शनिवार, 29 दिसंबर 2018

किस दिशा में सिर रखकर सोना चाहिए

किस दिशा में सिर रखकर सोना चाहिए

आपका दिल शरीर के निचले आधे हिस्से में नहीं है, वह तीन-चौथाई ऊपर की ओर मौजूद है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ रक्त को ऊपर की ओर पहुंचाना नीचे की ओर पहुंचाने से ज्यादा मुश्किल है। जो रक्त शिराएं ऊपर की ओर जाती हैं, वे नीचे की ओर जाने वाली धमनियों के मुकाबले बहुत परिष्कृत हैं। वे ऊपर मस्तिष्क में जाते समय लगभग बालों की तरह होती हैं। इतनी पतली कि वे एक फालतू बूंद भी नहीं ले जा सकतीं। 


अगर एक भी अतिरिक्त बूंद चली गई, तो कुछ फट जाएगा और आपको हैमरेज (रक्तस्राव) हो सकता है। ज्यादातर लोगों के मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है। यह बड़े पैमाने पर आपको प्रभावित नहीं करता मगर इसके छोटे-मोटे नुकसान होते हैं। आप सुस्त हो सकते हैं, जो वाकई में लोग हो रहे हैं। 35 की उम्र के बाद आपकी बुद्धिमत्ता का स्तर कई रूपों में गिर सकता है जब तक कि आप उसे बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत नहीं करते। 


आप अपनी स्मृति के कारण काम चला रहे हैं, अपनी बुद्धि के कारण नहीं। पारंपरिक रूप से आपसे यह भी कहा जाता है कि सुबह उठने से पहले आपको अपनी हथेलियां रगड़नी चाहिए और अपनी हथेलियों को अपनी आंखों पर रखना चाहिए।


दक्षिण दिशा की ओर सिर रखने के फायदे 

दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना बेहतर माना गया है. ऐसी स्थ‍िति में स्वाभाविक तौर पर पैर उत्तर दिशा में रहेगा. शास्त्रों के साथ-साथ प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, सेहत के लिहाज से इस तरह सोने का निर्देश दिया गया है। यह मान्यता भी वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है।


उत्तर की ओर क्यों न रखें सिर

दरअसल, पृथ्वी में चुम्बकीय शक्ति होती है. इसमें दक्षिण से उत्तर की ओर लगातार चुंबकीय धारा प्रवाहित होती रहती है. जब हम दक्षिण की ओर सिर करके सोते हैं, तो यह ऊर्जा हमारे सिर ओर से प्रवेश करती है और पैरों की ओर से बाहर निकल जाती है. ऐसे में सुबह जगने पर लोगों को ताजगी और स्फूर्ति महसूस होती है।


अगर इसके विपरीत करें सिर  

इसके विपरीत, दक्षिण की ओर पैर करके सोने पर चुम्बकीय धारा पैरों से प्रवेश करेगी है और सिर तक पहुंचेगी. इस चुंबकीय ऊर्जा से मानसिक तनाव बढ़ता है और सवेरे जगने पर मन भारी-भारी रहता है।


पूरब की ओर भी रख सकते हैं सिर 

दूसरी स्थ‍िति यह हो सकती है कि सिर पूरब और पैर पश्चिम दिशा की ओर रखा जाए. कुछ मान्यताओं के अनुसार इस स्थि‍ति को बेहतर बताया गया है. दरअसल, सूरज पूरब की ओर से निकलता है. सनातन धर्म में सूर्य को जीवनदाता और देवता माना गया है. ऐसे में सूर्य के निकलने की दिशा में पैर करना उचित नहीं माना जा सकता. इस वजह से पूरब की ओर सिर रखा जा सकता है।


कुछ जरूरी निर्देश

शास्त्रों में संध्या के वक्त, खासकर गोधूलि बेला में सोने की मनाही है।


सोने से करीब 2 घंटे पहले ही भोजन कर लेना चाहिए। सोने से ठीक पहले कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए। 


अगर बहुत जरूरी काम न हो तो रात में देर तक नहीं जागना चाहिए।


जहां तक संभव हो, सोने से पहले चित्त शांत रखने की कोशि‍श करनी चाहिए।


सोने से पहले प्रभु का स्मरण करना चाहिए और इस अनमोल जीवन के लिए उनके प्रति आभार जताना चाहिए।


मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

😎😎 कमल नाथ कुछ शर्म करो 😎😎






















                                                                             
                                 
यूपी की धरती पर जन्में कमल नाथ कुछ शर्म करो।
नाम डुबाओं मत माता का अच्छा कोई कर्म करो।
यू पी एम पी और बिहार जो भाई भाई कहलाते।
सत्ता की लोलुपता में तुम आपस में हो लड़वाते।
पूरा भारत वर्ष एक है क्यों नफ़रत फैलाते हो।
कांग्रेस का असली चेहरा फिर क्यों आज दिखाते हो।
रोहिंग्या पर चुप रहते हो बंग्लादेशी अपनाते।
छीन रहा जो हक भारत का उसको अपना बतलाते।
क्यों लाशों की राजनीति कर विष भारत में घोल रहे।
बलिदानों  परिपाटी को तुम आज लहू से तोल रहे।
अपनी धरती बांट चुके हो पहले सत्ता पाने को।
मां का आंचल काट चुके हो पहले सत्ता पाने को।
सबको एक दिन जाना होगा मत नफ़रत की बात करो।
भारत माता की छाती पर नया नहीं आघात करो।
जयचंदो के कारण जननी अब तक अश्रु बहाती है।
जाने कितने दंश है सहती फिर भी बोल न पाती है।
लालों की जो हत्या करता उससे हाथ मिलाते हो।
उस नापाक धरातल की तुम जय जय कार मनाते हो।
सिद्धू जैसा नेता तेरा तीतर पर बिक जाता है।
जो प्रतिदिन आघात कर रहा उसको गले लगाता है।
न्यायालय में जाकर कहते रघुवर का अस्तित्व नहीं।
राम करोड़ों की धड़कन हैं कहते इसमें तत्व नहीं।
सिक्खों की हत्या तुमने की न्यायालय ने न्याय दिया।
मां बहनों की इज्जत लूटी बहुत बडा अन्याय किया।
मत बौराओ सत्ता पाकर सत्ता आनी जानी है।
नहीं माफ़ करती है जनता इसकी अमिट कहानी है।
अब तक पंडित लौट न पाये उस कश्मीर की घाटी पर।
शरणार्थी बन उसपर रहते जन्में थे जिस माटी पर।
उन पर अत्याचार हुआ था तब सरकार तुम्हारी थी।
भीषण नर संहार हुआ था तब सरकार तुम्हारी थी।
निर्दोषों को जेल में ठुसां आपत काल लगाया था।
नसबंदी जबरन करवाकर इक आतंक मचाया था।
लेकिन मेरे देश की जनता कितनी भोली भाली है।
आजादी के बाद भी अबतक उसकी थाली खाली है।
अब तो  "अजय"नींद से जागो वरना तुम पछताओगे।
नफ़रत की इस आग में प्यारे मय समूल जल जाओगे।

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

वेदव्यास के जन्म की कथा

वेदव्यास के जन्म की कथा

प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपने शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया।

पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुये वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई।

गर्भ पूर्ण होने पर एक निषाद ने उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली को चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया जिसका नाम मत्स्यराज हुआ।

बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर वह नाव खेने का कार्य करने लगी एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा।

पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, “देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।” सत्यवती ने कहा, “मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।” तब पाराशर मुनि बोले, “बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।” इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।”

समय आने पर सत्यवती गर्भ से वेद वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, “माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।” इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये।

कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य जन्म कथा | बिना माँ के जन्मे थे कृपाचार्य और द्रोणाचार्य

कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य जन्म कथा | बिना माँ के जन्मे थे कृपाचार्य और द्रोणाचार्य

 गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था। उनका जन्म बाणों के साथ हुआ था। उन्हें वेदाभ्यास में जरा भी रुचि नहीं थी और धनुर्विद्या से उन्हें अत्यधिक लगाव था। वे धनुर्विद्या में इतने निपुण हो गये कि देवराज इन्द्र उनसे भयभीत रहने लगे। इन्द्र ने उन्हें साधना से डिगाने के लिये नामपदी नामक एक देवकन्या को उनके पास भेज दिया। उस देवकन्या के सौन्दर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हुये कि उनका वीर्य स्खलित हो कर एक सरकंडे पर आ गिरा। वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया जिसमें से एक भाग से कृप नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से कृपी नामक कन्या उत्पन्न हुई। कृप भी धनुर्विद्या में अपने पिता के समान ही पारंगत हुये। भीष्म जी ने इन्हीं कृप को पाण्डवों और कौरवों की शिक्षा-दीक्षा के लिये नियुक्त किया और वे कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुये।

कृपाचार्य के द्वारा पाण्डवों तथा कौरवों की प्रारंभिक शिक्षा समाप्त होने के पश्चात् अस्त्र-शस्त्रों की विशेष शिक्षा के लिये भीष्म जी ने द्रोण नामक आचार्य को नियुक्त किया। इन द्रोणाचार्य जी की भी एक विशेष कथा है। एक बार भरद्वाज मुनि यज्ञ कर रहे थे। एक दिन वे गंगा नदी में स्नान कर रहे थे। वहाँ पर उन्होंने घृतार्ची नामक एक अप्सरा को गंगा स्नान कर निकलते हुये देख लिया। उस अप्सरा को देख कर उनके मन में काम वासना जागृत हुई और उनका वीर्य स्खलित हो गया जिसे उन्होंने एक यज्ञ पात्र में रख दिया।

कालान्तर में उसी यज्ञ पात्र से द्रोण की उत्पत्ति हुई। द्रोण अपने पिता के आश्रम में ही रहते हुये चारों वेदों तथा अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञान में पारंगत हो गये। द्रोण के साथ प्रषत् नामक राजा के पुत्र द्रुपद भी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तथा दोनों में प्रगाढ़ मैत्री हो गई।

उन्हीं दिनों परशुराम अपनी समस्त सम्पत्ति को ब्राह्मणों में दान कर के महेन्द्राचल पर्वत पर तप कर रहे थे। एक बार द्रोण उनके पास पहुँचे और उनसे दान देने का अनुरोध किया। इस पर परशुराम बोले, “वत्स! तुम विलम्ब से आये हो, मैंने तो अपना सब कुछ पहले से ही ब्राह्मणों को दान में दे डाला है। अब मेरे पास केवल अस्त्र-शस्त्र ही शेष बचे हैं। तुम चाहो तो उन्हें दान में ले सकते हो।” द्रोण यही तो चाहते थे अतः उन्होंने कहा, “हे गुरुदेव! आपके अस्त्र-शस्त्र प्राप्त कर के मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होगी, किन्तु आप को मुझे इन अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा-दीक्षा देनी होगी तथा विधि-विधान भी बताना होगा।” इस प्रकार परशुराम के शिष्य बन कर द्रोण अस्त्र-शस्त्रादि सहित समस्त विद्याओं के अभूतपूर्व ज्ञाता हो गये।

शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात द्रोण का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ हो गया। कृपी से उनका एक पुत्र हुआ। उनके उस पुत्र के मुख से जन्म के समय अश्व की ध्वनि निकली इसलिये उसका नाम अश्वत्थामा रखा गया। किसी प्रकार का राजाश्रय प्राप्त न होने के कारण द्रोण अपनी पत्नी कृपी तथा पुत्र अश्वत्थामा के साथ निर्धनता के साथ रह रहे थे। एक दिन उनका पुत्र अश्वत्थामा दूध पीने के लिये मचल उठा किन्तु अपनी निर्धनता के कारण द्रोण पुत्र के लिये गाय के दूध की व्यवस्था न कर सके। अकस्मात् उन्हें अपने बाल्यकाल के मित्र राजा द्रुपद का स्मरण हो आया जो कि पाञ्चाल देश के नरेश बन चुके थे। द्रोण ने द्रुपद के पास जाकर कहा, “मित्र! मैं तुम्हारा सहपाठी रह चुका हूँ। मुझे दूध के लिये एक गाय की आवश्यकता है और तुमसे सहायता प्राप्त करने की अभिलाषा ले कर मैं तुम्हारे पास आया हूँ।” इस पर द्रुपद अपनी पुरानी मित्रता को भूलकर तथा स्वयं के नरेश होने के अहंकार के वश में आकर द्रोण पर बिगड़ उठे और कहा, “तुम्हें मुझको अपना मित्र बताते हुये लज्जा नहीं आती? मित्रता केवल समान वर्ग के लोगों में होती है, तुम जैसे निर्धन और मुझ जैसे राजा में नहीं।”

अपमानित होकर द्रोण वहाँ से लौट आये और कृपाचार्य के घर गुप्त रूप से रहने लगे। एक दिन युधिष्ठिर आदि राजकुमार जब गेंद खेल रहे थे तो उनकी गेंद एक कुएँ में जा गिरी। उधर से गुजरते हुये द्रोण से राजकुमारों ने गेंद को कुएँ से निकालने लिये सहायता माँगी। द्रोण ने कहा, “यदि तुम लोग मेरे तथा मेरे परिवार के लिये भोजन का प्रबन्ध करो तो मैं तुम्हारा गेंद निकाल दूँगा।” युधिष्ठिर बोले, “देव! यदि हमारे पितामह की अनुमति होगी तो आप सदा के लिये भोजन पा सकेंगे।” द्रोणाचार्य ने तत्काल एक मुट्ठी सींक लेकर उसे मन्त्र से अभिमन्त्रित किया और एक सींक से गेंद को छेदा। फिर दूसरे सींक से गेंद में फँसे सींक को छेदा। इस प्रकार सींक से सींक को छेदते हुये गेंद को कुएँ से निकाल दिया।

इस अद्भुत प्रयोग के विषय में तथा द्रोण के समस्त विषयों मे प्रकाण्ड पण्डित होने के विषय में ज्ञात होने पर भीष्म पितामह ने उन्हें राजकुमारों के उच्च शिक्षा के नियुक्त कर राजाश्रय में ले लिया और वे द्रोणाचार्य के नाम से विख्यात हुये।

धृतराष्ट्र,पाण्डु तथा विदुर जन्म कथा

धृतराष्ट्र,पाण्डु तथा विदुर जन्म कथा

सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। शान्तनु का स्वर्गवास चित्रांगद और विचित्रवीर्य के बाल्यकाल में ही हो गया था इसलिये उनका पालन पोषण भीष्म ने किया। भीष्म ने चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया लेकिन कुछ ही काल में गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मारा गया। इस पर भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया। अब भीष्म को विचित्रवीर्य के विवाह की चिन्ता हुई।

उन्हीं दिनों काशीराज की तीन कन्याओं, अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला था। उनके स्वयंवर में जाकर अकेले ही भीष्म ने वहाँ आये समस्त राजाओं को परास्त कर दिया और तीनों कन्याओं का हरण कर के हस्तिनापुर ले आये। बड़ी कन्या अम्बा ने भीष्म को बताया कि वह अपना तन-मन राजा शाल्व को अर्पित कर चुकी है। उसकी बात सुन कर भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया और अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ करवा दिया।

राजा शाल्व ने अम्बा को ग्रहण नहीं किया अतः वह हस्तिनापुर लौट कर आ गई और भीष्म से बोली, “हे आर्य! आप मुझे हर कर लाये हैं अतएव आप मुझसे विवाह करें।” किन्तु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। अम्बा रुष्ट हो कर परशुराम के पास गई और उनसे अपनी व्यथा सुना कर सहायता माँगी। परशुराम ने अम्बा से कहा, “हे देवि! आप चिन्ता न करें, मैं आपका विवाह भीष्म के साथ करवाउँगा।” परशुराम ने भीष्म को बुलावा भेजा किन्तु भीष्म उनके पास नहीं गये। इस पर क्रोधित होकर परशुराम भीष्म के पास पहुँचे और दोनों वीरों में भयानक युद्ध छिड़ गया। दोनों ही अभूतपूर्व योद्धा थे इसलिये हार-जीत का फैसला नहीं हो सका। आखिर देवताओं ने हस्तक्षेप कर के इस युद्ध को बन्द करवा दिया। अम्बा निराश हो कर वन में तपस्या करने चली गई।

विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग विलास में रत हो गये किन्तु दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई और वे क्षय रोग से पीड़ित हो कर मृत्यु को प्राप्त हो गये। अब कुल नाश होने के भय से माता सत्यवती ने एक दिन भीष्म से कहा, “पुत्र! इस वंश को नष्ट होने से बचाने के लिये मेरी आज्ञा है कि तुम इन दोनों रानियों से पुत्र उत्पन्न करो।” माता की बात सुन कर भीष्म ने कहा, “माता! मैं अपनी प्रतिज्ञा किसी भी स्थिति में भंग नहीं कर सकता।”

यह सुन कर माता सत्यवती को अत्यन्त दुःख हुआ। अचानक उन्हें अपने पुत्र वेदव्यास का स्मरण हो आया। स्मरण करते ही वेदव्यास वहाँ उपस्थित हो गये। सत्यवती उन्हें देख कर बोलीं, “हे पुत्र! तुम्हारे सभी भाई निःसन्तान ही स्वर्गवासी हो गये। अतः मेरे वंश को नाश होने से बचाने के लिये मैं तुम्हें आज्ञा देती हूँ कि तुम उनकी पत्नियों से सन्तान उत्पन्न करो।”

वेदव्यास उनकी आज्ञा मान कर बोले, “माता! आप उन दोनों रानियों से कह दीजिये कि वे एक वर्ष तक नियम-व्रत का पालन करते रहें तभी उनको गर्भ धारण होगा।” एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर वेदव्यास सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका के पास गये। अम्बिका ने उनके तेज से डर कर अपने नेत्र बन्द कर लिये। वेदव्यास लौट कर माता से बोले, “माता अम्बिका का बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किन्तु नेत्र बन्द करने के दोष के कारण वह अंधा होगा।” सत्यवती को यह सुन कर अत्यन्त दुःख हुआ और उन्हों ने वेदव्यास को छोटी रानी अम्बालिका के पास भेजा।

अम्बालिका वेदव्यास को देख कर भय से पीली पड़ गई। उसके कक्ष से लौटने पर वेदव्यास ने सत्यवती से कहा, “माता! अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र होगा।” इससे माता सत्यवती को और भी दुःख हुआ और उन्होंने बड़ी रानी अम्बालिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जा कर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी ने आनन्दपूर्वक वेदव्यास से भोग कराया। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आ कर कहा, “माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदान्त में पारंगत अत्यन्त नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।” इतना कह कर वेदव्यास तपस्या करने चले गये।

समय आने पर अम्बिका के गर्भ से जन्मांध धृतराष्ट्र, अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पाण्डु तथा दासी के गर्भ से धर्मात्मा विदुर का जन्म हुआ।”

रविवार, 9 दिसंबर 2018

सफ़ेद दाढ़ी मुछों से अब पायें छुटकारा, वापस उगने लगेगी काली दाढ़ी, बस अपनाएं ये उपाय

सफ़ेद दाढ़ी मुछों से अब पायें छुटकारा, वापस उगने लगेगी काली दाढ़ी, बस अपनाएं ये उपाय


By :-----आचार्य डा.अजय दीक्षित
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उम्र बढ़ने के साथ मूंछों में सफेद बाल की वृद्धि होने लगती है। और जब आप वृद्ध हो जाते हैं तो शरीर से मेलेनिन भी कम होने लगता है। मेलेनिन एक रंग है जो आपके बालों को सही रंग देने में मदद करता है। लेकिन जब मेलेनिन कम हो जाता है तो बाल सफ़ेद दिखने लगते हैं।


मेलनिन के मात्रा कम होने के कारण मूछ और दाढ़ी के बाल सफेद होने लगते है मेलनिन ऐसा तत्व है जो आपके बालों और त्वचा के रंग को सही रखने में मदद करता है लेकिन उम्र के साथ शरीर में मेलनिन की मात्र कम होने के कारण बालों और त्वचा का रंग फीका पड़ने लगता है।

दैनिक जीवन में उपयोग आने वाली लगभग सभी चीजों में रसायनों का उपयोग किसी ना किसी अनुपात में मनुष्य अपने फायदों के लिए कर रहा है, इसका मूल कारण है अधिक लाभ कामना। लेकिन आम जनता को इसका कुप्रभाव भुगतना पड़ता है। रासायनिक मानव शरीर को अलग-अलग तरीकों से हानियां पहुंचता है, इस कारण से सफेद बाल और सफेद दाढ़ी वर्तमान में 60-70% युवाओ की मुख्य समस्या बन गया हैं।

सफेद बाल और दाढ़ी आने के 3 मुख्य कारण


सफेद दाढ़ी की समस्या हार्मोन और पैतृक कारणों के कारण भी हो सकती है, इसका मतलब है कि आपके पिताजी-दादाजी को यह समस्या रही होगी।

एक खोज के मुताबिक, जो लोग अधिक तनावपूर्ण और गुस्से में रहते हैं, उनके बाल भी युवा उम्र में सफेद होते हैं।
जो लोग अत्यधिक धूम्रपान और अल्कोहल सेवन करते हैं वे जल्द ही उम्र बढ़ने लगते हैं, इसलिए इन चीजों से बचें

सफेद बाल और दाढ़ी-मुछ से छुटकारा पाने के 6 घरेलू उपचार

फिटकिरी और नारियल तेल :

फिटकिरी से सफ़ेद बाल हटाएं यह सच है कि सफ़ेद बालों को कई तरह से काला किया जा सकता है हालांकि इस कारगर घरेलू उपाय पर भरोसा किया जाता है जो बाल सफेद होने से बचा सकते हैं। सफेद बालों के इलाज के लिए आप फिटकिरी और नारियल तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। सबसे पहले फिटकिरी का महीन पाउडर तैयार कर लें। फिर एक कटोरी में आधा चम्मच फिटकिरी पाउडर और 1 चम्मच नारियल तेल को अच्छी तरह से मिलाएं। मिश्रण तैयार होने के बाद, उसे प्रभावित स्थान पर लगाएं और 1 घंटा के लिए वैसे ही छोड़ दे। इसका एक सप्ताह तक लगातार इस्तेमाल करें। आप देखेंगे की कुछ ही दिनो में आपको इसके सकारात्मक परिणाम मिलने लगेंगे।

फिटकरी और गुलाबजल :


जब मानव शरीर में मेलेनिन की कमी होती है, तो सफेद दाढ़ी और बाल बढ़ते हैं, इसलिए थोड़ी सी फिटकिरी में गुलाब जल को मिलाकर, जब दाढ़ी के बाल काटना शुरू करे उस वक़्त या दाढ़ी रखने का शोक है तो उन बालो पर इस मिश्रण को लगाने से जल्द ही सफेद बाल काले हो जाते है।

नारियल का तेल और कड़ी पत्ता :

दाढ़ी और मूछ के सफेद बालों से छुटकारा पाने के लिए कुछ कड़ी पत्ते ले और इन्हे नारियल के तेल में डालकर उबाल ले तेल में पत्तो को उबालने के बाद उसे उतारकर ठंडा कर ले और फिर इस तेल से अपनी दाढ़ी और मूछो की मालिश करें इस तेल का प्रयोग आप अपने सिर के बालों को काला करने के लिए भी कर सकते है इस तेल से मालिश करने से आपके सफेद बाल कुछ ही दिनों में काले हो जायंगे।

कड़ी पत्ते का पानी :


कड़ी पत्ता 100 मिलीलीटर पानी में थोड़ी से कड़ी पत्तियां डाल कर तब तक उबाले जब तक पानी आधा न रह जाये पानी आधा हो जाने के बाद इसे पी ले रोजाना यह उपचार आजमाने से आपको फायदा मिलेगा।

पुदीना चाय :

यह सबसे सरल और प्रभावी तरीका है क्योंकि पुदीना ऐसी हर्ब है जिसके अंदर सभी उपयोगी तत्व शामिल हैं जो सिर के बाल और दाढ़ी के बाल को काला कर सकते हैं, आप रोजाना पुदिना की की चाय सुबह-सुबह पीना शुरू करें और आप कुछ ही हफ्तों में इसका असर देखना शुरू कर देंगे ।

दाल और आलू का पेस्ट :

इस बेहतरीन आयुर्वेदिक नुस्खे से आप मूछ के सफेद बालों से छुटकारा पा सकते है आलू और दाल से बना पेस्ट मूछ के सफेद बाल को हटाने में बहुत मदद आता है आलू में ब्लीचिंग के प्राकृतिक गुण होने के कारण आलू को दाल के साथ मिलाकर दाढ़ी व् मूछो का प्राकृतिक रंग वापिस आ जाता है।

आवश्यक सावधानियाँ :

यदि आप चाहते है की आपकी दाढ़ी और मूछ का रंग सफेद न हो तो इसके लिए अपने रोजाना के भोजन में फल, हरि सब्जियां, दाल तथा प्रोटीन युक्त पदार्थो का सेवन करें तथा जंक फ़ूड खाना,शराब का सेवन करना छोड़ दे इसके साथ ही अपने सफेद बालों को छुपाने के लिए डाई का प्रयोग बिलकुल न करें क्योकि इनमे केमिकल मिले होते है।

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

जानिये किस तिथि को किस देवता की करें पूजा |

जानिये किस तिथि को किस देवता की करें पूजा |

हिन्दी पंचांग के अनुसार एक माह में दो पक्ष होते हैं। एक कृष्ण पक्ष है और दूसरा शुक्ल पक्ष। दोनों पक्षों में 15-15 तिथियां होती हैं। पूर्णिमा से अमावस्या तक सभी तिथियों के अलग-अलग कारक देवता हैं। इन कारक देवताओं की पूजा इनकी तिथियों पर करने से भाग्य का साथ मिल सकता है। संक्षिप्त भविष्य पुराण अंक के ब्राह्म पर्व के अनुसार जानिए किस तिथि पर किसकी पूजा करनी चाहिए…

तिथि अनुसार देव पूजन |

– प्रतिपदा यानी पहली तिथि पर अग्नि देव की पूजा करें।

– द्वितिया तिथि पर ब्रह्माजी की पूजा करनी चाहिए।

– तृतीया तिथि पर धन के स्वामी कुबेर देव की पूजा करनी चाहिए।

– चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेशजी की पूजा करें।

– पंचमी पर नाग देवता की पूजा करनी चाहिए।

– षष्ठी तिथि पर भगवान कार्तिकेय की पूजा करें।

– सप्तमी पर भगवान सूर्यदेव की विशेष पूजा करनी चाहिए।

– अष्टमी पर शिवजी की पूजा करें।

– नवमी तिथि पर मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।

– दशमी पर भगवान यमराज की पूजा करें।

– एकादशी पर विश्वेदेवों की पूजा करनी चाहिए।

– द्वादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है।

– त्रयोदशी पर कामदेव की पूजा करनी चाहिए।

– चतुर्दशी तिथि पर शिवजी की पूजा करें।

– पूर्णिमा तिथि पर चंद्र देवी की पूजा करनी चाहिए।

– अमावस्या तिथि पर पितर देवता के निमित्त पूजा करें।

ये पूजन की सरल विधि

रोज सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद घर के मंदिर में ही तिथि के स्वामी की पूजा का प्रबंध करें। अगर मंदिर में तिथि स्वामी की मूर्ति या फोटो न हो तो उनके नाम का ध्यान करते हुए मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की पूजा करें। पूजा में कुमकुम, दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, फूल, चावल, प्रसाद के लिए फल, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान, दक्षिणा आदि अवश्य रखें। पूजा में धूप-दीप जलाएं और परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें।