सोमवार, 26 जून 2017

संस्कृतस्लोगन्स)

Sanskrit Slogan(संस्कृत स्लोगन्स)

नास्ति बुद्धिमतां शत्रुः ॥

 भावार्थ :

बुद्धिमानो का कोई शत्रु नहीं होता ।


विद्या परमं बलम ॥

 भावार्थ :

विद्या सबसे महत्वपूर्ण ताकत है ।


सक्ष्मात् सर्वेषों कार्यसिद्धिभर्वति ॥

 भावार्थ :

क्षमा करने से सभी कार्ये में सफलता मिलती है ।


न संसार भयं ज्ञानवताम् ॥

 भावार्थ :

ज्ञानियों को संसार का भय नहीं होता ।


वृद्धसेवया विज्ञानत् ॥

 भावार्थ :

वृद्ध - सेवा से सत्य ज्ञान प्राप्त होता है ।


सहायः समसुखदुःखः ॥

 भावार्थ :

जो सुख और दुःख में बराबर साथ देने वाला होता है सच्चा सहायक होता है ।


आपत्सु स्नेहसंयुक्तं मित्रम् ॥

 भावार्थ :

विपत्ति के समय भी स्नेह रखने वाला ही मित्र है ।


मित्रसंग्रहेण बलं सम्पद्यते ॥

 भावार्थ :

अच्छे और योग्य मित्रों की अधिकता से बल प्राप्त होता है ।


सत्यमेव जयते ॥

 भावार्थ :

सत्य अपने आप विजय प्राप्त करती है ।


उपायपूर्वं न दुष्करं स्यात् ॥

 भावार्थ :

उपाय से कार्य कठिन नहीं होता ।


विज्ञान दीपेन संसार भयं निवर्तते ॥

 भावार्थ :

विज्ञानं के दीप से संसार का भय भाग जाता है ।


सुखस्य मूलं धर्मः ॥

 भावार्थ :

धर्म ही सुख देने वाला है ।


धर्मस्य मूलमर्थः ॥

 भावार्थ :

धन से ही धर्म संभव है ।


विनयस्य मूलं विनयः ॥

 भावार्थ :

वृद्धों की सेवा से ही विनय भाव जाग्रत होता है ।


अलब्धलाभो नालसस्य ॥

 भावार्थ :

आलसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।


आलसस्य लब्धमपि रक्षितुं न शक्यते ॥

 भावार्थ :

आलसी प्राप्त वस्तु की भी रक्षा नहीं कर सकता ।


हेतुतः शत्रुमित्रे भविष्यतः ॥

 भावार्थ :

किसी कारण से ही शत्रु या मित्र बनते हैं ।

बलवान हीनेन विग्रहणीयात् ॥

 भावार्थ :

बलवान कमज़ोर पर ही आक्रमण करे ।

दुर्बलाश्रयो दुःखमावहति ॥

 भावार्थ :

दुर्बल का आश्रय दुःख देता है ।

नव्यसनपरस्य कार्यावाप्तिः ॥

 भावार्थ :

बुरी आदतों में लगे हुए मनुष्य को कार्य की प्राप्ति नहीं होती ।

अर्थेषणा न व्यसनेषु गण्यते ॥

 भावार्थ :

घन की अभिलाषा रखना कोई बुराई नहीं मानी जाती ।

अग्निदाहादपि विशिष्टं वाक्पारुष्यम् ॥

 भावार्थ :

वाणी की कठोरता अग्निदाह से भी बढ़कर है ।

आत्मायत्तौ वृद्धिविनाशौ ॥

 भावार्थ :

वृद्धि और विनाश अपने हाथ में है ।

अर्थमूलं धरकामौ ॥

 भावार्थ :

धन ही सभी कार्याे का मूल है ।

कार्यार्थिनामुपाय एव सहायः ॥

 भावार्थ :

उद्यमियों के लिए उपाय ही सहायक है ।

कार्य पुरुषकारेण लक्ष्यं सम्पद्यते ॥

 भावार्थ :

निश्चय कर लेने पर कार्य पूर्ण हो जाता है ।

असमाहितस्य वृतिनर विद्यते ॥

 भावार्थ :

भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर कुछ भी प्राप्त नहीं होता ।

पूर्वं निश्चित्य पश्चात् कार्यभारभेत् ॥

 भावार्थ :

पहले निश्चय करें, फिर कार्य आरंभ करें ।

कार्यान्तरे दीघर्सूत्रता न कर्तव्या ॥

 भावार्थ :

कार्य के बीच में आलस्य न करें ।

दुरनुबध्नं कार्य साधयेत् ॥

 भावार्थ :

जो कार्य हो न सके उस कार्य को प्रांरभ ही न करें ।

कालवित् कार्यं साधयेत् ॥

 भावार्थ :

समय के महत्व को समझने वाला निश्चय ही अपना कार्य सिद्धि कर पता है ।

भाग्यवन्तमपरीक्ष्यकारिणं श्रीः परित्यजति ॥

 भावार्थ :

बिना विचार कार्य करने वाले भाग्शाली को भी लक्ष्मी त्याग देती है ।



यो यस्मिन् कर्माणि कुशलस्तं तस्मित्रैव योजयेत् ॥

 भावार्थ :

जो मनुष्य जिस कार्य में निपुण हो, उसे वही कार्य सौंपना चाहिए ।

दुःसाध्यमपि सुसाध्यं करोत्युपायज्ञः ॥

 भावार्थ :

उपायों का ज्ञाता कठिन को भी आसान बना देता है ।

अप्रयत्नात् कार्यविपत्तिभर्वती ॥

 भावार्थ :

प्रयास न करने से कार्य का नाश होता है ।

शोकः शौर्यपकर्षणः ॥

 भावार्थ :

शोक मनुष्य के शौर्य को नष्ट कर देता है ।

न सुखाल्लभ्यते सुखम् ॥

 भावार्थ :

सुख से सुख की वृद्धि नहीं होती ।

स्वभावो दुरतिक्रमः ॥

 भावार्थ :

स्वभाव का अतिक्रमण कठिन है ।

मित्रता-उपकारफलं मित्रमपकारोऽरिलक्षणम् ॥

 भावार्थ :

उउपकार करना मित्रता का लक्षण है और अपकार करना शत्रुता का ।

सर्वथा सुकरं मित्रं दुष्करं प्रतिपालनम् ॥

 भावार्थ :

मित्रता करना सहज है लेकिन उसको निभाना कठिन है ।

ये शोकमनुवर्त्तन्ते न तेषां विद्यते सुखम् ॥

 भावार्थ :

शोकग्रस्त मनुष्य को कभी सुख नहीं मिलता ।

सुख-दुर्लभं हि सदा सुखम् ॥

 भावार्थ :

सुख सदा नहीं बना रहता है ।

सर्वे चण्डस्य विभ्यति ॥

 भावार्थ :

क्रोधी पुरुष से सभी डरते हैं ।

मृदुर्हि परिभूयते ॥

 भावार्थ :

मृदु पुरुष का अनादर होता है ।




शब्दमात्रात् न भीतव्यम् ॥

 भावार्थ :

शब्द - मात्र से डरना उचित नहीं ।

उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः ॥

 भावार्थ :

उपय द्वारा जो काम हो जाता है वह पराक्रम से नहीं हो पता ।

उपायेन जयो यदृग्रिपोस्तादृड्डं न हेतिभिः ॥

 भावार्थ :

उपाय से शत्रु को जीतो, हथियार से नहीं ।

यस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् ॥

 भावार्थ :

बली वही है, जिसके पास बुद्धि-बल है ।

न ह्राविज्ञातशीलस्य प्रदातव्यः प्रतिश्रयः ॥

 भावार्थ :

अज्ञात या विरोधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को आश्रय नहीं देना चाहिए ।

सेवाधर्मः परमगहनो ॥

 भावार्थ :

सेवाधर्म बड़ा कठिन धर्म है ।

बलवन्तं रिपु दृष्ट् वा न वामान प्रकोपयेत् ॥

 भावार्थ :

शत्रु अधिक बलशाली हो तो क्रोध प्रकट न करे, शान्त हो जाए ।

यद् भविष्यो विनश्यति ॥

 भावार्थ :

'जो होगा देखा जाएगा' कहने वाले नष्ट हो जाते हैं ।

बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जयः ॥

 भावार्थ :

छोटे और निर्बल भी संख्या में बहुत होकर दुर्जेय हो जाते हैं ।

उपदेशो हि मूर्खणां प्रकोपाय न शान्तये ॥

 भावार्थ :

उपदेश से मूर्खो का क्रोध और भी भड़क उठता है, शान्त नहीं होता ।

उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने ॥

 भावार्थ :

जिस-तिसको उपदेश देना उचित नहीं ।

किं करोत्येव पाण्डित्यमस्थाने विनियोजितम् ॥

 भावार्थ :

अयोग्य को मिले ज्ञान का फल विपरीत ही होता है ।


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