कलियुग में श्री हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का अदभुत रहस्य :-------डा.अजय दीक्षित---------"अजय" की सत्य सोंच
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होइ हैं सोइ जो राम रची राखा ।
को करि तर्क बढ़ावहि शाखा ।।
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हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे । वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं । वे कहां रहते हैं, कब–कब व कहां–कहां प्रकट होते हैं और उनके दर्शन कैसे और किस तरह किए जा सकते हैं, हम यह आपको बताएंगे एक ऐसा रहस्य जिसे जानकर आप सचमुच ही चौंक जाएंगे
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
++++++++++++++++++++++++++++++++ संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
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अंतकाल रघुवरपुर जाई, जहां जन्म हरिभक्त कहाई ।।
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और देवता चित्त ना धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई ।।
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चारों युग में हनुमानजी के ही परताप से जगत में उजियारा है । हनुमान को छोड़कर और किसी देवी–देवता में चित्त धरने की कोई आवश्यकता नहीं है । द्वंद्व में रहने वाले का हनुमानजी सहयोग नहीं करते हैं । हनुमानजी हमारे बीच इस धरती पर सशरीर मौजूद हैं । किसी भी व्यक्ति को जीवन में श्रीराम की कृपा के बिना कोई भी सुख–सुविधा प्राप्त नहीं हो सकती है । श्रीराम की कृपा प्राप्ति के लिए हमें हनुमानजी को प्रसन्न करना चाहिए ।
+++++++++++++++++++++++++++++++++++ राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
+++++++++++++++++++++++++++++++++++ ।।उनकी आज्ञा के बिना कोई भी श्रीराम तक पहुंच नहीं सकता । हनुमानजी क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी ? हनुमानजी इस कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे । वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं । हनुमानजी को धर्म की रक्षा के लिए अमरता का वरदान मिला था । इस वरदान के कारण आज भी हनुमानजी जीवित हैं और वे भगवान के भक्तों तथा धर्म की रक्षा में लगे हुए हैं । जब कल्कि रूप में भगवान विष्णु अवतार लेंगे तब हनुमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, विश्वामित्र, विभीषण और राजा बलि तथा मार्कण्डेय रिषि सार्वजनिक रूप से प्रकट हो जाएंगे ।
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क्यों आज भी जीवित हैं हनुमानजी?
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कलियुग में श्रीराम का नाम लेने वाले और हनुमानजी की भक्ति करने वाले ही सुरक्षित रह सकते हैं । हनुमानजी अपार बलशाली और वीर हैं और उनका कोई सानी नहीं है । +++++++++++++++++++++++++++++++++++धर्म की स्थापना और रक्षा का कार्य ४ लोगों के हाथों में है –
+++++++++++++++++++++++++++++++++++ दुर्गा, भैरव, हनुमान और कृष्ण । चारों जुग परताप तुम्हारा ः है प्रसिद्ध जगत उजियारा ।।
++++++++++++++++++++++++++++++++++ लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञतास्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं।
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यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले । तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशयः….
अर्थात ‘हे वीर श्रीराम ! इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहें ।’ इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं । –‘एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशयः । चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत ते भविता कीर्तिः शरीरे प्यवस्तथा । लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा ।’ अर्थात् –‘हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है । संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही । जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी ।’
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा ।
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देखिए? चारों युगों मे हनुमान जी को -------
१. त्रेतायुग में हनुमान ः त्रेतायुग में तो पवनपुत्र हनुमान ने केसरीनंदन के रूप में जन्म लिया और वे राम के भक्त बनकर उनके साथ छाया की तरह रहे । वाल्मीकि ‘रामायण’ में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का उल्लेख मिलता है ।
२. द्वापर में हनुमान ः द्वापर युग में हनुमानजी भीम की परीक्षा लेते हैं । इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है । महाभारत में प्रसंग है कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाते हैं । इस तरह एक बार हनुमानजी के माध्यम से श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र और गरूड़ की शक्ति के अभिमान का मान–मर्दन करते हैं ।
३. कलयुग में हनुमान ः यदि मनुष्य पूर्ण श्रद्घा और विश्वास से हनुमानजी का आश्रय ग्रहण कर लें तो फिर तुलसीदासजी की भांति उसे भी हनुमान और राम–दर्शन होने में देर नहीं लगेगी । कलियुग में हनुमानजी ने अपने भक्तों को उनके होने का आभास कराया है ।
+++++++++++++++++++++++++++++++++++ ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे – ‘चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर । तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर …’
कहां रहते हैं हनुमानजी ? हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है । उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे । एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था ।
‘यत्र–यत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकान्जलि ।
वाष्प वारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तक ।।’
अर्थात कलियुग में जहां–जहां भगवान श्रीराम की कथा–कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां हनुमानजी गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं । सीताजी के वचनों के अनुसार –‘अजर–अमर गुन निधि सुत होऊ ।। करहु बहुत रघुनायक छोऊ … ।’ गंधमादन पर्वत क्षेत्र और वन ः गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथों में हुआ है । महाभारत की पुरा–कथाओं में भी गंधमादन पर्वत का वर्णन प्रमुखता से आता है । हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यहां के विशालकाय पर्वतमाला और वन क्षेत्र में देवता रमण करते हैं । पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ऋषि ने भी तपस्या की थी । गंधमादन पर्वत के शिखर पर किसी भी वाहन से नहीं पहुंचा जा सकता । गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं । वे सब यहां निर्भीक विचरण करते हैं । वर्तमान में कहां है गंधमादन पर्वत ? ः– इसी नाम से एक और पर्वत रामेश्वरम के पास भी स्थित है, जहां से हनुमानजी ने समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी, लेकिन हम उस पर्वत की नहीं बात कर रहे हैं । हम बात कर रहे हैं हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की । यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था । सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था । आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है । पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था ।
कैसे पहुंचे गंधमादन ः पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था । इस क्षेत्र में दो रास्तों से जाया जा सकता है । पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए । संभवत महाभारत काल में अर्जुन ने असम के एक तीर्थ में जब हनुमानजी से भेंट की थी, तो हनुमानजी भूटान या अरुणाचल के रास्ते ही असम तीर्थ मे आए होंगे ।
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