मंगलवार, 28 मई 2019

कलम लिखै तौ यहै लिखै 🛑🛑🛑🛑🛑🛑🛑 आचार्य डा.अजय दीक्षित

                 कलम लिखै तौ यहै लिखै
                 🛑🛑🛑🛑🛑🛑🛑
                 आचार्य डा.अजय दीक्षित
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जब कलम चलै तौ गुनियन कै अभिमान रहित सम्मान लिखै।

सिय राम लखन शत्रुहन भरत कै त्याग तपस्या आन लिखै।।

श्री कृष्ण जइस रथवान अउर पारथ सा रथी महान लिखै।

ध्वज मा बइठे हनुमान लिखै कुछ कर्णवीर कै दान लिखै।।

पोरुष पृथ्वी कै तेज लिखै शुभ शिवा केरि किरपान लिखै।

राणा लक्ष्मी झलकारी औ बलभद्र सिंह चौहान लिखै।।

जीजा दुर्गा औ कर्मा कै जौहर वाला उपमान लिखै।

मीरा तुलसी कबिरा रहीम रसलीन सूर रसखान लिखै।।

जौ कलम उठै तौ पन्ना के सुत चन्दन का बलिदान लिखै।

आजाद भगत बिस्मिल सुभाष ऊधम बाघा शैतान लिखै।।

ख्यातन मा जुटा किसान लिखै सीमा पर डटा जवान लिखै।

और "अजय" के शोणित से धरती पर नित प्रति हिन्दुस्थान लिखै।।

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मंगलवार, 14 मई 2019

बरगद (वट) वृक्ष सैकडों रोगों की अचूक दवा भी है।

बरगद (वट) वृक्ष सैकडों रोगों की अचूक दवा भी है।
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बरगद का पेड़- हिंदू संस्कृति में वट वृक्ष यानी बरगद का पेड़ बहुत महत्त्व रखता है। इस पेड़ को त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में वटवृक्ष के बारे में विस्तार से बताया गया है। वट वृक्ष मोक्षप्रद है और इसे जीवन और मृत्यु का प्रतीक माना जाता है। जो व्यक्ति दो वटवृक्षों का विधिवत रोपण करता है वह मृत्यु के बाद शिवलोक को प्राप्त होता है। इस पेड़ को कभी नहीं काटना चाहिए। मान्यता है कि निःसंतान दंपति बरगद के पेड़ की पूजा करें तो उन्हें संतान प्राप्ति हो सकती है।

आग से जल जाना – दही के साथ बड़ को पीसकर बने लेप को जले हुए अंग पर लगाने से जलन दूर होती है। जले हुए स्थान पर बरगद की कोपल या कोमल पत्तों को गाय के दही में पीसकर लगाने से जलन कम हो जाती है।

बालों के रोग – बरगद के पत्तों की 20 ग्राम राख को 100 मिलीलीटर अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करते रहने से सिर के बाल उग आते हैं। बरगद के साफ कोमल पत्तों के रस में, बराबर मात्रा में सरसों के तेल को मिलाकर आग पर पकाकर गर्म कर लें, इस तेल को बालों में लगाने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं।

25-25 ग्राम बरगद की जड़ और जटामांसी का चूर्ण, 400 मिलीलीटर तिल का तेल तथा 2 लीटर गिलोय का रस को एकसाथ मिलाकर धूप में रख दें, इसमें से पानी सूख जाने पर तेल को छान लें। इस तेल की मालिश से गंजापन दूर होकर बाल आ जाते हैं और बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।

बरगद की जटा और काले तिल को बराबर मात्रा में लेकर खूब बारीक पीसकर सिर पर लगायें। इसके आधा घंटे बाद कंघी से बालों को साफ कर ऊपर से भांगरा और नारियल की गिरी दोनों को पीसकर लगाते रहने से बाल कुछ दिन में ही घने और लंबे हो जाते हैं।

नाक से खून बहना – 3 ग्राम बरगद की जटा के बारीक पाउडर को दूध की लस्सी के साथ पिलाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है। नाक में बरगद के दूध की 2 बूंदें डालने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।

नींद का अधिक आना – बरगद के कड़े हरे शुष्क पत्तों के 10 ग्राम दरदरे चूर्ण को 1 लीटर पानी में पकायें, चौथाई बच जाने पर इसमें 1 ग्राम नमक मिलाकर सुबह-शाम पीने से हर समय आलस्य और नींद का आना कम हो जाता है।

जुकाम – बरगद के लाल रंग के कोमल पत्तों को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें। फिर आधा किलो पानी में इस पाउडर को 1 या आधा चम्मच डालकर पकायें, पकने के बाद थोड़ा सा बचने पर इसमें 3 चम्मच शक्कर मिलाकर सुबह-शाम चाय की तरह पीने से जुकाम और नजला आदि रोग दूर होते हैं और सिर की कमजोरी ठीक हो जाती है।

हृदय रोग – 10 ग्राम बरगद के कोमल हरे रंग के पत्तों को 150 मिलीलीटर पानी में खूब पीसकर छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर सुबह-शाम 15 दिन तक सेवन करने से दिल की घड़कन सामान्य हो जाती है। बरगद के दूध की 4-5 बूंदे बताशे में डालकर लगभग 40 दिन तक सेवन करने से दिल के रोग में लाभ मिलता है।

पैरों की बिवाई – बिवाई की फटी हुई दरारों पर बरगद का दूध भरकर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाती है।

कमर दर्द – कमर दर्द में बरगद़ के दूध की मालिश दिन में 3 बार कुछ दिन करने से कमर दर्द में आराम आता है। बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द से छुटकरा मिलता है।

शक्तिवर्द्धक – बरगद के पेड़ के फल को सुखाकर बारीक पाउडर लेकर मिश्री के बारीक पाउडर मिला लें। रोजाना सुबह इस पाउडर को 6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन से वीर्य का पतलापन, शीघ्रपतन आदि रोग दूर होते हैं।

शीघ्रपतन – सूर्योदय से पहले बरगद़ के पत्ते तोड़कर टपकने वाले दूध को एक बताशे में 3-4 बूंद टपकाकर खा लें। एक बार में ऐसा प्रयोग 2-3 बताशे खाकर पूरा करें। हर हफ्ते 2-2 बूंद की मात्रा बढ़ाते हुए 5-6 हफ्ते तक यह प्रयोग जारी रखें। इसके नियमित सेवन से शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, स्वप्नदोष, प्रमेह, खूनी बवासीर, रक्त प्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं और यह प्रयोग बलवीर्य वृद्धि के लिए भी बहुत लाभकारी है।

यौनशक्ति बढ़ाने हेतु  – बरगद के पके फल को छाया में सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बराबर मात्रा की मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से नियमित रूप से सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में यौन शक्ति में बहुत लाभ मिलता है।

नपुंसकता – बताशे में बरगद के दूध की 5-10 बूंदे डालकर रोजाना सुबह-शाम खाने से नपुंसकता दूर होती है। 3-3 ग्राम बरगद के पेड़ की कोंपले (मुलायम पत्तियां) और गूलर के पेड़ की छाल और 6 ग्राम मिश्री को पीसकर लुगदी सी बना लें फिर इसे तीन बार मुंह में रखकर चबा लें और ऊपर से 250 ग्राम दूध पी लें। 40 दिन तक खाने से वीर्य बढ़ता है और संभोग से खत्म हुई शक्ति लौट आती है।

प्रमेह – बरगद के दूध की पहले दिन 1 बूंद 1 बतासे डालकर खायें, दूसरे दिन 2 बतासों पर 2 बूंदे, तीसरे दिन 3 बतासों पर 3 बूंद ऐसे 21 दिनों तक बढ़ाते हुए घटाना शुरू करें। इससे प्रमेह और स्वप्न दोष दूर होकर वीर्य बढ़ने लगता है।

वीर्य रोग में – बरगद के फल छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। गाय के दूध के साथ यह 1 चम्मच चूर्ण खाने से वीर्य गाढ़ा व बलवान बनता है।

25 ग्राम बरगद की कोपलें (मुलायम पत्तियां) लेकर 250 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब एक चौथाई पानी बचे तो इसे छानकर आधा किलो दूध में डालकर पकायें। इसमें 6 ग्राम ईसबगोल की भूसी और 6 ग्राम चीनी मिलाकर सिर्फ 7 दिन तक पीने से वीर्य गाढ़ा हो जाता है। बरगद के दूध की 5-7 बूंदे बताशे में भरकर खाने से वीर्य के शुक्राणु बढ़ते है।

उपदंश (सिफलिस) – बरगद की जटा के साथ अर्जुन की छाल, हरड़, लोध्र व हल्दी को समान मात्रा में लेकर पानी में पीसकर लेप लगाने से उपदंश के घाव भर जाते हैं। बरगद का दूध उपदंश के फोड़े पर लगा देने से वह बैठ जाती है। बड़ के पत्तों की भस्म (राख) को पान में डालकर खाने से उपदंश रोग में लाभ होता है।

पेशाब की जलन – बरगद के पत्तों से बना काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 2-3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है। यह काढ़ा सिर के भारीपन, नजला, जुकाम आदि में भी फायदा करता है।

स्तनों का ढीलापन – बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर बने लेप को रोजाना सोते समय स्तनों पर मालिश करके लगाते रहने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है। बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तन्तुओं को पीसकर लेप करने से स्तनों के ढीलेपन में फायदा होता है।

गर्भपात होने पर – 4 ग्राम बरगद की छाया में सुखाई हुई छाल के चूर्ण को दूध की लस्सी के साथ खाने से गर्भपात नहीं होता है। बरगद की छाल के काढ़े में 3 से 5 ग्राम लोध्र की लुगदी और थोड़ा सा शहद मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गर्भपात में जल्द ही लाभ होता है। योनि से रक्त का स्राव यदि अधिक हो तो बरगद की छाल के काढ़ा में छोटे कपड़े को भिगोकर योनि में रखें। इन दोनों प्रयोग से श्वेत प्रदर में भी फायदा होता है।

योनि का ढीलापन – बरगद की कोपलों के रस में फोया भिगोकर योनि में रोज 1 से 15 दिन तक रखने से योनि का ढीलापन दूर होकर योनि टाईट हो जाती है।

गर्भधारण करने हेतु – पुष्य नक्षत्र और शुक्ल पक्ष में लाये हुए बरगद की कोपलों का चूर्ण 6 ग्राम की मात्रा में मासिक-स्राव काल में प्रात: पानी के साथ 4-6 दिन खाने से स्त्री अवश्य गर्भधारण करती है, या बरगद की कोंपलों को पीसकर बेर के जितनी 21 गोलियां बनाकर 3 गोली रोज घी के साथ खाने से भी गर्भधारण करने में आसानी होती है।

गर्भकाल की उल्टी – बड़ की जटा के अंकुर को घोटकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से सभी प्रकार की उल्टी बंद हो जाती है।

रक्तप्रदर – 20 ग्राम बरगद के कोमल पत्तों को 100 से 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर रक्तप्रदर वाली स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से लाभ होता है। स्त्री या पुरुष के पेशाब में खून आता हो तो वह भी बंद हो जाता है।

भगन्दर – बरगद के पत्ते, सौंठ, पुरानी ईंट के पाउडर, गिलोय तथा पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप करने से भगन्दर के रोग में फायदा होता है।

बादी बवासीर – 20 ग्राम बरगद की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, पकने पर आधा पानी रहने पर छानकर उसमें 10-10 ग्राम गाय का घी और चीनी मिलाकर गर्म ही खाने से कुछ ही दिनों में बादी बवासीर में लाभ होता है।

खूनी बवासीर – बरगद के 25 ग्राम कोमल पत्तों को 200 मिलीलीटर पानी में घोटकर खूनी बवासीर के रोगी को पिलाने से 2-3 दिन में ही खून का बहना बंद होता है। बवासीर के मस्सों पर बरगद के पीले पत्तों की राख को बराबर मात्रा में सरसों के तेल में मिलाकर लेप करते रहने से कुछ ही समय में बवासीर ठीक हो जाती है।

बरगद की सूखी लकड़ी को जलाकर इसके कोयलों को बारीक पीसकर सुबह-शाम 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ रोगी को देते रहने से खूनी बवासीर में फायदा होता है। कोयलों के पाउडर को 21 बार धोये हुए मक्खन में मिलाकर मरहम बनाकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से बिना किसी दर्द के दूर हो जाते हैं।

खूनी दस्त – दस्त के साथ या पहले खून निकलता है। उसे खूनी दस्त कहते हैं। इसे रोकने के लिए 20 ग्राम बरगद की कोपलें लेकर पीस लें और रात को पानी में भिगोंकर सुबह छान लें फिर इसमें 100 ग्राम घी मिलाकर पकायें, पकने पर घी बचने पर 20-25 ग्राम तक घी में शहद व शक्कर मिलाकर खाने से खूनी दस्त में लाभ होता है।

दस्त – बरगद के दूध को नाभि के छेद में भरने और उसके आसपास लगाने से अतिसार (दस्त) में लाभ होता है। 6 ग्राम बरगद की कोंपलों को 100 मिलीलीटर पानी में घोटकर और छानकर उसमें थोड़ी मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाने से और ऊपर से मट्ठा पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं।

बरगद की छाया मे सुखाई गई 3 ग्राम छाल को लेकर पाउड़र बना लें और दिन मे 3 बार चावलों के पानी के साथ या ताजे पानी के साथ लेने से दस्तों में फायदा मिलता है। बरगद की 8-10 कोंपलों को दही के साथ खाने से दस्त बंद हो जाते हैं।

आंव – लगभग 5 ग्राम की मात्रा में बड़ के दूध को सुबह-सुबह पीने से आंव का दस्त समाप्त हो जाता है।

मधुमेह – 20 ग्राम बरगद की छाल और इसकी जटा को बारीक पीसकर बनाये गये चूर्ण को आधा किलो पानी में पकायें, पकने पर अष्टमांश से भी कम बचे रहने पर इसे उतारकर ठंडा होने पर छानकर खाने से मधुमेह के रोग में लाभ होता है। लगभग 24 ग्राम बरगद के पेड़ की छाल लेकर जौकूट करें और उसे आधा लीटर पानी के साथ काढ़ा बना लें। जब चौथाई पानी शेष रह जाए तब उसे आग से उतारकर छाने और ठंडा होने पर पीयें। रोजाना 4-5 दिन तक सेवन से मधुमेह रोग कम हो जाता है। इसका प्रयोग सुबह-शाम करें।

उल्टी – लगभग 3 ग्राम से 6 ग्राम बरगद की जटा का सेवन करने से उल्टी आने का रोग दूर हो जाता है।

मुंह के छाले – 30 ग्राम वट की छाल को 1 लीटर पानी में उबालकर गरारे करने से मुंह के छाले खत्म हो जाते हैं।

घाव – घाव में कीड़े हो गये हो, बदबू आती हो तो बरगद की छाल के काढ़े से घाव को रोज धोने से इसके दूध की कुछ बूंदे दिन में 3-4 बार डालने से कीड़े खत्म होकर घाव भर जाते हैं। साधारण घाव पर बरगद के दूध को लगाने से घाव जल्दी अच्छे हो जाते हैं। अगर घाव ऐसा हो जिसमें कि टांके लगाने की जरूरत पड़ जाती है। तो ऐसे में घाव के मुंह को पिचकाकर बरगद के पत्ते गर्म करके घाव पर रखकर ऊपर से कसकर पट्टी बांधे, इससे 3 दिन में घाव भर जायेगा, ध्यान रहे इस पट्टी को 3 दिन तक न खोलें। फोड़े-फुन्सियों पर इसके पत्तों को गर्मकर बांधने से वे शीघ्र ही पककर फूट जाते हैं।।
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आकाश में तारक लिंग

जय श्री महाकाल
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आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥
अर्थात आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।

भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक, महाकालेश्वर मात्र को तांत्रिक परम्परा में दक्षिण मूर्ति पूजा का महत्व प्राप्त है क्योंकि महाकालेश्वर एकमात्र दक्षिणमुखी मन्दिर है। महाभारत, स्कन्द पुराण, वराहपुराण, नृसिंहपुराण, शिवपुराण, भागवत्, शिवलीलामृत आदि ग्रन्थों में तथा कथासरित्सागर, राजतरंगिणी, कादम्बरी, मेघदूत, रघुवंश आदि काव्यों में इस देवालय का अत्यन्त सुन्दर वर्णन दिया गया है। ‘अलबरूनी’ व ‘फरिश्ता’ ने भी अपने ग्रथों में इस मंदिर का उल्लेख किया है।

परमार नरेशों के अभिलेखो का प्रारम्भ ही शिव स्तुति से होता है। परमार शासकों का व्यक्तिगत धर्म शैव धर्म होने के कारण जनता में शैव धर्म का प्रचार प्रसार अधिक हुआ। परमार नरेश वाक्पति राज द्वितीय की उज्जयिनी ताम्र पट्टिका से ज्ञात होता है कि उन्होंने भवानीपति की आराधना की व उज्जयिनी में शिवकुण्ड का निर्माण करवाया। परमार नरेश उदयादित्य ने महाकाल मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर मन्दिर में नाग बंध अभिलेख उत्कीर्ण करवाया। परमार नरेश नरवर्मन के महाकाल अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने उज्जयिनी में शिव मन्दिर का निर्माण करवाया था।

मालववंशीय विक्रमादित्य के विषय में आख्यानों से प्रतीत होता है इस राजा ने महाकालेश्वर का स्वर्ण शिखर-सुशोभित बड़ा मन्दिर बनवाया। उसके लिए अनेक अलंकार तथा चँवर, वितानादि राजचिन्ह समर्पित किए। इसके बाद ई. सं. ग्वारहवीं शताब्दी में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार परमार वंश के भोजराज ने करवाया था। ई. सं.1265 में दिल्ली के सुलतान शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने इस मन्दिर को भारी नुकसान कर दिया।

इस घटना के 500 वर्षां पश्चात् जब उज्जैन पर राणोजीराव शिन्दे का अधिकार हुआ उस समय उनके दीवान रामचन्द्रबाबा ने उसी स्थान पर महाकालेश्वर का मन्दिर फिर से बनवाया जो आज भी स्थित है। मन्दिर के अन्दर श्री महाकालेश्वर के पश्चिम, उत्तर और पूर्व की ओर क्रमशः गणेश, गिरिजा और षडानन की मूर्तियाँ स्थापित हैं। दक्षिण की ओर गर्भगृह के बाहर नन्दीकेश्वर विराजमान हैं। लिंग विशाल है और सुन्दर नागवेष्टित रजत जलाधारी में विराजमान हैं। महाकालेश्वर के गर्भगृह के ऊपर के मंजिल पर ओंकारेश्वर विराजमान हैं। श्री महाकालेश्वर के मन्दिर के दक्षिण दिशा में वृद्धकालेश्वर महाकाल और सप्तऋषि का मन्दिर है। महाकालेश्वर के ऊपर जो ओंकारेश्वर मन्दिर है उसके समीप आसपास षटांगण मे स्वप्नेश्वर महादेव, बद्रीनारायण जी, नृसिंह जी, साक्षी गोपाल तथा अनादि कालेश्वर के भी मन्दिर हैं।

श्री महाकालेश्वर मंदिर के नीचे सभा मण्डप से लगा हुआ एक कुण्ड है जो ’कोटितीर्थ’ के नाम से प्रसिद्ध है। सभा मण्डप मे एक राम मंदिर है। जिसके पीछे ’अवंतिका देवी’ की प्रतिमा है। श्री महाकालेश्वर मंदिर में प्रातः 4 बजे होने वाली भस्मारती विशेष दर्शनीय है। भस्मारती में सम्पूर्ण जीवन के जन्म से लेकर मोक्ष तक के दर्शन की कल्पना की जा सकती है। यह भस्म निरन्तर प्रज्वलित धूनी से तैयार होती है। मंदिर खुलने का समय प्रातः 4 बजे से रात्रि 11 बजे तक है। त्रिलोकी तीन अवतारों में मृत्युलोक में श्री महाकालेश्वर का अद्वितीय अवतार हैं।।

नागपंचमी पर महाकाल मन्दिर के ऊपर विराजित नागचन्द्रेश्वर के दर्शन के लिए हज़ारों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। भगवान महाकालेश्वर की आरती दिन में पाँच बार होती है। श्रावणमास के चारों सोमवारों के दिन नगर में महाकालेश्वर की भव्य रजत प्रतिमा की सवारी निकाली जाती है। सवारी मन्दिर से निकलकर पहले क्षिप्रा तट पर जाती है। वहाँ पूजन के पश्चात नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए यथा स्थान पहुँच जाती है। पाँचवीं शाही एवं अंतिम सवारी मार्गों में निकाली जाती है। श्रावण मास में काँवड़ यात्रियों की सुविधा के कारण विशेष व्यवस्था होती है।

भूतभावन भगवान महाकाल की वर्षभर मे सवारियाँ निकाली जाती हैं- सभी सवारियों में प्रशासन की ओर से पुलिस व्यवस्था, प्राचीन राज्य के प्रतीक चोपदार, पुरोहित एवं श्रद्धालुजन सम्मिलित रहते हैं- ये सवारियाँ निश्चित् समय शाम चार बजे निकलती हैं। ये सवारियाँ हैं-

सावन-भादों की 6 सवारियाँ कभी 7  जिसमें एक शाही सवारी (अंतिम सवारी जो भाद्रपद, कृष्ण के अन्तिम  सोमवार को निकलती है।)कार्तिक माह की सवारी (कार्तिक शुक्ल से मार्ग कृष्ण के प्रत्येक सोमवार को)दशहरा के दिन दशहरा मैदान तक शमी पूजन के लिएबैकुण्ठ चौदस (कार्तिक शुक्लचतुर्दशी) को रात्रि 11 बजे गोपाल मन्दिर तक (यह एक मात्र सवारी रात्रि को निकलती है)उमा साँझी सवारी

महाकालेश्वर के विविध पूजन ( सशुल्क) निम्नानुसार करवाया जा सकता है-

सामान्य पूजाअभिषेक महिम्न स्रोतरुद्राभिषेक वैदिक पूजारुद्राभिषेक ग्यारह दर्शना वैदिक पूजालघु रूद्रमहारूद्र रूद्राभिषेक 11 एक दर्शना वैदिक पूजा

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से स्वप्न में भी किसी प्रकार का दुःख अथवा संकट नहीं आता है। जो कोई भी मनुष्य सच्चे मन से महाकालेश्वर लिंग की उपासना करता है, उसकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं और वह परलोक में मोक्षपद को प्राप्त करता है-

महाकालेश्वरो नाम शिवः ख्यातश्च भूतले।
तं दुष्ट्वा न भवेत् स्वप्ने किंचिददुःखमपि द्विजाः।।
यं यं काममपेदयैव तल्लिगं भजते तु यः ।
तं तं काममवाप्नेति लभेन्मोक्षं परत्र च।।
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बुधवार, 8 मई 2019

परशुराम जयन्‍ती

जागो ब्राह्मण जागो जागो भगवान परशुराम जयन्‍ती के अवसर पर गीत


गीत 
धरती रथ जिसका चार वेद, जिसके घोड़ों के स्‍यंदन है
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है
सिर जटा जूट, साहस अटूट, रू रू नामक मृग की मृगछाला
इक्‍कीस बार जिसने धरणी को, वीर विहीन बना डाला
कुरूक्षेत्र धरा पर बाँध बाँध , अनगिनती बैरी काटे थे
जो पाँच सरोवर रीते थे, उसको अरि के शोणित से पाटे थे
है हय अर्जुन के सहस पुत्र, अपने ही हाथों मारे थे
उस शोर्यवान के आगे सब, अत्‍याचारी मिल हारे थे
उस वीर विप्र ने समय नब्‍ज को, सही समय पर जाना था
जब नाक तलक पानी आया, तब अपना फरसा ताना था
अवतारी के चरणों अर्पित, शब्‍दों को केसर चन्‍दन हैं
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है

जब परशु उठा था परशुराम को, सन्‍नाटा सा छाया था
भय बिन प्रीत नहीं होती, सिद्धान्त समझ में आया था
हम ऋषियों की संतानें हैं, ऊँचे उठने की ठाने हम
अपने पुरखों के कर्मयोग, प्रज्ञा को भी पहचाने हम
अपना एकत्‍व परशु जाने, अपना गत गौरव याद करें
बेदर्द जहां पर हो हाकिम, तब क्‍यों फिजूल फरियाद करें
हे विप्र उठो अँगड़ाई लो, चाणक्‍य सरिस बन कर आओ
ज्ञान ध्‍यान विज्ञान पढो, दुनिया पर फिर से छा जाओ 
हमको अंगुलि से बता रहा, विस्‍तृत पथ वह भृगु नंदन है
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है 

जिसके हाथों में बल होता, जग को तो वही चलाते हैं
दुनियां में वे ही पूजित हैं, उनके ही नगमें गाते हैं
जागो ब्राह्मण जागो जागो, अपने वर्णोतम को जानो
पर मरीचिका में मत भटको, तुम वर्तमान का पहचानो
जजमानी के दिन बीत गए, जजमानों ने कसली अंटी
अपनी संस्‍कृति पर निष्‍ठा पर, खतरे की आज बजी घंटी
ब्राह्मण के तो अस्‍तित्‍व तलक पर, घोर घटा मंडराई है
अब तिलक जनेऊ चोटी औ, मर्यादा पर बन आई है
ब्राह्मण के धर आज विकट, रोजी रोटी का क्रंदन है
जो क्रांतिदूत, जमदग्‍नि पूत, उस ब्राह्मण का अभिनंदन है



जानें विष्णु के किस अवतार में थी कितनी कलाएं



जानें विष्णु के किस अवतार में थी कितनी कलाएं


भगवान विष्णु के दशावतार बताये जाते हैं जिनमें 9 अवतार रूप धारण कर चुके हैं जबकि दसवें अवतार का जन्म लेना अभी बाकि है। मान्यता है कि विष्णु का दसवां अवतार कल्कि होगें जो कलयुग के अंत में अवतरित होंगे और श्वेत अश्व पर सवार हो दुष्टों का संहार करेंगें। अभी तक विष्णु ने जितने भी अवतार रूप लिये हैं उनमें श्री कृष्ण सबसे श्रेष्ठ अवतार माने जाते हैं क्योंकि उनमें किसी भी व्यक्ति में संभव होने वाली समस्त षोडश कलाएं यानि सोलह कलाएं मौजूद थी। आइये जानते हैं भगवान विष्णु के किस अवतार में कितनी कलाएं थी।

क्या सामान्य मनुष्य में भी होती हैं कलाएं

ये कलाएं आर्ट वाली कलाएं नहीं हैं बल्कि वे गुण या अंश हैं जिनसे जीवों का निर्धारण होता है। मनुष्यों में सामान्यत: पांच कलाएं मानी जाती हैं लेकिन श्रेष्ठ मनुष्यों में इन कलाओं की संख्या छह से आठ तक होती है। वहीं नौ से पंद्रह कलाओं वाले को अंशावतार माना जाता है तो षोडस यानि की सोलह कलाओं से पूर्णावतार युक्त होते हैं।

भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण 16 कलाओं से युक्त माने जाते हैं। आइये जानते हैं विष्णु के अन्य अवतार कितनी कलाओं से युक्त माने जाते हैं।

मतस्य, कूर्मा और वराह अवतार – सृष्टि का अंत जब जल प्रलय से हो रहा था तब नई सृष्टि की रचना के लिये मनु की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने यह अवतार धारण किया। मान्यता है कि भगवान ने मतस्यावतार लेकर मनु को जल प्रलय के बीच सुरक्षित स्थान पर ला छोड़ा ताकि सृष्टि का रचनाक्रम आगे बढ़ सके। विष्णु जी  मतस्यावतार में एक कला से युक्त थे इसी प्रकार कूर्मा और वराह अवतार में भी वे एक ही कला से संपन्न माने जाते हैं।

नृसिंह और वामन अवतार – हरिणण्यकशिपु का वध करने के लिये नृसिंह अवतार धारण करने वाले भगवान विष्णु और वामन रूप धारण कर हरिण्यकशिपु के ही परपौत्र और भक्त प्रह्लाद के पौत्र असुर राज बलि से वरदान लेकर दो पगों में आकाश से लेकर भूलोक नाप लिया जब तीसरा कदम रखने के लिये कुछ नहीं बचा तो अपने वचन के पक्के बली ने अपना सिर उनके कदम के लिये आगे कर दिया। उनकी वचन के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए वामनावतार ने उनके शीश पर अपना कदम रख उन्हें पाताल लोक में भेज दिया और वहां का स्वामी बना दिया वहीं मान्यता यह भी है कि विष्णु ने उनकी धर्मपरायणता से प्रसन्न होकर उन्हें अपने अध्यात्मलोक में जगह दी जहां उनका मिलन उनके दादा और विष्णु भक्त प्रह्लाद से हुआ। विष्णु जी के यो दोनों ही अवतार दो कलाओं से संपन्न माने जाते हैं।

परशुराम अवतार – भगवान परशुराम के रूप में अवतरित होकर अपने फरसे दुष्टों का संहार करने वाले परशुराम अवतार तीन कलाओं युक्त माने जाते हैं। हालांकि शास्त्रों में मान्यता यह भी है कि मनुष्य के रूप में कम से कम पांच कलाएं होती हैं ऐसे में वामनावतार व परशुराम अवतार का मात्र दो व तीन कलाओं युक्त होना शोध का विषय हो सकता है, लेकिन पौराणिक ग्रंथों में यही जानकारी मिलती है।

श्री राम अवतार – भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाने वाले प्रभु श्री राम में 12 कलाएं मानी जाती हैं। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि प्रभु श्री राम सूर्यवंशी थे और सूर्य की 12 कलाएं मानी जाती हैं। इस कारण मान्यता है कि प्रभु श्री राम में सूर्यदेव की समस्त कलाएं मौजूद थीं।

श्री कृष्णावतार – श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। श्री कृष्ण ही एकमात्र ऐसे अवतार हैं जिन्हें 16 कलाओं से युक्त पूर्णावतार माना जाता है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि श्री कृष्ण चंद्र वंशी थे जिस कारण वे चंद्रमा की समस्त सोलह कलाओं में संपन्न थे।

महात्मा बुद्ध व कल्कि - महात्मा बुद्ध व कल्कि को श्री हरि का नौवां व दसवां अवतार माना जाता है हालांकि महात्मा बुद्ध के बारे में विभिन्न विद्वानों में अवतार रूप को लेकर मतभेद है और कल्कि अवतार ने अभी जन्म नहीं लिया है मान्यता है कि वे कलियुग के अंत में श्वेत अश्व पर सवार होकर दुष्टों का संहार करने के लिये अवतरित होंगे।