- श्री मद देवी भागवत पुराण -- कई मनुओ का वर्णन ; भगवती विन्ध्य वासिनी , तथा वेद माता गायत्री की कथा --
*************** प्रार्थना ************
भरा अमित दोषो से हूँ मैं श्रद्धा भक्ति भावना हीन।
साधन रहित कलुष-रत अविरत सन्तत चंचल चित्त मलीन ।।
पर तू है मैया ,मेरी वात्सल्यमयी ,शुचि स्नेहाधीन।
हूँ कुपुत्र , पर पाकर तेरा ,स्नेह रहूँगा कैसे दीन ?
तू तो दयामयी रखती है मुझको नित अपनी ही गोद ।
भूल इसे ,मैं मूर्ख मानता हूँ ,भव के भोगो में मोद ।।
इसी हेतु घेरे रह पाते ,पाप ताप , मुझको सविनोद ।
मैया यह आवरण हटा लें ,बढ़े सर्वदा शुभ आमोद ।।
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श्री मद देवी भागवत के दशम स्कन्ध में , स्वायम्भू मनु के चरित्र का वर्णन है । श्रष्टि के प्रारम्भ में श्री ब्रम्हा जी ने अपने मानस पुत्र के रूप में मनु को उत्पन्न किया -फिर अपने मन से ही धर्मस्वरूपिणी शतरूपा को प्रकट कर उन्हें मनु की पत्नी बनाया - मनु ने श्रष्टि उत्पन्न करने के लिए शक्ति पाने के लिए वाग्भव मन्त्र से महान भाग्यफल प्रदान करने वाली भगवती देवी की आराधना की - देवी के प्रसन्न होने पर मनु ने उनसे श्रष्टि के स्रजन में कोई विघ्न न आये यह वर मांगा --व वाग्भव मन्त्र के साधकों को -- पूर्व जन्मों की स्मृति रहना ,भाषण करने में प्रवीणता , ज्ञान -सिद्धि , कर्मयोग- सिद्धि व सर्व पारिवारिक सुख उपलब्ध हो -- यह वर मांगा -
भगवती विंध्यवासिनी के प्राकट्य के बारे में वर्णित है कि एक बार विंध्याचल पर्वत अभिमानवश अचानक ऊंचा होने लगा जिससे सूर्य का मार्ग रुक गया या कहे कि पश्चिम दिशा में अंधकार छा गया तब देवताओ की स्तुति पर भगवती आद्द्या देवी के परम साधक काशी में निवास कर रहे , कुम्भ योनि श्री अगस्त्य मुनि अपने तप रूपी विमान पर चढ़ कर आधे निमेष में ही विंध्य पर्वत के पास जा पँहुचे ,-- विंध्य ने उन्हें शास्त्रांग प्रणाम किया तब मुनि अगस्त्य ने उससे ऐसे ही तब तक लेटे रहने को कहा जब तक वे वापस न आये - विंध्य ने वचन दिया और फिर अगस्त्य जी ने पर्वत के दक्षिण में जाकर वही आश्रम बनाया और कभी वापस नही लौटे ,--
मुनि की प्रार्थना पर विंध्य पर्वत पर जो देवी पधारी थी वे ही विंध्यवासिनी नाम से प्रसिद्ध हुयी और मनु द्वारा पूजित हुई -
****** मुनि अगस्त्य भगवती के सिद्ध साधक के साथ ही महान वैज्ञानिक भी थे - समुद्र को पी जाने का करतब उन्ही का था -माने विशाल नौसेना के जनक जिनके सम्मुख समुद्र कोई बाधक नही रहा था -- इसी प्रकार उपर्युक्त विंध्य पर्वत कथा -- माने उन्होंने पर्वत के दक्षिण में आने जाने की बाधाओं को समाप्त करके सड़के आदि का निर्माण कराया होगा फिर दक्षिण भारत को राक्षसों से मुक्त करके ऋषियों के लिए निरापद बनाने के लिए वे वही रुक गए ********
फिर दशम अध्याय में , स्वायंभू , स्वरोचित , उत्तम ,तामस ,रैवत , चाकछुष आदि तमाम मनुओं का वर्णन है -
ग्यारहवे स्कन्ध में सदाचार का वर्णन है - आचार दो प्रकार के होते है -- शास्त्रीय और लौकिक । शुभ की इच्छा रखने वाले को दोनों का पालन करना चाहिए -सत्पुरुषों को ग्राम धर्म , जाति धर्म , देश धर्म और कुलधर्म सबका आदर करना चाहिए --दुराचारी व्यक्ति संसार मे निंदा का पात्र समझा जाता है --जो अर्थ और काम धर्म विरुद्ध हों उन्हें त्याग देना चाहये --
गायत्री माता की साधना ---सभी को त्रिकाल सन्ध्या और गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए -वेदों और -छन्दों की माता , अक्षर ब्रम्हस्वरूपनी , वरदायिनि भगवती गायत्री महादेवी , जो सर्ववर्णा , सन्ध्या , विद्या , सरस्वती ,अजरा अमरा और सर्व देवी है उन्हें नमस्कार करना चाहिए -विधिवत पूजन करके गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए । मन्त्र सभी जानते है
--" ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितूर्वरेण्यम , भर्गो देवस्य धीमहि ,धियो यो न: प्रचोदयात ।।
कामना सिद्धि के लिए और उपद्र्व शान्ति के लिए गायत्री के विशेष प्रयोगों का भी वर्णन है
श्री देवी भागवत का बारहवां स्कन्ध ---श्री नारद जी द्वारा भगवान नारायण से सदाचार के विषय मे पूछने पर वे बोले --" मुने अन्य कोई अनुष्ठान किया किया जाए या न किया जाए ,किन्तु अगर द्विज केवल गायत्री का अनुष्ठान कर ले , तो वह कृतकृत्य हो जाता है --तीनो संध्याओं में भगवान सूर्य को अर्ध्य देना और गायत्री का जाप करना आवश्यक है -प्रतिदिन 3000 जाप करने वाले पुरूष का देवता भी आदर करते है - निष्कपट भाव से सच्चिदानन्द स्वरूपणी भगवती गायत्री का ध्यान करके जप करना चाहये
भगवान नारायण बोले -- गायत्री के 24 ऋषि है , 24 छंद है ,24 अक्षरो के 24 देवता है --और 24 ही शक्तियां है ,तथा 24 ही वर्ण है , इनमे महान पापो का संहार करने की शक्ति है -इसके अलावा गायत्री कवच का पाठ करके धारण करने पर मनुष्य सम्पूर्ण पापो से मुक्त हो जाता है और उसकी सारी कामनाये सिद्ध हो जाती है -इसकी कृपा से 64 प्रकार की कलाये सहज ही प्राप्त हो जाती है और वह मनुष्य मुक्त हो जाता है
इसके बाद इस अध्याय में गायत्री स्तोत्र और गायत्री सहस्त्र नाम का वर्णन है
समस्त जड़ व चेतन्य प्राणियों व अखिल ब्रम्हाण्ड मे गति एवं ऊर्जा के रूप मे विद्यमान रहने वाली परा-शक्ति माँ गायत्री जो भगवान श्रीमन्नारायण की ही श्रीतेजस्वरूपा है उनके श्री चरण कमलों हम सहृदय प्रणाम करते हैं।
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