शनिवार, 17 जून 2017

एक राजा था बलधारी-- जिसकी थी इक लाचारी--जो कभी कभी बनता पुरुष कभी बनता

।। ओम दशरथ नंदनाय नमः।             🎿🎿🎿🎿🎿🎿🎿🎿🎿
डा.अजय दीक्षित
🔯🔯🔯🔯🔯🔯एक राजा था बलधारी--जो कभी कभी बनता पुरुष कभी बनता नारी ।।
🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪
  
प्रजापति कर्दम के पुत्र इल वाह्लीक देश के राजा थे। एक समय शिकार खेलते हुये वे उस स्थान पर जा पहुँचे जहाँ स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ था और भगवान शंकर अपने सेवकों के साथ पार्वती का मनोरंजन करते थे। उस प्रदेश में शिव की माया से सभी प्राणी स्त्री वर्ग के हो गये थे। नर पशु-पक्षी या मनुष्य कोई भी दृष्टिगत नहीं होता था। राजा इल ने भी सैनिकों सहित स्वयं को वहाँ स्त्री रूप में परिणित होते देखा। इससे भयभीत होकर वे शंकर जी के शरणागत हुये और उनसे पुरुषत्व प्रदान करने की प्रार्थना करने लगे।

🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯🎯
       जब भगवान शंकर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की तो उन्होंने व्याकुल होकर, गिड़गिड़ा कर उमा से प्रार्थना की। इससे प्रसन्न होकर उमा ने कहा कि मैं भगवान शंकर की केवल अर्द्धांगिनी हूँ। इलिये मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन के केवल आधे काल के लिये पुरुष बना सकती हूँ। बोलो, तुम अपनी आयु के पूर्वार्द्ध के लिये पुरुषत्व चाहते हो या उत्तरार्द्ध के लिये? इल कुछ क्षण सोचकर बोले कि देवि! ऐसा कर दीजिये कि मैं एक मास पुरुष और एक मास स्त्री रहा करूँ। पार्वती जी ने ‘तथास्तु’ कहकर उनकी इच्छा पूरी कर दी।

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿

इस वरदान के फलस्वरूप इल प्रथम मास में त्रिभुवन सुन्दरी नारी बन गये तथा इल से इला कहलाने लगे। इल उक्‍त क्षेत्र से निकलकर उस सरोवर पर पहुँचे जहाँ सोमपुत्र बुध तपस्या कर रहे थे। इला पर दृष्टि पड़ते ही बुध उस पर आसक्‍त हो गये एवं उसके साथ रमण करने लगे। उन्होंने राजा के साथ आये स्त्रीरूपी सैनिकों का वृतान्त जानकर उन्हें किंपुरुषी (किन्नरी) होकर पर्वत के किनारे रहने का निर्देश दिया। उन्होंने आग्रह करके इल को एक वर्ष के लिये वहीं रोक लिया।

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

       एक मास पश्‍चात् इला ने इल के रूप में पुरुषत्व प्राप्त किया। अगले मास वे फिर नारी बन गये। इसी प्रकार यह क्रम चलता रहा और नवें मास में इला ने पुरुरवा को जन्म दिया। अन्त में इल को इस रूप परिवर्तन से मुक्‍ति दिलाने के लिये बुध ने महात्माओं से विचार विमर्श करके शिव जी को विशेष प्रिय लगने वाला अश्‍वमेघ यज्ञ कराया। इससे प्रसन्न होकर शिव जी ने राजा इल को स्थाई रूप से पौरुष प्रदान किया। हे महाबाहु! वास्तव में अश्‍वमेघ यज्ञ अमित प्रभाव वाला है।”

📖📖📖📖📖📖📖📖📖📖📖📖📖📖📖
                  ।। जय सियाराम।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें