मंगलवार, 1 अगस्त 2017

शिव जी के आत्म लिंग की कथा----जिसे रावण लंका ले जाना चाहता था ।

    डा.अजय दीक्षित

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बात त्रेतायुग की है जब रावण की माता कैकसी, मानस पुत्र ब्रह्मा पुलस्ति की पत्नी, प्रतिदिन लंका में समुद्र किनारे शिवजी की पूजा करती थी। हर दिन वह मिटटी का शिवलिंग बनाती थी, उसमे प्राण प्रतिष्ठा करती थी। फिर उसका पूजा व अभिषेक करती थी। फिर वह लिंग समुद्र के उतार चढ़ाव वाले प्रवाह में बह जाता।

रावण की माता मिटटी के शिवलिंग की पूजा करती हैं।

एक दिन मातृभक्त रावण ने आपनी माँ से पूछा, कि क्यों इस मिट्टी के शिवलिंग को पूज रही हो। तो उसने बताया की मरने के बाद उसे कैलाश में स्थान मिलेगा। रावण ने कहा कि मैं स्वयं कैलाश ही आपके लिए ले आता हूँ, शिवजी की तपस्या करके। आप कृपया निश्चित रहिये। और रावण चल पड़ा कैलाश की ओर।

रावण अपनी माता के कहता है की वोह ओसके लिए कैलाश ही उठा कर लेके आएगा.

रावण शिव शंकर की घोर तपस्या करता रहा ।

 

एक बार रावण फिर तपस्या करता है.

नारद मुनि जाते है श्री हरी विष्णु भगवान के पास, चिंतित और जिग्यात्सुक होकर। तो श्री हरी बोलते है की वह अपनी माया से रावण को भ्रमित करेंगे, जिससे रावण जो मांगने गया है वह उसे स्मरण नहीं रहे।

नारद और बाकी देवता भगवान श्री महाविष्णु के पास जाते है मदत के लिए.

बहुत तपस्या करने के बाद जब भगवान शिव प्रकट नहीं होते तो शक्तिशाली रावण आपने मजबूत हाथों से स्वयं कैलाश उठाता है और प्रचंडतापूर्वक हिलाता है। रावण के कैलाश हिलाने से सातों पाताललोक हिलने लगते है। शेषनाग अपना फन हिला देता है। कछुआ डर के मारे कापने लगता है। अमरपुर (इन्द्र की राजधानी) और स्वर्ग हैरान हो जाते है। पार्वती जी शिवजी से कहती है कि आज कैलाश को क्या हुआ है? इस संकट को रोकने के लिए कुछ कीजिये। शिवजी बोलते है “मेरा एक भक्त मेरी तपस्या कर रहा है, यह उसी के कारण हो रहा है।” पार्वती जी कहती है “कृपा करके सारे देवताओं की रक्षा कीजिये जो बहुत डर गए है।” शिवजी अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबाते है तो रावण के हाथ फँस जाते है। रावण शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत्र गाता है। यहाँ पर रावण का अहंकार अपनी ताकत का शिवजी विनाश करते है ।  इसलिए  लिंगाष्टकम में लिखा गया है दुसरे पैराग्राफ़  में “रावण दर्प विनाशक लिंगम , तत्प्रनमामी सदाशिवालिंगम“।

शक्तिशाली मातृभक्त रावण अपने सैकड़ो हाथो से कैलाश उठाता है

भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होते है, और पार्वती के साथ प्रकट होते है, रावण के सामने। अब चलती है श्री हरी की माया। रावण कैलाश को भूलकर जगदम्बा पार्वती पर मोहित हो जाता है। और भगवान शिव से पार्वती को मांग लेता है। हमारे भोलेनाथ अपने भक्त को इतना चाहते है की वह पार्वती रावण को दे देते है लेकिन कहते है कि आप आगे-आगे चले और पार्वती जी पीछे-पीछे आएगी। जब तक लंका नहीं पहुँचते, तब तक पीछे मुडकर देखना मत और अगर देखा तो पार्वती वही स्थापित हो जायेगी। रावण ले चलता है पार्वती जी को लेकर।

रावण पार्वती माँ को ही मांग लेता है.और हमारे भोलेंनाथ दे देते है

पार्वती अपने भाई श्रीहरी को याद करती है इस संकट का निवारण करने के लिए। श्री हरी भगवान इसके लिए नारद को भेज देते है रावण की ओर। जब रावण गोकर्ण पहुँचता है तो नारद अपनी वाक्पटुता से रावण को भ्रमित करके पूछता है कि किस बदसूरत और भयंकर स्त्री को ले जा रहा है? रावण कहता है की यह विश्वसुन्दरी जगदम्बा पार्वती है। नारद उसपर हँसता है और कहता है कि ज़रा पीछे मूड के देखो। तो रावण पीछे मुड के देखता है तो देवी ने भद्रकाली का रूप धारण किया हुआ था। और जैसे ही उसने देखा तो वह भद्रकाली की मूर्ति के रूप में गोकर्ण में स्थापित हो जाती है जैसे शिवजी ने कहा था। फिर नारद कहता है कि असली पार्वती ने पाताल में मायासुर के घर में जन्म लिया है जिसका नाम मंदोदरी है।

रावण देवी को त्याग देता है तो वोह भद्रकाली का रूप में गोकर्ण में बस जाती है.

रावण चल देता है पाताल की ओर। मायासुर से युद्ध करता है, उसे हराता है और उसकी बेटी मंदोदरी से शादी करता है।

, रावण शादी करता है मंदोदरी से.

शादी करने के बाद वह लंका में लेके आता है। रावण की माता यह सब देखकर उसे पूछती है “शादी करी वह ठीक है, लेकिन जिस काम के लिए गए थे, वह तो किया ही नहीं। कैलाश यहाँ लाना था और कहा की देवताओं ने उसे भ्रमित किया है। अब की बार लक्ष्य को हासिल करके ही आये।

रावण की माता शादी की प्रतिक्रया देते हुए .

रावण फिर से घोर तपस्या शुरू करता है। इस बार और भी कठिन और मुश्किल। शिवजी को पता था की वह क्या मांगने वाला है? इस लिए वह प्रकट नहीं होते है।

रावण घोर तपस्या करता है शिवजी की.

लेकिन इस मातृभक्त रावण की जिद के आगे जब भोलेनाथ प्रकट नहीं होते, तब वह एक-एक करके अपने सर काटने लगता है और भोलेनाथ को अर्पण करता है। भोलेनाथ से अब रहा नहीं जाता और और वे प्रकट होते है और रावण को वर मांगने को कहते है। रावण कहता है कि उसे अपनी माता के लिये कैलाश पर्वत चाहिए ताकि उसे मरने के बाद कैलाश नसीब हो। तो शिवजी ने कहा की उसके लिए कैलाश ले के जाने की कोई आवशकता नहीं। उनके आत्मा से एक शिवलिंग जिसे आत्मलिंग कहते है उसे निकालते है और कहते है कि यह उनके आत्मा से निकला है और स्वयं साक्षात शिव के समान है और इसे इस बार नीचे रखना मत लंका पहुँचने से पहले। रावण खुश होकर आत्मलिंग ले के जाता है।

रावण अपने शीश काटता है और उसकी नसों से संगीत बजा कर शिवाजी को प्रसन्न करता है.

फिर से देवता परेशान हो जाते है की अगर रावण आत्मलिंग ले के जाता है लंका में तो वह दिग्विजय हो जायेगा और उसे कोई हरा नहीं सकता। नारद मुनि इसका निवारण करने के लिए श्री गणेशजी के पास जाते है। गणेशजी मदद के लिए तैयार हो जाते है।

नारद फिर गणपतिजी के पास जाते है मदत के लिए.

रावण फिर से जब गोकर्ण पहुँचता है तब गणेशजी एक बालक के रूप में गाय चराने का बहाना करके अपनी लीला करते है। उसी वक्त नारायण श्री हरी भगवान अपने सुदर्शन चक्र से सूर्य भगवान को ढकते है। रावण को लगता है कि सूर्यास्त हो गया है और पूजा संध्या का वक्त हो गया है। वह बालक रुपी गणेश को कहता है कि वह पूजा करने समुद्र में जा रहा है, तब तक थोड़ी देर ले लिए वह यह आत्मलिंग पकड़ के रखे। गणेशजी आत्मलिंग लेते है और कहते है, की उनसे ज्यादा देर उठाया नहीं जाएगा. और वह तीन बार रावण को पुकारेंगे। अगर वह नहीं आयेंगे तो वह आत्मलिंग नीचे रख देगा। रावण फिर जाता है पूजा करने जाता समुद्र की ओर।

रावण आत्मलिंगा गणेश को देता है और पूजा करने समुद्र में जाता है.

अब जैसे ही रावण समुद्र में पूजा शुरू करता है, गणेश जी अपनी लीला शुरू करते है। तीन बार जल्दी-जल्दी रावण को बुलाते है। और तुरंत आत्मलिंग नीचे धरती पर रखने लगते है।

गणेशजी रावण को बुलाते है आत्मलिंग को निचे रकने से पहले.

रावण दूर से इशारा करता है, मत रखो, लेकिन तब तक गणेशजी ने अपना काम कर लिया था। आत्मलिंग नीचे रख दिया था। ऊपर से देवताओ के फूलों की बौछार गणेशजी पर पढ़ती है। रावण समझ जाता है कि देवताओं का काम हो गया।

रावण इशारा करता है की मत रखो.

रावण आकर गणेशजी को पकड़कर जोर से उसके सर पर चोट पहुँचाते है। इसलिए गणेशजी की मूर्ति जो गोकर्ण में है उसके सिर में एक खड्डा है और रावण के बल के कारण उनका सिर नीचे की तरफ और हाथ छोटे हो गए है।

रावण गणेशजी पर बहुत गुस्सा होते है.

रावण जोर उस आत्मलिंग को उठाने की कोशिश करता है। लेकिन नहीं उठा पाता। फिर उसे उखाड़ने की कोशिश करता है। उखाड़ते-उखाड़ते जो लिंग है उसका आकार गाय के कान जैसा हो जाता है। इस लिए जगह का नाम गो :-गाय , कर्ण :- कान, गोकर्ण कहते है। रावण उस लिंग को उठा नहीं सका और उसे महाबल का खिताब दिया। इसलिए उस आत्मलिंग को गोकर्ण महाबलेश्वर कहते है।

रावण अत्मलिंग को उखाड़ने की कोशिश करता है.

रावण ने गुस्से में उस आत्मलिंग के सारी सामग्री जो आत्मलिंग को ढके हुए थी, उसे फेक दिया, उस लिंग की डिबिया, ढक्कन, धागा और कपडा को अलग-अलग जगह पर फेक दिया। और वह सभी अलग जाकर गिर गए और 4 अलग-अलग लिंग में स्थापित हो गये।

1) गोकर्ण, महाबलेश्वर :- मुख्य लिंग

2) सज्जेश्वर :- जहां लिंग की डिबिया गिरी, (35 किमी करवर से)

3) धारेश्वर :- धागा जो लिंग से बंधा हुआ था, (45 किमी गोकर्ण से दक्षिण की ओर)

4) गुनावंतेश्वर :- जहाँ पर लिंग का ढक्कन गिरा था, (60 किमी गोकर्ण से दक्षिण की ओर)

5) मुरुडेश्वर :- पूरे लिंग को ढका हुआ कपड़ा जहा गिरा, ( (70 किमी गोकर्ण के दक्षिण की ओर)

अंत में भगवान शिव, पार्वती माँ और सारे देवता सहित इन पाँचों क्षेत्र में आते और इन्हें पञ्च क्षेत्र नाम देते है।

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