रविवार, 24 जून 2018

आयुर्वेद में शहद को अमृत के समान माना गया हैं और

कुछ जानकारी बताता हूँ जो आपके काम आएगी शायद कभी!
आयुर्वेद में शहद को अमृत के समान माना गया हैं और मेडिकल साइंस भी शहद को सर्वोत्तम पोष्टिक और एंटीबायोटिक भंडार मानती हैं लेकिन आश्चर्य इस बात का हैं कि शहद की एक बूंद भी अगर कुत्ता चाट ले तो वह तुरन्त मर जाता हैं यानी जो मनुष्यों के लिये अमृत हैं वह शहद कुत्ते के लिये साइनाइड हैं

दूसरा देशी घी शुद्ध देशी गाय के घी को आयुर्वेद अमृत मानता हैं और मेडिकल साइंस भी इसे अमृत समान ही कहता हैं पर आश्चर्य ये हैं कि मक्खी घी नही खा सकती अगर गलती से देशी घी पर मक्खी बैठ भी जाये तो अगले पल वह मर जाएगी इस अमृत समान घी को चखना मक्खी के भाग्य में नही होता!

मिश्री.. इसे भी अमृत के समान मीठा माना गया हैं आयुर्वेद में हाथ से बनी मिश्री को अमृत तुल्य बताया गया हैं और मेडिकल साइंस हाथ से बनी मिश्री को सर्वोत्तम एंटबायोटिक मानता है लेकिन आश्चर्य हैं कि अगर खर (गधे) को एक डली मिश्री खिला दी जाए तो अगले ही पल उसके प्राण पखेरू उड़ जाएंगे! ये अमृत समान मिश्री खर नही खा सकता हैं

नीम के पेड़ पर लगने वाली पकी हुई निम्बोली में सब रोगों को हरने वाले गुण होते हैं और आयुर्वेद उसे अमृत ही कहता हैं मेडिकल साइंस भी नीम के बारे में क्या राय कहता हैं आप जानते होंगे! लेकिन आश्चर्य ये हैं कि रात दिन नीम के पेड़ पर रहने वाला कौवा अगर गलती से निम्बोली को चख भी ले तो उसका गला खराब हो जाता हैं अगर निम्बोली खा ले तो कौवे की मृत्यु निश्चित हैं

इस धरती पर ऐसा बहुत कुछ हैं जो अमृत समान हैं अमृत तुल्य हैं पर इस धरती पर ऐसे जीव भी हैं जिनके भाग्य में वह अमृत भी नही हैं
मोदी भारत के लिये अमृत समान ही हैं पर इन मक्खी कुत्ते कौवे बिलाड़े आदि को ये समझाने में समय नष्ट न कीजिये इनके भाग्य में वो समझ ही नही हैं इसलिये व्यर्थ विवाद करने से बेहतर हैं इन कुत्ते बिलाडा मक्खी जैसो को ब्लॉक कीजिये

अभी मेने दो कुत्तों को शहद चटाया हैं 😜

शनिवार, 23 जून 2018

पुनर्जन्म को प्रमाणित करती एक सत्य घटना

पुनर्जन्म को प्रमाणित करती एक सत्य घटना


   |     |   |      |   आचार्य,डा.अजय दीक्षित



सूरदास की मन की आँखों के आगे त्रिलोकी के रहस्य खुले पड़े रहते थे। तन के चक्षुओं की निष्क्रियता के बावजूद वह बड़ी आसानी से जागतिक जीवन के सार-असार तत्वों का विश्लेषण कर लेते थे। जिज्ञासाएँ अपने सरलतम रूप से लेकर गंभीर रूप में उनके सम्मुख आती थीं और वह उन्हें दर्पण में बिम्ब के समान सही-सही देख सुलझा देते थे। उनके प्रवचन में ज्ञान बरसता था, वाणी में रस झरता था और छवि में आनंद तरंगित होता था।


शहंशाह शाहजहाँ के दोनों पुत्र औरंगजेब और दाराशिकोह एक दिन ऐसे ही प्रवचन पर्व में जा बैठे। बालक वयमान में अबोध थे, परंतु जिज्ञासा अगाध थी। उनकी पहली जिज्ञासा सुन प्रबुद्ध प्रवचनकर्ता ने कहा-हाँ मानव का पूर्वजन्म होता है।” उन्होंने आगे बताया-मैं और मेरे परिजन सभी पूर्वजन्म के कृत्यानुसार सुख-दुख भोगते हैं।” जिज्ञासु और श्रोताओं ने इसका शास्त्रोक्त प्रमाण माँगा तो संत ने उत्तर दिया, गीता में कहा है- शुचीनां श्रीमतं गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते अर्थात् पवित्र एवं समृद्ध कुल में पूर्व जन्म के भ्रष्ट योगी जन्म लेते हैं और सत्कर्मों को करते हुए, ये आवागमन के चक्र से मुक्त होकर कैवल्य पद पाते हैं।”

स्तन ने इस गूढ़ रहस्य को विस्तार से समझाया तो एक और व्यक्ति ने गहरी जिज्ञासा से सिर उठाया, “पूर्वजन्म के कर्मों का ज्ञान मानव को कैसे हो?” “इसका उत्तर तो कोई विद्वान ज्योतिषाचार्य ही दे सकता है, क्योंकि मानव की जन्मकुण्डली उसके पूर्व जन्म का लेखा-जोखा है। विद्वान ज्योतिषी जन्मकुण्डली के पंचम व नवम् भाव को देखकर मानव के पूर्वजन्मों के कर्मों को देख लेता है और बता सकता है कि उसे किस देवता की उपासना करनी चाहिए जिससे उसके

पापों का क्षय हो सके।”

जिज्ञासु संतुष्ट था, पर जिज्ञासा का अंत नहीं था। उसने फिर जिज्ञासा की- “क्या व्यक्ति अपना पूर्वजन्म देख सकता है? यदि हाँ तो कैसे?” “कोई भी व्यक्ति यदि ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि से पवित्र होकर आज्ञाचक्र में दोनों भौंहों के मध्य दृष्टि केन्द्रित करके आधा घंटा ध्यान करे तथा फिर संपुटित महामृत्युञ्जय मंत्र का ध्यानयुक्त जप एक वर्ष नियमित रूप से करे तो भयंकरतम रोग तो नष्ट होते ही हैं, साथ ही पूर्वजन्म भी दिख जाता है और मानव की ऋतम्भरा प्रज्ञा जाग्रत हो जाती है।”

“कुछ व्यक्तियों को पूर्वजन्म की स्मृतियाँ रहती हैं, इसका क्या कारण है?” “हाँ लाखों में से किसी एक को पूर्वजन्म की उपासना के कारण पूर्वजन्म की स्मृति रह जाती है।”

इस पर औरंगजेब तमककर बोला “हमारी शरीर में तो पूर्वजन्म का नामोनिशान नहीं है। तुम्हारी यह बकवास सर्वथा बेबुनियाद है।”

दाराशिकोह संत की वाणी में समाए ज्ञानरस में भीगता जा रहा था। उसे औरंगजेब का व्यवहार दुष्टतापूर्ण लगा। इसी वजह से उसने अपने इस छोटे भाई को समझाने की कोशिश की, पर यह कोशिश औरंगजेब के हठ के कारण कलह में बदल गयी। दोनों लड़ते-झगड़ते अपने पिता शाहजहाँ के पास पहुँचे। औरंगजेब को समझाना शाहजहाँ के भी वश का नहीं था और अब तो उसने हठ पकड़ ली थी कि उस अंधे संत को बुलवाया जाए और वही सिद्ध कर बताए कि क्या पुनर्जन्म वास्तव में होता है।

शाहजहाँ के मन में भी उत्सुकता थी। अतः संत को सम्मान सहित बुलवाया गया। शाहजहाँ ने बालक औरंगजेब की जिज्ञासा उनके सामने रखते हुए कहा, “यह बालकों का झगड़ा तो आपको निपटाना ही होगा।” शाहजहाँ के स्वर में आदेश नहीं मनुहार थी।

“अच्छा तो फिर आपके महल की सभी स्त्रियों, दास-दासियों को कहिए कि वे एक-एक करके मेरे सामने कुछ बोलकर जाएँ।

शाहजहाँ ने सबको बुलाकर कतार में खड़ा कर दिया और हुक्म दिया कि वे एक-एक करके आएँ और संत बाबा से सलाम कहकर इनके सामने से जाएँ। सबने आज्ञा मानी और जब सबसे अंत में जहाँआरा आई तथा उसने ज्यों ही ‘संत बाबा सलाम’ कहा तो अंधे संत ने कहा, “ललिता तोहे पूछत शाहजहाँ।” तो जहाँआरा के मुख से निकला, “उद्धव तुम हो, कृष्ण कहा?” और वह मूर्च्छित हो गयी।

एक-दूसरे ने एक-दूसरे के पूर्वजन्म कह सुनाया। संत ने शाहजहाँ को बताया कि ”पूर्वजन्म में यह कृष्ण सखी ललिता थी और मैं कृष्ण सखा उद्धव। संत ने शहंशाह को यह भी बताया कि इस जन्म में भी यह कन्या धार्मिक होगी, तुम्हारी बहुत सेवा करेगी और जब मृत्यु आएगी तो इसके हृदय पर धर्मग्रन्थ होगा तथा इसी जन्म में मोक्ष पा जाएगी।” संत सूरदास के इस प्रामाणिक कथन पर शाहजहाँ के परिवार को मानना पड़ा कि पुनर्जन्म एवं पूर्वजन्म आश्चर्यजनक लगते हुए भी पूर्णतया सत्य हैं।


🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒जय सियाराम जय जय हनुमान

शुक्रवार, 15 जून 2018

कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करें

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कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है इस बारे में जानकारी देंगें भारतीय चिकित्सा परिषद के सदस्य डॉ जितेंद्र गिल

                         *सोना*

सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।

                        *चाँदी*

चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है  इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।

                           *कांसा*

काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में  शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

                         *तांबा*

तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।

                        *पीतल*

पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल ७ प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।

                         *लोहा*

लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से  शरीर  की  शक्ति बढती है, लोहतत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और  पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।

                         *स्टील*

स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी  नहीं पहुँचता।

                      *एलुमिनियम*

एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।

                           *मिट्टी*

मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते हैं । इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैं मिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे १०० प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।
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