लंका में श्रीराम ने युद्ध कब आरम्भ किया और कितने दिन चला ? इस विषय में लोगों को बड़ी भ्रान्तियाँ हैं । यहाँ सप्रमाण इस विषय का निरूपण किया जा रहा है । श्रीराम समुद्र पार करके सुबेल पर्वत पर विश्राम हेतु पहुँचे । तत्पश्चात् सूर्यास्त हुआ और वह पूर्णिमा की रात्रि थी–
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।। आचार्य,डा.अजय दीक्षित
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ततोSस्तमगमत् सूर्य: सन्ध्यया प्रतिरञ्जित: । पूर्णचन्द्रप्रदीप्ता च क्षपा समतिवर्तत ।।
-वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड-३८/१९,
रात्रि बीतने के बाद कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को सुग्रीव ने रावण से मल्लयुद्ध किया और उसी तिथि को श्रीराम ने वानरवीरों के साथ लंका को पूरी तरह घेर लिया–युद्धकाण्ड-४१/२२-५२, वालितनय अंगद को दूत बनाकर रावण को समझाने भेजा गया । न मानने पर उसी दिन लंका पर प्रबल आक्रमण हुआ । -युद्धकाण्ड-४१-४२सर्ग,
यह तिथि कृष्णपक्ष की प्रतिपदा थी ।
युद्धारम्भ की तिथि के मास का निर्णय
वानरवीर स्वयंप्रभा के अनुग्रह से गुफा के बाहर आये और सागरतट पर बैठे हैं । उस समय कुमार अंगद ने कहा कि हम लोग आश्विन मास में सीतान्वेषण हेतु प्रस्थान किये और वह महीना बीत गया । अब क्या करें–
वयमाश्वयुजे मासि कालसंख्याव्यवस्थिता: । प्रस्थिता: सोSपि चातीत: किमत: कार्यमुत्तरम् ।।
-वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धाकाण्ड-४३/९,
अर्थात् वे वीर समुद्रतट पर कार्तिक मास में विराजमान हैं । अब हम युद्धारम्भ की तिथि आश्विन (कुआर) माह के बाद ही किसी मास की मान सकते हैं । और “ऐसा होने पर आश्विन शुक्ल पक्ष की विजयदशमी को “रावणदहन” शास्त्रसम्मत नही हो सकता । और समग्र भारत चिरकाल से भ्रान्त हो” – यह कल्पना करना भी प्रज्ञापराध है । इसलिए हमें सूक्ष्मता से विचार करना होगा ।
महापण्डित श्रीनागेशभट्ट जी ने ब्रह्मवैवर्त का उद्धरण देते हुए लिखा है कि वनवास के १३वें वर्ष में श्रीराम के आदेश पर लक्ष्मण जी ने शूर्पणखा का नाक कान काटा । तत्पश्चात् रावण ने विन्द मुहूर्त में माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी को सीताहरण किया । कहीं माघशुक्स चतुर्दशी भी पाठ मिलता है ।
सम्पाति ने सीताहरण के दशवें महीने में मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की दशमी को वानरवीरों से लंका में स्थित मैथिली का पता बतलाया है -
मार्गशुक्लदशम्यां तु वसन्तीं रावणालये । संपातिर्दशमे मासे आचख्य़ौ वानरेषु ताम् ।।
-ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रथम अंश,
और हनुमान् जी से जानकी जी ने यही बात कही है कि यह दशवां महीना चल रहा है–
“वर्तते दशमो मासो द्वौ तु शेषो प्लवंगम।”
रावण ने जो अवधि दी है उसका दशवां महीना चल रहा है केवल २ मास ही शेष बचे हैं ।
इसलिए ब्रह्मवैवर्त का कथन वाल्मीकि रामायण से सटीक बैठ रहा है ।
एकादशी को आञ्जनेय द्वारा सागरलंघन, उसी रात्रि में सीतादर्शन तथा दिन भर द्वादशी तिथि को वृक्ष में छिपकर रहना और रात्रि को माँ जानकी से वार्तालाप हुआ । त्रयोदशी को वाटिकाविध्वंस रावण की सेना का संहार करते हुए अक्षकुमार का वध हनुमान जी ने किया । मार्गशीर्ष शुक्लचतुर्दशी को मेघनाद से युद्ध, ब्रह्मास्त्र से बँधना और लंकादहन –
ब्रह्मास्त्रेणचतुर्दश्यां बद्ध: शक्रजिता कपि: । वह्निना पुच्छयुक्तेन लङ्काया दहनं तथा ।।
पौष शुक्ल प्रतिपदा को श्रीराम ने किष्किन्धा से ससैन्य प्रस्थान किया और तृतीया तिथि तक सेना सागर तट पर पहुँच गयी–
“पौषशुक्लप्रतिपदस्तृतीया यावदम्बुधे: । उपस्थानं ससैन्यस्य राघवस्य बभूव ह ।।
अब ध्यातव्य है कि श्रीराम जब सुवेल पर्वत पर पहुँचे हैं तब रात्रि में चन्द्रमा पूर्ण था –
“ततोSस्तमगमत् सूर्य: सन्ध्यया प्रतिरञ्जित: । पूर्णचन्द्रप्रदीप्ता च क्षपा समतिवर्तत ।।
-वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड-३८/१९,
अर्थात् यह पौषमास की पूर्णिमा तिथि है । इसके बाद तो माघ ही है । अत: माघ कृष्णपक्ष की प्रतिपदा ( परिवा )
को लंका में युद्ध शुरू हुआ । यह निर्णय ब्रह्मवैवर्त और वाल्मीकि रामायण की एकवाक्यता से सिद्ध हुआ । या यों कहें कि ब्रह्मवैवर्त से रामायणोक्त तिथि प्रतिपदा का निश्चय किया गया कि वह माघ की कृष्णपक्ष की प्रतिपदा
थी ।
राक्षसों की प्रबल पराजय हुई और युद्ध अब रात्रि में चल रहा है –”सम्प्रवृत्तं निशायुद्धं तदा वानररक्षसाम् ।।”युद्धकाण्ड-४४/२ , यह भीषण युद्ध लंका के बाहर काफ़ी दिनों तक चला है । राक्षसों का भीषण संहार हुआ । रात्रि में अंगद ने मेघनाद के रथ,सारथी का वध करके उसे भी मारा । वह अन्तर्धान होकर छल से श्रीराम और लक्ष्मण को नागपाश में बाँध देता है ।– युद्धकाण्ड-४४/३५ से ३९,
यह युद्ध कितना लम्बा चला है ? कितनी राक्षसी सेना मारी गयी है ? इसका परिचय उस समय मिलता है जब नागपाश में बँधे श्रीराम को जनकपुत्री देखकर कहती हैं कि अक्षोभ्य राक्षससैन्य रूपी सागर को पार करके ये दोनों भाई गोखुर जैसी थोड़ी सेना बचने पर मारे गये –
” तीर्त्वा सागरमक्षोभ्यं भ्रातरौ गोष्पदे हतौ ।–युद्धकाण्ड-४८/
यही बात मेघनादवध के पूर्व विभीषण जी वानरों से कहते हैं कि आप लोग अक्षोभ्य राक्षससैन्यसागर को पार कर लिये हो । यह गोखुर जितनी सेना बची हुई है–
कुम्भकर्ण के प्रति कहे गये रावण के वचनों से भी निश्चित होता है कि युद्ध लम्बा खिंचा है । कु्म्भकर्ण ७-८-९-१० महीने की निद्रा सुखपूर्वक लेता था-
“सुखं स्वपिति निश्चिन्त: कामोपहतचेतन: । नव सप्त दशाष्टौ च मासान् स्विपिति राक्षस: ।-१६-१७,
जब उसे जगाया गया और वह दशानन के पास पहुँचा तो रावण बोला कि तुम्हे सोये हुए बहुत दिन बीत गये-
अद्य ते सुमहान् काल: शयानस्य महाबल ।-युद्धकाण्ड-६२/१३,
यहाँ सुमहान् शब्द उसके सोये काल का विशेषण है । कुम्भकर्ण को शाप तो ६ महीने सोने का था ही–६१/२८, और यह युद्ध के विषय में मन्त्रणा करके सोया है । तत्पश्चात् विभीषण लंका से श्रीराम की शरण में आये हैं । वह समय पौषमास की शुक्लपक्ष चतुर्थी का है–
“विभीषणश्चतुर्थ्यां वै रामेण सह संगत: .”-युद्धकाण्ड-१११/३५, तिलकटीका,
अब विचार करें कि रावण के द्वारा यहाँ कुम्भकर्ण के सोने का समय क्या बतलाया जा रहा है ? जो सुमहान् ( बहुत अधिक) है । जितने समय में लंका में युद्ध के कारण बालवृद्ध ही बचे हों । कोष ख़ाली हो गया हो, सेना का महान् संहार हुआ हो ।-
“सर्वक्षपितकोशं च स त्वमभ्युपपद्य माम् । त्रायस्वेमां पुरीं लङ्कां बालवृद्धावशेषिताम् ।।-युद्धकाण्ड-६२/१९,
हमें उसके सोने का समय एवं रावणदहन का समय भी ध्यान में रखकर विचार करना है । कालिकापुराण से रावणदहन आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी को प्रमाणित है । और वह युद्ध करने अमावस्या को आया है । जिसके पहले मेघनाद मारा जा चुका है । मेघनाद के पूर्व कुम्भकर्ण का वध हुआ है ।
मेघनाद आश्विन एकादशी कृष्णपक्ष से दिन रात युद्ध करता हुआ ३अहोरात्र में मारा गया । उसकी सूचना रावण को मिली और वह पुत्रशोक में जानकी जी को मारने पहुँचा । उसे अमात्य सुपार्श्व रोककर कहता है कि आज कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी है । अमावस्या को आप सेना के साथ युद्ध के लिए निकलें –
“अभ्युत्थानं त्वमद्यैव कृष्णपक्ष चतुर्दशी । कृत्वा निर्याह्यमावास्यां विजयाय बलैर्वृत: ।।-युद्धकाण्ड-९२/६६,
एकादशी से पूर्व देवान्तक ,नरान्तक,त्रिशिरा, मकराक्ष एवं धान्यमालिनी से रावण द्वारा उत्पन्न महाबली अतिकाय जैसे योद्धा रणभूमि की भेंट चढ़ चुके हैं । अत: कुम्भकर्ण का वध आश्विन कृष्णपक्ष के आसपास ही मानना होगा । चूँकि उसे जगाया गया है । अत: हमें देखना होगा कि वह स्वयं कब सोकर उठता है ??
वह कभी ७ तो कभी ८ और कभी ९ तो कभी १० मास सोता है । अर्थात् इन चारों मासों में उसकी नींद स्वत: टूटती है । यहाँ उसे जगाया गया है । और विभीषण के लंका से आने के बाद वह पौष शुक्लपक्ष की चतुर्थी के समय सोया है । यहाँ से गणना करें तो उसके सोने का महान् काल का पता चल सकता है ।
पौषमास में शुक्लपक्ष के ११दिन और पूरा भादंव । ८ महीने ११ दिन हो गये । आठंवे मास में तो ख़ुद जागता था । अब उसे नवें या दशवें महीने में जगना है । और आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी से पहले रणभूमि में उसकी मृत्यु सुनिश्चित है । इस कृष्णपक्ष में अनुमानत: पञ्चमी के आसपास ही उसकी मृत्यु माननी पड़ेगी ; क्योंकि उसके बाद अतिकाय जैसे अन्य योद्धा भी युद्ध किये हैं ।
मेघनाद के युद्ध में आने की तिथि एकादशी है । अर्थात् भादंव के बाद मात्र १० दिन हैं । उन्हें भी जोड़ लें तो ८ महीने २१ दिन होते हैं । अर्थात् नवाँ या दशवां महीना कुम्भकर्ण की नींद का अभी पूरा नहीं हुआ । और बीच में ही उसे जगाया गया । यही उसकी निद्रा का सुमहान् ( अधिक ) काल है । जिसमें पूरे प्रधान सैनिक मारे गये और कोश रिक्त हो गया । लंका में बालवृद्ध ही बचे हैं –बालवृद्धावशेषिता ।।
इससे भी लंका में दीर्घकाल तक युद्ध हुआ – यह अनुमान लगाया जा सकता है ।
दूसरी बात की वाल्मीकि रामायण से युद्ध का प्रारम्भ माघकृष्ण की प्रतिपदा से निश्चित हो चुका है । कालिकापुराण से रावणवध का समय सुनिश्चित है । और कुम्भकर्ण के सोने का काल सुमहान् भी लिखा है । अत: ये युद्ध माघ कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से आश्विन शुक्लपक्ष की नवमी तक चला । तत्पश्चात् दशमी को रावण का विधिवत् दाहसंस्कार विभीषण ने किया । अत: दशहरा आश्विन शुक्लपक्ष की विजयदशमी को मनाया जाना शास्त्रसम्मत है ।
इस पर आक्षेप करना शास्त्रज्ञान तथा तर्कशून्यता के साथ महामूर्खता का भी द्योतक है ।
कालिकापुराण के अनुसार–
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से युद्ध करने के लिए लंकापति रावण आश्विन मास की अमावस्या को रणभूमि में आया । –वाल्मीकिरामायण–युद्धकाण्ड,92/66, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को देवराज इन्द्र ने अपने सारथि मातलि को रथ लेकर श्रीराम की सहायता हेतु भेजा । इधर अमावस्या की रात्रि को ही राघव पर अनुग्रह करने के लिए ब्रह्मा जी द्वारा प्रेषित रणचण्डी भगवती महाकाली दशरथनन्दन के समीप लंका में पहुंच गयीं । रामरावणयुद्ध प्रतिपदा से अष्टमी की रात तक निरन्तर चला । नवमी को मध्याह्न के आस पास रावण का वध हुआ –
“नवम्यां रावणं ततः । रामेण घातयामास महामाया जगन्मयी”..
– कालिकापुराण,
;क्योंकि उसके वध के समय सूर्य स्थिर प्रभा वाले थे–वा0रा0108/32,
यह भीषण युद्ध प्रतिपदा से चला तो मध्य में दिन या रात कभी भी क्षणमात्र के लिए भी इसका विराम नही हुआ –
नैव रात्रिं न दिवसं न मुहूर्तं न च क्षणम् ।रामरावणयोर्युद्धं विराममुपगच्छति ।।
–वा0रा0यद्धकाण्ड–107/66
इन आठ रातों तक सभी देवों से सुपूजित होकर भगवती चण्डी लंका में ही रहीं ।–
“तावत्तु अष्टरात्राणि सर्वैर्देवैः सुपूजिता” .
दशमी को रावण का दाहसंस्कार अनुज विभीषण द्वारा किया गया । इसी उपलक्ष में हम सब आज इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास से रावण का पुतला बनाकर उसे जलाकर मनाते हैं । अयोध्या में इस पर्व को अन्य शहरों की अपेक्षा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है । जगह -जगह रामलीला का मञ्चन यहां देखने लायक होता है ।