मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

श्री मद् देवी भागवत महापुराण :-- बारहवां अध्याय 🏵️ आचार्य डा.अजय दीक्षित

।। ओम् कामाख्या देव्यै नमः ।।
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श्री मद् देवी भागवत महापुराण :---- बारहवां अध्याय
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                ।। आचार्य डा.अजय दीक्षित ।।
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                       ओम् गं गणपतये नमः

इस अध्याय में शंकर जी का योनिपीठ कामरूप (कामाख्या) में जाकर तपस्या करना है, जगदम्बा द्वारा प्रकट होकर शीघ्र ही गंगा तथा हिमालय पुत्री पार्वती के रूप में आविर्भूत होने का उन्हें वर प्रदान करना है, भगवान शंकर द्वारा इक्यावन शक्तिपीठों में प्रधान कामरूप पीठ के माहात्म्य का प्रतिपादन है ।

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श्रीमहादेवजी बोले – तब नारदजी ने विष्णु भगवान के पास जाकर घटित घटनाओं और देवाधिदेव के सारे व्यवहार का यथावत वर्णन किया।।1।।

 शिवजी के व्याकुलचित्त होकर शापित करने की बात सुनकर ब्रह्मा सहित भगवान विष्णु कामरूपप्रदेश में गये।।2।।

 वे वहाँ शोक से व्याकुलचित्त हुए भगवान महेश को, जिनका सारा शरीर आँसुओं से भीग-सा गया था, देखने और सान्त्वना देने गये थे. उन दोनों को आया देखकर भगवान शिव अपनी पत्नी सती को अनेक प्रकार से याद करते हुए सामान्य जन की तरह मुक्तकण्ठ से रुदन करने लगे।।3-4।।

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ब्रह्मा और विष्णु बोले – देवदेवेश शंकर ! आप इस प्रकार व्यर्थ ही क्यों रो रहे हैं? आप जानते हैं कि सती विद्यमान हैं, अत: सारी बात जानने वाले आपका मूढ़वत शोक करना उचित नहीं है।।5।।

शिवजी बोले – आप लोग ठीक कहते हैं. मैं जानता हूँ कि सती प्रकृतिरूपा हैं, वे शुद्धा, नित्या, ब्रह्ममयी और सृष्टि, स्थिति तथा संहार करने वाली हैं।।6।। 

दक्षयज्ञ के नष्ट होने के बाद मैंने उन्हें अपनी आँख से उसी रूप में देखा भी है, लेकिन पहले की तरह पत्नी भाव से अपने घर में उन महेश्वरी को न पाकर इस समय मेरा मन अत्यन्त व्याकुल हो रहा है. इसलिए ब्रह्मन् विष्णो ! मैं पूर्ववत् उन्हें कैसे प्राप्त करूँगा? आप मुझे अब इसका उपाय बताएँ।।7-8½।।        

ब्रह्मा और विष्णु बोले – देव ! आप शान्तचित्त होकर इस कामरूपपीठ में रहकर मन में महादेवी का ध्यान करते हुए समाहित चित्त से तपस्या करें. यह महापीठ है, यहाँ ही परमेश्वरी साक्षात् विराजमान होकर अपने साधकों को प्रत्यक्ष फल प्रदान करती हैं. इसमें संशय नहीं है. इस सिद्धपीठ का माहात्म्य कौन बता सकता है! आप तो परमेश्वर हैं, सर्वज्ञ हैं, सब कुछ जानते हैं, हम लोग आपको क्या बतायें? शिव ! अब आप शान्तचित्त हो जाएँ।।9-12।।

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शिवजी बोले – मैं अब यहीं रहकर स्थिरचित्त हो उग्र तपस्या करूँगा, जैसा कि आप दोनों ने अभी कहा है।।13।।

श्रीमहादेवजी बोले – इतना कहकर शिवजी ने कामरूप सिद्धपीठ पर उन परमेश्वरी जगदम्बा का ध्यान करते हुए शान्त एवं समाहितचित्त होकर तप किया. ब्रह्मा और विष्णु भी उसी महापीठ पर रहते हुए समाहितचित्त होकर कठोर और परम तप करने लगे।।14-15।।

 बहुत समय बीतने पर जगदम्बा प्रसन्न हुईं और उन जगन्माता ने त्रैलोक्य मोहिनी रूप में उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया. महादेवी ने पूछा कि आपकी क्या अभिलाषा है, बताएँ।।16½।।

शिवजी बोले – परमेश्वरी ! जिस प्रकार आप पहले मेरी गृहिणी बनकर रहती थीं, वैसे ही कृपापूर्वक पुन: रहें।।17½।।

देवीजी बोलीं – महेश्वर ! शीघ्र ही मैं हिमालाय की पुत्री बनकर स्वयं अवतार लूँगी और निश्चय ही मैं दो रूपों में सामने आऊँगी. चूँकि आपने सती के शरीर को सिर पर उठाकर हर्षपूर्वक नृत्य किया था, अत: मैं उनके अंश से जलमयी गंगा का रूप धारन करके आपको ही पतिरूप में प्राप्त कर आपके सिर पर विराजमान रहूँगी. दूसरे रूप से मैं पार्वती होकर आपके घर में पत्नीभाव से रहूँगी. शंकर ! महामति ! मेरा यह रूप पूर्णावतार होगा।।18-21।।

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श्रीमहादेवजी बोले – तब ब्रह्मा और विष्णु को भी उनका अभिलषित वर प्रदान करके भगवती जगदम्बा स्वयं अन्तर्धान हो गयीं।।22।। 

इसके अनन्तर महादेवी दुर्गा ने हिमालय के यहाँ मेनका के गर्भ में दो रूपों में अवतार लिया. भगवती ने ज्येष्ठा-रूप से गंगा और कनिष्ठा-रूप से शुभ लक्षणों वाली पार्वती बनकर जन्म लिया. महामति शिव भी प्रसन्नचित्त होकर कामरूप पर्वत पर कामाख्यापीठ के निकट पुन: कठोर तपस्या करने लगे. उस महापीठ के माहात्म्य से भगवती ने स्वयं प्रसन्न होकर शिव को अभीष्ट वर प्रदान किया. इसी प्रकार जब भी अन्य कोई उस सिद्धपीठ में भगवती की आराधना करता है तो उसे वे देवी मनिवाँछित फल प्रदान करती हैं।।23-26½।। 

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श्रीनारदजी बोले – महेश्वर ! मुझे कामरूप का माहात्म्य बतायें, जहाँ साक्षात् प्रकट होकर भगवती प्रत्यक्ष फल देती हैं. परमेश्वर ! चूँकि सभी पीठों की क्रमिक गणना में वह श्रेष्ठ पीठ है इसीलिए आपने भी वहीं तपस्या करके जगदम्बा की आराधना की थी।।27-28½।।

श्रीमहादेवजी बोले – मुनिश्रेष्ठ ! धरातल पर छाया सती के अंग-प्रत्यंग गिरने से इक्यावन शक्तिपीठ बन गये. महामते ! उनमें कामरूप श्रेष्ठतम शक्तिपीठ है।।29-30।। 

जहाँ भगवती साक्षात् निवास करती हैं, उस सिद्धपीठ में जाकर ब्रह्मपुत्र नद के लिए लालिमा लिए जल में स्नान करके मनुष्य ब्रह्महत्या के पाप से भी सद्य: संसार-बंधन से मुक्त हो जाता है. ब्रह्मपुत्र नद भगवान विष्णु का साक्षात् जलरूप है, उसमें स्नान करके मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।।31-32½।।

वहाँ विधिपूर्वक स्नान एवं पितरों का तर्पण करके साधक को भक्तिपूर्वक भगवती कामेश्वरी को इस मन्त्र से नमस्कार करना चाहिए – “मैं कामरूप में निवास करने वाली उन भगवती कामाख्या कामेश्वरी को नमस्कार करता हूँ, जिन सुरेश्वरी का स्वरुप तपे हुए स्वर्ण की कान्ति के समान सुशोभित है.” तत्पश्चात मानस-कुण्डादि तीर्थों में जाकर विधिपूर्वक स्नान करके यथाविधि कामरूपक्षेत्र में प्रवेश करना चाहिए. सिद्धपीठ कामाख्या के दर्शन करके मनुष्य सद्य: मुक्ति को प्राप्त कर लेता है, अन्य कोई उपाय नहीं है।।33-36।।

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वहाँ तन्त्रोक्त विधि से परमेश्वरी का पूजन करके जप-होमादि करने से जैसा फल प्राप्त होता है, करोड़ों मुखों से भी मैं उसका वर्णन करने में समर्थ नहीं हूँ।।37½।।

 महामुने ! उस पवित्र क्षेत्र में जिसकी मृत्यु हो जाती है, उसे सद्य: मुक्ति निश्चित ही प्राप्त हो जाती है, इसमें कोई संशय नहीं है. महामुने ! अधिक क्या कहूँ, मनुष्यों की तो बात छोड़िए, देवता भी उस पुण्यक्षेत्र में मृत्यु की कामना करते हैं. वत्स ! मैंने आपको संक्षेप में कामरूपक्षेत्र का माहात्म्य बताया, जो सभी पापों का नाश करने वाला है।।38-40½।। 

उस पवित्र क्षेत्र में महादेवी की स्तुति करके भगवान शिव तपस्या करने लगे. सती ने हिमवान के घर में दो रूपों में जन्म लिया. इस प्रकार जिन परा प्रकृति भगवती ने दक्ष के घर में जन्म लिया था, उन्होंने परमकीर्ति स्थापित करके लोकरक्षण के लिए भगवान महेश्वर को पुन: प्राप्त करने हेतु मेनका के गर्भ में प्रवेश किया।।41-43।। 

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महापातकों का नाश करने वाले जगदम्बा के इस चरित्र का जो परम भक्तिपूर्वक श्रवण करता है, वह शिवत्व को प्राप्त करता है।।44।। 

सभी देवता, मनुष्य, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और चारणादि उस पुण्यात्मा मनुष्य के इसी जन्म में आज्ञा के वशवर्ती हो जाते हैं, इसमें संदेह नहीं. इस पुण्य-चरित्र का श्रवण करने वाले मनुष्य की आज्ञा का उल्लंघन करने में कहीं कोई समर्थ नहीं होता. उसके दुर्गम और अति दुष्कर कार्य भी क्षण मात्र में ही अवश्य सिद्ध हो जाते हैं।।45-46।।

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इस पुण्य चरित्र के श्रवण से जन्म-जन्मार्जित पाप नष्ट हो जाए हैं, शत्रुओं का नाश होता है और वंश की वृद्धि होती है।।47।।

 महामते ! सत्य तो यह है कि जिन्होंने संसार में जन्म लेकर इस पुण्यचरित्र का श्रवण नहीं किया, उनका इस मृत्युलोक में जन्म लेना ही व्यर्थ है. संसाररूपी रोग के परमौषधरूप देवी के इस पवित्र आख्यान को सुनकर महान् पातकी मनुष्य भी सद्य: जीवन्मुक्त हो जाता है।।48-49।।

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।।इस प्रकार श्रीमहाभागवतमहापुराण के अन्तर्गत श्रीमहादेव-नारद-संवाद में “कामरूपादिमाहात्म्यवर्णन” नामक बारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।।      

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁😞🍁जय सियाराम जय जय हनुमान

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