्मत्त तो नहीं हो गये हो? तभी तो भगवान विष्णु के साथ युद्ध करना चाहते हो ।अब यही उचित है कि तुम अपनी संयमिनीपुरी लौट जाओ।राम का तुम क्या कर सकते हो?  उनसे भयभीत होकर ही तो मैंने अपने यहाँ से पारिजात और कल्पवृक्ष इन दोनों देववृक्षों को उठा दिया था ।
           

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें