वास्तव में द्रौपदी के पांचों पुत्रों के जन्म से लेकर मृत्यु तक की कथा एक युग पूर्व ही लिखी जा चुकी थी। यह त्रेतायुग का समय था और इस समय सूर्य वंश के महाप्रतापी, महादानी, लोकप्रिय राजा हरिश्चंद्र का शासन था। राजा हरिश्चंद्र अपनी बात के पक्के माने जाते थे। एक समय शिकार खेलते समय उनके द्वारा अनजाने में ऋषि विश्वामित्र का ध्यान भंग हो गया।
राजा ने ऋषि को क्रोध त्यागने के लिए बहुत मनाया और उनके मांगने पर अपना राज्य ही उन्हें दे दिया। इसके बाद ऋषि दक्षिणा पर अड़ गए और लंबे तथा दिल दहलाने वाले घटनाक्रम के बाद यह स्पष्ट हुआ कि देवता और ऋषि मिलकर राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ले रहे थे। इस तरह राजा को उनका राज्य वापस मिल गया और कहानी का सुखद अंत हुआ।
इसी कहानी के बीच में एक वर्णन आता है कि जब ऋषि हर तरह से राजा को प्रताडि़त कर रहे थे, तब प्रजा तो उनसे नाराज थी ही, देवता भी इस अत्याचार को सहन नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में जब एक बार ऋषि विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र को मारने के लिए छड़ी उठा ली थी, तब पांच विश्व देव उनका यह अपमान सहन ना कर सके। वे साक्षात् प्रकट होकर ऋषि विश्वामित्र को बुरा-भला कहने लगे।
ऋषि विश्वामित्र स्वभाव से ही प्रचंड थे और उस समय तो वह देवताओं की इच्छा से राजा की परीक्षा ले रहे थे। वे विश्व देवों का उलाहना सहन ना कर सके और अपने कमंडल से जल लेकर उन पर फेंकते हुए श्राप दिया कि तुम सब मनुष्य रूप में जन्म लोगे और मनुष्य होकर ही तुम जानोगे कि मैं क्या कर रहा हूं और क्यों कर रहा हूं। उन्होंने यह भी कहा कि तुम सब केवल एक जीवन मनुष्य के रूप में काटोगे, उसके बाद वापस अपने विश्व देव रूप में आ जाओगे, पर मनुष्य होकर भी तुम्हें ना तो विवाह का सुख मिलेगा और ना ही संतान का।
कहा जाता है कि ऋषि के श्राप के फलस्वरूप ही द्वापर युग में पांचों विश्व देवों ने द्रौपदी के गर्भ से जन्म लिया। श्राप के कारण ही उन्हें लंबी आयु नहीं मिली और इतने शक्तिशाली पांच पिता और श्री कृष्ण जैसे महानायक का साथ मिलने के बावजूद वे सभी महाभारत युद्ध में मारे गए। युद्ध में अश्वत्थामा ने इन सबकी हत्या कर दी, बाद में ये सभी वापस देवलोक चले गए। ऋषि के श्राप के अनुसार ही इन पांचों को विवाह या संतान सुख नहीं मिला ।
भागवत में इन्हें धर्म ऋषि तथा (दक्षकन्या) विश्वा के पुत्र बताया है और इनके नाम दक्ष, व्रतु, वसु, काम, सत्य, काल, रोचक, आद्रव, पुरुरवा तथा कुरज दिए हैं। इन सबों ने राजा मरुत के यज्ञ में सभासदों का काम किया था।
वर्तमान मन्वंतर में सात ही विश्वेदेव मान गए हैं और मार्कंडेय पुराण के अनुसार विश्वामित्र के तिरस्कार करने के कारण इन्हें द्रौपदी के गर्भ से उनके पाँच पुत्रों के रूप में जन्म लेना और अश्वत्थामा के हाथों मरना पड़ा था।
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