मंगलवार, 7 नवंबर 2017

श्री दामोदराष्टकं

श्री श्री दामोदराष्टकं

श्री श्री दामोदराष्टकं

नमामीश्वरं सच्-चिद्-आनन्द-रूपं
लसत्-कुण्डलं गोकुले भ्राजमनम्
यशोदा-भियोलूखलाद् धावमानं
परामृष्टम् अत्यन्ततो द्रुत्य गोप्या ॥ १॥

रुदन्तं मुहुर् नेत्र-युग्मं मृजन्तम्
कराम्भोज-युग्मेन सातङ्क-नेत्रम्
मुहुः श्वास-कम्प-त्रिरेखाङ्क-कण्ठ
स्थित-ग्रैवं दामोदरं भक्ति-बद्धम् ॥ २॥

इतीदृक् स्व-लीलाभिर् आनन्द-कुण्डे
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेषित-ज्ञेषु भक्तैर् जितत्वं
पुनः प्रेमतस् तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥

वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चन्यं वृणे ‘हं वरेषाद् अपीह
इदं ते वपुर् नाथ गोपाल-बालं
सदा मे मनस्य् आविरास्तां किम् अन्यैः ॥ ४॥

इदं ते मुखाम्भोजम-नीलैर्
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश् च गोप्या
मुहुश् चुम्बितं बिम्ब-रक्ताधरं मे
मनस्य् आविरास्ताम् अलं लक्ष-लाभैः ॥ ५॥

नमो देव दामोदरानन्त विष्णो
प्रसीद प्रभो दुःख-जालाब्धि-मग्नम्
कृपा-दृष्टि-वृष्ट्याति-दीनं बतानु
गृहाणेष माम् अज्ञम् एध्य् अक्षि-दृश्यः ॥ ६॥ 
कुवेरात्मजौ बद्ध-मूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्ति-भाजौ कृतौ च
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मे ‘स्ति दामोदरेह ॥ ७॥

नमस् ते ‘स्तु दाम्ने स्फुरद्-दीप्ति-धाम्ने
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै
नमो ‘नन्त-लीलाय देवाय तुभ्यम् ॥ ८॥

दामोदर अष्टकम,,

(1)मैं सच्चिदानन्द स्वरूप उन श्री दामोदर भगवान को नमस्कार करता हूँ जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है,एवं सतचित आनन्द स्वरूप श्री विग्रह वाले है। जिनके दोनों कानो में दोनों कुण्डल शोभा पा रहे है;एवं जो स्वयं गोकुल में विशेष शोभायमान है,एवं जो यशोदा के भय से (माखन चोरी के समय)ऊखल (ओखली)के ऊपर से दौड़ रहे है;और माँ यशोदा ने भी जिनके पीछे शीघ्रता पूर्वक दौड़ कर ,जिनकी पीठ को पकड़ लिया है।

(2)मैं भक्ति रूप रज्जु में बंधने वाले उन्ही दामोदर भगवान को नमस्कार करता हूँ जो माता के हाथ में लठिया को देख कर,रोते रोते अपने दोनों कर कमलो से,अपने दोनों नेत्रो को बराबर पोंछ रहे है एवं भयभीत नेत्रो से युक्त है तथा निरन्तर लम्बे श्वासों से कांपते हुए,तीन रेखाओ से अंकित जिनके कण्ठ में स्थित मोतियो के हार भी हिल रहे है।

(3)मैं उन्ही दामोदर भगवान को फिर भी प्रेमपूर्वक सैंकड़ो बार प्रणाम करता हूँ,जो इस प्रकार की बाल लीलाओ के द्वारा अपने समस्त व्रज को,आनन्द रूप सरोवर में गोता लगवा रहे है;एवं अपने ऐश्वर्य को जाननेवाले ज्ञानियो के निकट ,भक्तो के द्वारा अपने पराजय के भाव को प्रकाशित करते है।

(4) हे देव!आप सब प्रकार के दान देने में समर्थ है;तो भी मैं आपसे मोक्ष की पराकाष्ठा स्वरूप बैकुंठ लोक,अथवा और वरणीय दूसरी किसी वस्तु की प्रार्थना नही करता हूँ। मैं तो केवल यही प्रार्थना करता हूँ कि हे नाथ!मेरे हृदय में तो आपका यह बालगोपाल रूप श्री विग्रह सदैव प्रकट होता रहे। इससे भिन्न दूसरे वरदानों से मुझे क्या प्रयोजन?

(5)और हे देव!आपका यह जो मुखारविंद अत्यंत श्यामल स्निग्ध ,एवं घुंघराले केश समूह से आवृत है;तथा बिम्बफल के समान रक्त वर्ण के अधरोष्ठ से युक्त है एवं माँ यशोदा जिसको बार बार चूमती रहती है ;व्ही मुखारविंद, मेरे मनमंदिर में सदा विराजमान होता रहे। दूसरे लाखो प्रकार के लाभों से मुझे कोई प्रयोजन नही है।

(6) हे देव!हे दामोदर!हे अनन्त!हे सर्वव्यापक प्रभो!आपके लिये मेरा नमस्कार है। आप मेरे ऊपर प्रसन्न हो जाइये।मैं दुःख समूह रूपी समुद्र में डूबा जा रहा हूँ अतः हे सर्वेश्वर !अपनी कृपा दृष्टि रूप अमृत वृष्टि के द्वारा अत्यंत दीन एवं मतिहीन मुझको अनुग्रहित कर दीजिये,एवं मेरे नेत्रो के सामने साक्षात् प्रकट हो जाइये।

(7) हे दामोदर!आपने ऊखल से बंधे हुए श्री विग्रह के द्वारा ही नलकूबर एवं मणिग्रीव नामक कुबेरपुत्रो को जिस प्रकार विमुक्त कर दिया था;उसी प्रकार मेरे लिए भी ,अपनी प्रेम भक्ति दे दीजिये;क्योंकि मेरा आग्रह तो आपकी इस प्रेम भक्ति में ही है,किन्तु मोक्ष में नही है।

(8) हे देव! प्रकाशमान दीप्ति समूह के आश्रय स्वरूप आपके उदर में बन्धी हुई रज्जु के लिए;जगत के आधार  स्वरूप आपके उदर को भी मेरा बार बार प्रनाम है।और आपकी परम् प्रेयसी श्री राधिका के लिए मेरा प्रणाम है। तथा अनन्त लीला वाले देवादिदेव आपके लिए भी मेरा कोटिश प्रणाम है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें