शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

शायरी 🌽🌽🥕🥕 आचार्य डा.अजय दीक्षित

महफिल अजीब है, ना ये मंजर अजीब है
जो उसने चलाया वो खंजर अजीब है
ना डूबने देता है, ना उबरने देता है
उसकी आँखों का वो समंदर अजीब है
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नशीली आंखो से वो जब हमें देखते हैं
हम घबरा के अपनी ऑंखें झुका लेते हैं
कैसे मिलाए हम उन आँखों से आँखें
सुना है वो आँखों से अपना बना लेते हैं

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आँखें भी मेरी पलकों से सवाल करती हैं
हर वक्त आपको ही बस याद करती हैं
जब तक न कर ले दीदार आपका
तब तक वो आपका इंतजार करती हैं

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नज़र ने नज़र से मुलाक़ात कर ली
रहे दोनों खामोश पर बात कर ली
मोहब्बत की फिजा को जब खुश पाया
इन आंखों ने रो रो के बरसात कर ली

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उदास आँखों में अपना करार देखा है
पहली बार उसे बेक़रार देखा है
जिसे खबर ना होती थी मेरे आने जाने की
उसकी आँखों में अब इंतज़ार देखा है

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