।। जय गंगा मैया ।।
डा.अजय दीक्षित----------------
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१---क्या है ? प्रात: संध्या और सायं संध्या ।
२---गोमती, सरयु और शिप्रा महानदियों का कैसे हुआ प्रादुर्भाव ?
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ब्रम्हा जी की मानस पुत्री संध्या ने महर्षि मेधाातिथि के यग्य कुन्ड में अपने शरीर को भस्म कर दिया । अग्नि देव ने उसके शरीर को जलाकर सूर्य मंडल में प्रविष्ट कर दिया । सूर्य ने उसके शरीर तत्व को दो भागों मे बाँटकर अपने रथ पर स्थापित कर लिया।
उसके शरीर का ऊपरी भाग जो दिन का प्रारम्भ यानी प्रात:काल है; उसका नाम " प्रात: संध्या " हुआ ।
शेष भाग दिन का अंत सायं संध्या हुआ ।
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+++++यग्य के अंत में महर्षि मेधाातिथि को यग्य कुंड से एक कन्या प्राप्त हुई। (ये कन्या यही संध्या है ) महर्षि मेधाातिथि ने उसका पालन - पोषण किया और उसका नाम अरूंधती रखा। जब अरूंधती पाँच वर्ष की हो गई तो ब्रम्हा जी पधारे और बोले---अब तुम्हारी कन्या को शिक्षा प्रदान करने का समय आ गया है; इस लिए इसे अब सती साध्वी स्त्रियों के पास रखकर शिक्षा दिलवानी चाहिए। क्योंकी कन्या की शिक्षा पुरूषों द्वारा नही होनी चाहिए। स्त्री ही स्त्रियों को शिक्षा दे सकतीं हैं। किंतु तुम्हारे पास तो कोई स्त्री नही है । अतएव तुम अपनी कन्या को सूर्य लोक में बहुला और सावित्री के पास भेजकर उसकी शिक्षा पूरी करो ।
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महर्षि मेधाातिथि ने ऐसा ही किया । शिक्षा पूर्ण होने के बाद एक दिन कन्या अरूंधती मानस पर्वत पर भ्रमण करने गई, जहाँ उसने महर्षि वशिष्ठ को देखा, देखते ही कन्या का मन बिचलित हो गया । अरूंधती वापस सूर्य लोक जगत जननी सावित्री के पास आ गई । अरूंधती की मानसिक स्थित देख के माता सावित्री बोलीं-- जिसे तुमने देखा है वह परम तेजस्वी रिषी कोई दूसरे नही है । वे तुम्हारे भावी पति हैं। और ये पहले से ही निश्चित हो चुका है। उनके दर्शन के कारण क्षोभ होने से तुम्हारा सतीत्व नष्ट नही है । तमने उन्हें पति के रूप में पूर्व जन्म में ही वरण कर लिया है। और वे भी तुमसे प्रेम करते हैं। तुम्हें ह्रदय से चाहते हैं। अब तुम्हारे साथ उनका विवाह होगा ।
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ब्रम्हा जी , विष्णु जी ,महेश, नारद तथा इंद्रादि देवताओं ने वशिष्ठ तथा अरूंधती का विवाहोत्सव सम्पन्न किया।
ब्रम्हा जी ने सूर्य के समान प्रकाशमान त्रिलोकी में बिना रूकावट के उडने वाला सुन्दर विमान दिया ।
विष्णु जी ने सबसे ऊँचा स्थान दिया ।
रूद्र ने सात कल्प की आयु दी ।
आदित ने ब्रह्म द्वारा बनाये हुए अपने दोनों कान के कुंडल उतार के दे दिये ।
सावित्री ने पातिव्रत्य, बहुला ने बहुपुत्रत्व, इन्द्र ने बहुत से रत्न, तथा कुवेर ने समता दी ।
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+++++विवाह के अवसर पर ब्रम्हा, विष्णु आदि देवताओं के द्वारा वशिष्ठ जी को स्नान कराते समय जो जलधारायें गिरी थीं ,वे ही जल धारायें, गोमती सरयु, शिप्रा महानदी आदि सात नदियों के रूप में हो गईं ।
जिनके दर्शन, स्पर्श, स्नान और पान से सारे संसार का कल्याण होता है ।
++++++++++++++++++++++++++++++. Ajai Dixit@gmail.Com
+++++अगर आप सभी मित्रों को ये पावन कथा अच्छी लगे, तो अपने विचार जरूर लिखें।
डा.अजय दीक्षित----------------
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