किं तस्य बहुभिर्मन्त्रै: किं तीर्थै: किं तपोऽध्वरै:।यस्यो नम: शिवायेति मन्त्रो हृदयगोचर:।। (स्कन्दपुराण)अर्थात्–‘जिसके हृदय में ‘ॐ नम: शिवाय’ यह मन्त्र निवास करता है, उसके लिए बहुत-से मन्त्र, तीर्थ, तप और यज्ञों की क्या आवश्यकता है!’
किं तस्य बहुभिर्मन्त्रै: किं तीर्थै: किं तपोऽध्वरै:।
जवाब देंहटाएंयस्यो नम: शिवायेति मन्त्रो हृदयगोचर:।। (स्कन्दपुराण)
अर्थात्–‘जिसके हृदय में ‘ॐ नम: शिवाय’ यह मन्त्र निवास करता है, उसके लिए बहुत-से मन्त्र, तीर्थ, तप और यज्ञों की क्या आवश्यकता है!’