मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

🔯🔯पंचमुखी हनुमान की दिव्य कथा – जानिए पंचमुखी क्यो हुए हनुमान🔯🔯डा.अजय दीक्षित

पंचमुखी हनुमान की कहानी – जानिए पंचमुखी क्यो हुए हनुमान?
          डा.अजय दीक्षि 

 लंका में महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला. अंतत: मेघनाद मारा गया। रावण जो अब तक मद में चूर था राम सेना, खास तौर पर लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया।
रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई. रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं।
लंका का राजा बनने के बाद उनकी सुध ही नहीं रही थी। रावण यह भली प्रकार जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा पंडित, जादू टोने के धनी और मां कामाक्षी के परम भक्त हैं।
                                रावण ने उन्हें बुला भेजा और कहा कि वह अपने छल बल, कौशल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया कर दे। यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता लग गयी। युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए।                              विभीषण को लगा कि भगवान श्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी. इसके लिए उन्हें सबसे बेहतर लगा कि इसका जिम्मा परम वीर हनुमान जी को सौंप दिया जाए।
राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी। हनुमान जी ने भगवान श्री राम की कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा खींच दिया। कोई जादू टोना तंत्र-मंत्र का असर या मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सकता था।
अहिरावण और महिरावण श्री राम और लक्ष्मण को मारने उनकी कुटिया तक पहुंचे पर इस सुरक्षा घेरे के आगे उनकी एक न चली, असफल रहे। ऐसे में उन्होंने एक चाल चली। महिरावण विभीषण का रूप धर के कुटिया में घुस गया।
राम व लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद सो रहे थे। दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनो भाइयों को उठा लिया और अपने निवास पाताल की और लेकर चल दिए।
                                                                      विभीषण लगातार सतर्कथे।
उन्हें कुछ देर में ही पता चल गया कि कोई अनहोनी घट चुकी है. विभीषण को महिरावण पर शक था, उन्हें राम-लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी।
विभीषण ने हनुमान जी को महिरावण के बारे में बताते हुए कहा कि वे उसका पीछा करें। लंका में अपने रूप में घूमना राम भक्त हनुमान के लिए ठीक न था सो उन्होंने पक्षी का रूप धारण कर लिया और पक्षी का रूप में ही निकुंभला नगर पहुंच गये।
निकुंभला नगरी में पक्षी रूप धरे हनुमान जी ने कबूतर और कबूतरी को आपस में बतियाते सुना। कबूतर, कबूतरी से कह रहा था कि अब रावण की जीत पक्की है। अहिरावण व महिरावण राम-लक्ष्मण को बलि चढा देंगे। बस सारा युद्ध समाप्त।
कबूतर की बातों से ही बजरंग बली को पता चला कि दोनों राक्षस राम लक्ष्मण को सोते में ही उठाकर कामाक्षी देवी को बलि चढाने पाताल लोक ले गये हैं। हनुमान जी वायु वेग से रसातल की और बढे और तुरंत वहां पहुंचे।
हनुमान जी को रसातल के प्रवेश द्वार पर एक अद्भुत पहरेदार मिला। इसका आधा शरीर वानर का और आधा मछली का था। उसने हनुमान जी को पाताल में प्रवेश से रोक दिया।
द्वारपाल हनुमान जी से बोला कि मुझ को परास्त किए बिना तुम्हारा भीतर जाना असंभव है। दोनों में लड़ाई ठन गयी। हनुमान जी की आशा के विपरीत यह बड़ा ही बलशाली और कुशल योद्धा निकला।
दोनों ही बड़े बलशाली थे। दोनों में बहुत भयंकर युद्ध हुआ परंतु वह बजरंग बली के आगे न टिक सका। आखिर कार हनुमान जी ने उसे हरा तो दिया पर उस द्वारपाल की प्रशंसा करने से नहीं रह सके।
हनुमान जी ने उस वीर से पूछा कि हे वीर तुम अपना परिचय दो। तुम्हारा स्वरूप भी कुछ ऐसा है कि उससे कौतुहल हो रहा है। उस वीर ने उत्तर दिया- मैं हनुमान का पुत्र हूं और एक मछली से पैदा हुआ हूं। मेरा नाम है मकरध्वज।
हनुमान जी ने यह सुना तो आश्चर्य में पड़ गए। वह वीर की बात सुनने लगे। मकरध्वज ने कहा- लंका दहन के बाद हनुमान जी समुद्र में अपनी अग्नि शांत करने पहुंचे। उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज गिरा।
उस समय मेरी मां ने आहार के लिए मुख खोला था। वह तेज मेरी माता ने अपने मुख में ले लिया और गर्भवती हो गई। उसी से मेरा जन्म हुआ है। हनुमान जी ने जब यह सुना तो मकरध्वज को बताया कि वह ही हनुमान हैं।
मकरध्वज ने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए और हनुमान जी ने भी अपने बेटे को गले लगा लिया और वहां आने का पूरा कारण बताया। उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि अपने पिता के स्वामी की रक्षा में सहायता करो
मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया कि कुछ ही देर में राक्षस बलि के लिए आने वाले हैं। बेहतर होगा कि आप रूप बदल कर कामाक्षी कें मंदिर में जा कर बैठ जाएं। उनको सारी पूजा झरोखे से करने को कहें।
हनुमान जी ने पहले तो मधु मक्खी का वेश धरा और मां कामाक्षी के मंदिर में घुस गये। हनुमान जी ने मां कामाक्षी को नमस्कार कर सफलता की कामना की और फिर पूछा- हे मां क्या आप वास्तव में श्री राम जी और लक्ष्मण जी की बलि चाहती हैं ?
हनुमान जी के इस प्रश्न पर मां कामाक्षी ने उत्तर दिया कि नहीं। मैं तो दुष्ट अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हूं। यह दोनों मेरे भक्त तो हैं पर अधर्मी और अत्याचारी भी हैं। आप अपने प्रयत्न करो, सफल रहोगे।
मंदिर में पांच दीप जल रहे थे। अलग-अलग दिशाओं और स्थान पर मां ने कहा यह दीप अहिरावण ने मेरी प्रसन्नता के लिए जलाये हैं जिस दिन ये एक साथ बुझा दिए जा सकेंगे, उसका अंत सुनिश्चित हो सकेगा।
इस बीच गाजे-बाजे का शोर सुनाई पड़ने लगा। अहिरावण, महिरावण बलि चढाने के लिए आ रहे थे। हनुमान जी ने अब मां कामाक्षी का रूप धरा। जब अहिरावण और महिरावण मंदिर में प्रवेश करने ही वाले थे कि हनुमान जी का महिला स्वर गूंजा।
हनुमान जी बोले- मैं कामाक्षी देवी हूं और आज मेरी पूजा झरोखे से करो। झरोखे से पूजा आरंभ हुई ढेर सारा चढावा मां कामाक्षी को झरोखे से चढाया जाने लगा। अंत में बंधक बलि के रूप में राम लक्ष्मण को भी उसी से डाला गया। दोनों बंधन में बेहोश थे।
हनुमान जी ने तुरंत उन्हें बंधन मुक्त किया। अब पाताल लोक से निकलने की बारी थी पर उससे पहले मां कामाक्षी के सामने अहिरावण महिरावण की बलि देकर उनकी इच्छा पूरी करना और दोनों राक्षसों को उनके किए की सज़ा देना शेष था।
अब हनुमान जी ने मकरध्वज को कहा कि वह अचेत अवस्था में लेटे हुए भगवान राम और लक्ष्मण का खास ख्याल रखे और उसके साथ मिलकर दोनों राक्षसों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
पर यह युद्ध आसान न था। अहिरावण और महिरावण बडी मुश्किल से मरते तो फिर पाँच पाँच के रूप में जिदां हो जाते। इस विकट स्थिति में मकरध्वज ने बताया कि अहिरावण की एक पत्नी नागकन्या है।
अहिरावण उसे बलात हर लाया है। वह उसे पसंद नहीं करती पर मन मार के उसके साथ है, वह अहिरावण के राज जानती होगी। उससे उसकी मौत का उपाय पूछा जाये। आप उसके पास जाएं और सहायता मांगे।
मकरध्वज ने राक्षसों को युद्ध में उलझाये रखा और उधर हनुमान अहिरावण की पत्नी के पास पहुंचे। नागकन्या से उन्होंने कहा कि यदि तुम अहिरावण के मृत्यु का भेद बता दो तो हम उसे मारकर तुम्हें उसके चंगुल से मुक्ति दिला देंगे।
अहिरावण की पत्नी ने कहा- मेरा नाम चित्रसेना है। मैं भगवान विष्णु की भक्त हूं। मेरे रूप पर अहिरावण मर मिटा और मेरा अपहरण कर यहां कैद किये हुए है, पर मैं उसे नहीं चाहती। लेकिन मैं अहिरावण का भेद तभी बताउंगी जब मेरी इच्छा पूरी की जायेगी।
हनुमान जी ने अहिरावण की पत्नी नागकन्या चित्रसेना से पूछा कि आप अहिरावण की मृत्यु का रहस्य बताने के बदले में क्या चाहती हैं ? आप मुझसे अपनी शर्त बताएं, मैं उसे जरूर मानूंगा।
चित्रसेना ने कहा- दुर्भाग्य से अहिरावण जैसा असुर मुझे हर लाया. इससे मेरा जीवन खराब हो गया. मैं अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना चाहती हूं। आप अगर मेरा विवाह श्री राम से कराने का वचन दें तो मैं अहिरावण के वध का रहस्य बताऊंगी।
हनुमान जी सोच में पड़ गए. भगवान श्री राम तो एक पत्नी निष्ठ हैं। अपनी धर्म पत्नी देवी सीता को मुक्त कराने के लिए असुरों से युद्ध कर रहे हैं। वह किसी और से विवाह की बात तो कभी न स्वीकारेंगे। मैं कैसे वचन दे सकता हूं ?
फिर सोचने लगे कि यदि समय पर उचित निर्णय न लिया तो स्वामी के प्राण ही संकट में हैं. असमंजस की स्थिति में बेचैन हनुमानजी ने ऐसी राह निकाली कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
हनुमान जी बोले- तुम्हारी शर्त स्वीकार है पर हमारी भी एक शर्त है. यह विवाह तभी होगा जब तुम्हारे साथ भगवान राम जिस पलंग पर आसीन होंगे वह सही सलामत रहना चाहिए। यदि वह टूटा तो इसे अपशकुन मांगकर वचन से पीछे हट जाऊंगा।
जब महाकाय अहिरावण के बैठने से पलंग नहीं टूटता तो भला श्रीराम के बैठने से कैसे टूटेगा ! यह सोच कर चित्रसेना तैयार हो गयी। उसने अहिरावण समेत सभी राक्षसों के अंत का सारा भेद बता दिया.
चित्रसेना ने कहा- दोनों राक्षसों के बचपन की बात है. इन दोनों के कुछ शरारती राक्षस मित्रों ने कहीं से एक भ्रामरी को पकड़ लिया। मनोरंज के लिए वे उसे भ्रामरी को बार-बार काटों से छेड रहे थे।
भ्रामरी साधारण भ्रामरी न थी। वह भी बहुत मायावी थी किंतु किसी कारण वश वह पकड़ में आ गई थी। भ्रामरी की पीड़ा सुनकर अहिरावण और महिरावण को दया आ गई और अपने मित्रों से लड़ कर उसे छुड़ा दिया।
मायावी भ्रामरी का पति भी अपनी पत्नी की पीड़ा सुनकर आया था। अपनी पत्नी की मुक्ति से प्रसन्न होकर उस भौंरे ने वचन दिया था कि तुम्हारे उपकार का बदला हम सभी भ्रमर जाति मिलकर चुकाएंगे।
ये भौंरे अधिकतर उसके शयन कक्ष के पास रहते हैं। ये सब बड़ी भारी संख्या में हैं। दोनों राक्षसों को जब भी मारने का प्रयास हुआ है और ये मरने को हो जाते हैं तब भ्रमर उनके मुख में एक बूंद अमृत का डाल देते हैं।
उस अमृत के कारण ये दोनों राक्षस मरकर भी जिंदा हो जाते हैं। इनके कई-कई रूप उसी अमृत के कारण हैं। इन्हें जितनी बार फिर से जीवन दिया गया उनके उतने नए रूप बन गए हैं. इस लिए आपको पहले इन भंवरों को मारना होगा।
हनुमान जी रहस्य जानकर लौटे। मकरध्वज ने अहिरावण को युद्ध में उलझा रखा था। तो हनुमान जी ने भंवरों का खात्मा शुरू किया। वे आखिर हनुमान जी के सामने कहां तक टिकते।
जब सारे भ्रमर खत्म हो गए और केवल एक बचा तो वह हनुमान जी के चरणों में लोट गया। उसने हनुमान जी से प्राण रक्षा की याचना की। हनुमान जी पसीज गए। उन्होंने उसे क्षमा करते हुए एक काम सौंपा।
हनुमान जी बोले- मैं तुम्हें प्राण दान देता हूं पर इस शर्त पर कि तुम यहां से तुरंत चले जाओगे और अहिरावण की पत्नी के पलंग की पाटी में घुसकर जल्दी से जल्दी उसे पूरी तरह खोखला बना दोगे।
भंवरा तत्काल चित्रसेना के पलंग की पाटी में घुसने के लिए प्रस्थान कर गया। इधर अहिरावण और महिरावण को अपने चमत्कार के लुप्त होने से बहुत अचरज हुआ पर उन्होंने मायावी युद्ध जारी रखा।
भ्रमरों को हनुमान जी ने समाप्त कर दिया फिर भी हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था। यह देखकर हनुमान जी कुछ चिंतित हुए।
फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया। देवी ने बताया था कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचो दीपकों एक साथ बुझेंगे तभी वे नए-नए रूप धारण करने में असमर्थ होंगे और उनका वध हो सकेगा।
हनुमान जी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।
उसके बाद हनुमान जी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचों दीपक बुझा दिए। अब उनके बार बार पैदा होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की सारी आशंकायें समाप्त हो गयीं थी। हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों राक्षस मारे गये।
इसके बाद उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर करने के उपाय किए। दोनो भाई होश में आ गए। चित्रसेना भी वहां आ गई थी। हनुमान जी ने कहा- प्रभो ! अब आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए।
पर इसके लिए हमें इस नागकन्या की सहायता लेनी पड़ी थी। अहिरावण इसे बल पूर्वक उठा लाया था। वह आपसे विवाह करना चाहती है। कृपया उससे विवाह कर अपने साथ ले चलें। इससे उसे भी मुक्ति मिलेगी।
श्री राम हनुमान जी की बात सुनकर चकराए। इससे पहले कि वह कुछ कह पाते हनुमान जी ने ही कह दिया- भगवन आप तो मुक्तिदाता हैं। अहिरावण को मारने का भेद इसी ने बताया है। इसके बिना हम उसे मारकर आपको बचाने में सफल न हो पाते।
कृपा निधान इसे भी मुक्ति मिलनी चाहिए। परंतु आप चिंता न करें। हम सबका जीवन बचाने वाले के प्रति बस इतना कीजिए कि आप बस इस पलंग पर बैठिए बाकी का काम मैं संपन्न करवाता हूं।
हनुमान जी इतनी तेजी से सारे कार्य करते जा रहे थे कि इससे श्री राम जी और लक्ष्मण जी दोनों चिंता में पड़ गये। वह कोई कदम उठाते कि तब तक हनुमान जी ने भगवान राम की बांह पकड़ ली।
हनुमान जी ने भावा वेश में प्रभु श्री राम की बांह पकड़कर चित्रसेना के उस सजे-धजे विशाल पलंग पर बिठा दिया। श्री राम कुछ समझ पाते कि तभी पलंग की खोखली पाटी चरमरा कर टूट गयी।
पलंग धराशायी हो गया। चित्रसेना भी जमीन पर आ गिरी। हनुमान जी हंस पड़े और फिर चित्रसेना से बोले- अब तुम्हारी शर्त तो पूरी हुई नहीं, इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता। तुम मुक्त हो और हम तुम्हें तुम्हारे लोक भेजने का प्रबंध करते हैं।
चित्रसेना समझ गयी कि उसके साथ छल हुआ है। उसने कहा कि उसके साथ छल हुआ है। मर्यादा पुरुषोत्तम के सेवक उनके सामने किसी के साथ छल करें यह तो बहुत अनुचित है। मैं हनुमान को श्राप दूंगी।
चित्रसेना हनुमान जी को श्राप देने ही जा हे रही थी कि श्री राम का सम्मोहन भंग हुआ। वह इस पूरे नाटक को समझ गये। उन्होंने चित्रसेना को समझाया- मैंने एक पत्नी धर्म से बंधे होने का संकल्प लिया है। इस लिए हनुमान जी को यह करना पड़ा। उन्हें क्षमा कर दो।
क्रुद्ध चित्रसेना तो उनसे विवाह की जिद पकड़े बैठी थी। श्री राम ने कहा- मैं जब द्वापर में श्री कृष्ण अवतार लूंगा तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाउंगा। इससे वह मान गयी।
हनुमान जी ने चित्रसेना को उसके पिता के पास पहुंचा दिया. चित्रसेना को प्रभु ने अगले जन्म में पत्नी बनाने का वरदान दिया था। भगवान विष्णु की पत्नी बनने की चाह में उसने स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया।
श्री राम और लक्ष्मण, मकरध्वज और हनुमान जी सहित वापस लंका में सुवेल पर्वत पर लौट आये।

Ajai Dixit

रविवार, 16 अप्रैल 2017

🔯अदभुत रहस्य:- 🔯 जब मृत्यु की भी हुई मृत्यु🔱

।। ऊँ भं भैरवाय नम: ।।
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                                   डा.अजय दीक्षित
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||अदभुत रहस्य:- जब मृत्यु की भी हुई मृत्यु
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गोदावरी के पावन तट पे “श्वेत” नामक एक ब्राह्मण रहते थे । जो शिव जी के अनन्य भक्त थे,सदा शिव भक्ती में लीन रहते थे। उनकी आयु पूरी हो चुकी थी । यमदूत उन्हें समय से लेने आये , लेकिन यमदूत श्वेत के घर में प्रवेश नही कर पाये।

तब स्वयं ” मृत्यु देव”आये और श्वेत के घर में प्रवेश कर गये। श्वेत की रक्षा भैरव बाबा कर रहे थे। भैरव बाबा ने मृत्यु देव से वापस जाने के लिए कहा लेकिन मृत्यु देव ने भैरव बाबा की बात नही मानी और श्वेत पर फंदा डाल दिया।

भक्त पर मृत्यु देव का यह आक्रमण देखकर भैरव बाबा को सहन न हुआ । भैरव बाबा ने मृत्यु पर डंडे से प्रहार कर दिया । मृत्यु देव वहीं ठंडे हो गये  मर गये ।

मृत्यु की मृत्यु सुनकर यमराज आ गये उन्होंने श्वेत पर यमदंड से प्रहार कर किया। वहाँ पर कार्तिकेय जी पहले से ही मौजूद थे, जो श्वेत की ऱक्षा कर रहे थे। उन्होंने यमराज को मार गिराया और साथ में यम दूतों का संघार कर दिया । मृत्यु की सजा देने वाले यमराज की भी मृत्यु हो गयी।

यह देखकर सूर्य देव विचिलित हो गये क्यों की यमदेव सूर्य देव के पुत्र हैं। पुत्र को मरा हुआ देखकर  सूर्य देव ने भगवान शिव की आराधना की। भोलेनाथ प्रगट हुए, शिव जी ने नंदी के द्वारा गौतमी गंगा (गोदावरी) का जल मँगवाया और मरे हुए लोगों पे छिडकवाया तत्क्षण सबके सब स्वस्थ होकर उठ खडे हुए(जीवित हो गये) । इसी लिए शिव जी को विश्वनाथ कहा जाता है।

          DrAjai Dixit@gmail.com

       ||ऊँ नम: शिवाय भवो भवाय चा ।।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

🔯एब्रोमा आगस्टा औषधि🔯☑ अनिद्रा रोग , नासूर , मधुमेह , मूत्र रोग, कमजोरी , मानसिक कमजोरी तथा अन्नसारमेह

परिचय-
एब्रोमा आगस्टा औषधि अनिद्रा रोग ,
नासूर , मधुमेह , मूत्र रोग, कमजोरी , मानसिक
कमजोरी तथा अन्नसारमेह (एल्बुमीनिरिया)
रोगों को ठीक करने में बहुत उपयोगी है।
एब्रोमा आगस्टा औषधि निम्नलिखित लक्षणों के
रोगियों के रोग को ठीक करने में उपयोगी हैं-
भूख से सम्बन्धित लक्षण :- अस्वाभाविक भूख (किसी ऐसे
समय पर भूख लगना जिस समय पर भूख
नहीं लगना चाहिए।) जैसे- भरपेट भोजन करने के तुरन्त
बाद भी भूख लग जाना और खाना खा लेना। इस लक्षण
से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि बहुत उपयोगी है।
आमाशय से सम्बन्धित लक्षण :- भूख महसूस होने के साथ
बेहोशी जैसा अनुभव होना, कई प्रकार का भोजन करने
की इच्छा होना, पेट के अन्दर खालीपन महसूस होना।
इस प्रकार के लक्षण से पीड़ित रोगी का इलाज करने
के लिए एब्रोमा आगस्टा औषधि लाभदायक होती है।
पेट से सम्बन्धित लक्षण :- आध्मान (फ्लेट्युलेंस) अर्थात
पेट के फूलने पर एब्रोमा आगस्टा औषधि का उपयोग
लाभदायक है।
मल से सम्बन्धित लक्षण :- कब्ज रोग, काला मल होना,
गांठदार मल होना, ढेलेदार मल होना, शौच
क्रिया में बहुत तेज जोर लगाने के बाद मल निकलना।
इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के इलाज के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि उपयोगी है।
मूत्र से सम्बन्धित लक्षण :- दिन-रात अधिक मात्रा में
पेशाब होना, पेशाब करने के लिए बार-बार जाना , मुंह
का सुखना, अधिक प्यास लगना , पेशाब करने के बाद
पानी पीने की इच्छा करना, पेशाब करने के बाद
थकान महसूस होना, पेशाब से मछली जैसी बदबू आना,
पेशाब हल्का तैलीय होना, मधुमेह रोग होना, रात के
समय में बिस्तर पर पेशाब हो जाना, लिंग के
ऊपरी भाग (लिंग के मुख) पर सफेद रंग का घाव
हो जाना, यह पेशाब में अधिक मात्रा में
शर्करा हो जाने के कारण होता है तथा पेशाब करने में
असमर्थ होना (इनबिलिटी टू रिटैंन युरीन)। इन
लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि लाभदायक है।
मन से सम्बन्धित लक्षण :- रोगी का स्वभाव
चिड़चिड़ा हो, उत्तेजनशील स्वभाव वाला हो,
भद्दा मजाक करने वाला हो, याददास्त कमजोर हो,
हताश, निराश, धैर्य की क्षमता कम होना तथा अपने
स्वभाव को बदलने में असमर्थ होना। इन लक्षणों से
पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि लाभकारी है।
हृदय से सम्बन्धित लक्षण :- हृदय में कमजोरी आना,
धड़कन की गति तेज होना तथा बेहोशी जैसा अनुभव
होना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार के
लिए एब्रोमा आगस्टा औषधि बहुत उपयोगी है।
चर्म रोग से सम्बन्धित लक्षण : खुजली , जलन ,
गर्मियों में छोटे-छोटे फोड़े, नासूर
तथा सूखी त्वचा को ठीक करने में
एब्रोमा आगस्टा औषधि लाभदायक है।
श्वास संस्थान से सम्बन्धित लक्षण : खांसी के साथ
पीब जैसा बलगम निकलना, छाती में दर्द होना, सफेद
या पीला ढेलेदार थूक, ठण्डी हवा से लक्षणों में और
तेजी होना, शाम तथा रात के समय में लक्षणों में
तेजी होना तथा खांसते समय छाती में दर्द होना। इन
लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि बहुत उपयोगी है।
गर्दन तथा पीठ और शरीर के बाहरी अंगों से
सम्बन्धित लक्षण : गर्दन , पीठ तथा शरीर के
बाहरी अंगों में हल्का-हल्का दर्द होना, अंगों में
कमजोरी होना तथा गुर्दे में दर्द होना। इन
लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि बहुत उपयोगी है।
मुंह से सम्बन्धित लक्षण : पूरे मुंह के अन्दर रूखापन
होना, रोगी एक बार में बहुत
सारा पानी पी जाता है, लेकिन फिर भी मुंह के
अन्दर का रूखापन दूर नहीं होता है, जीभ साफ और
सूखी रहती है, होठ सूखे और नीले-नीले पड़ जाते हैं
तथा आवाज साफ निकलती है। इन लक्षणों को दूर करने
के लिए एब्रोमा आगस्टा औषधि बहुत उपयोगी है।
पुरुष से सम्बन्धित लक्षण : सम्भोग क्रिया करने में
कमजोरी तथा असमर्थता होना, सम्भोग क्रिया करने
के बाद बुरी तरह से थक जाना, वृषणों (अण्डकोष) में
सूजन तथा वह ढीले होकर नीचे की ओर लटक जाते हैं,
लिंग की उत्तेजना खत्म हो जाना। इन लक्षणों से
पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि बहुत उपयोगी है।
स्त्री रोग से सम्बन्धित लक्षण : मासिक धर्म
की अनियमिता , खून का काला हो जाना, खून
का थक्केदार रूप में हो जाना, शरीर में खून कम
या अधिक होना तथा खून पीला हो जाना, मासिक-
स्राव का अधिक मात्रा में होना , मासिकधर्म का रूक
जाना , कष्टार्तव (डाइमेनोरिया)-मासिक धर्म में
अधिक कष्ट होना, मासिकधर्म के समय में स्राव अधिक
होना, सफेद, पतला तथा पानी की तरह स्राव होना,
हरित्पाण्डू रोग (क्लोरोसिस), मासिकधर्म शुरू होने
से दो-तीन दिन पहले पेट के निचले भाग में दर्द होना,
हिस्टीरिया रोग तथा मासिकधर्म से सम्बन्धित कुछ
गड़बड़ी होना। इन लक्षणों से पीड़ित
स्त्रियों का उपचार करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि बहुत उपयोगी है।
नींद से सम्बन्धित लक्षण : आलस्य, अनिद्रा,
किसी कार्य को करने का मन न करना तथा सुबह के
समय में अच्छी नींद आना। इन लक्षणों से पीड़ित
रोगी का रोग ठीक करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि लाभदायक है।
ज्वर (बुखार) से सम्बन्धित लक्षण : रोगी को बुखार के
साथ ही शरीर सूख जाता है तथा गर्मी महसूस
हो रही हो तथा उसे अधिक प्यास लग
रही हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि लाभकारी है।
सिर से सम्बन्धित लक्षण : सिर में खालीपन महसूस
होना, सिर को इधर-उधर लुढ़काते रहने की आदत व
घुमरी होना, भारीपन तथा असुविधा महसूस
होना तथा अधिक चक्कर आने पर
एब्रोमा आगस्टा औषधि का उपयोग लाभकारी है।
आंखों से सम्बन्धित लक्षण : दृष्टि दोष (आंखों की देखने
की रोशनी कम होना) , पलकों में सूजन होना, भारीपन
महसूस होना, आंखें थक जाती हैं, आंखें बार-बार ऊपर
नीचे करना, आंखों में दर्द तथा जलन होना,
आंखों की नेत्रश्लेष्मा पीली पड़ जाना। इन लक्षणों से
पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि अधिक लाभदायक होता है।
कान से सम्बन्धित लक्षण : सुनने की शक्ति कमजोर
होना , कानों में भिनभिनाहट होना तथा कान
का बहना । इन लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग
को ठीक करने के लिए
एब्रोमा आगस्टा औषधि का उपयोग करना चाहिए।
यह बहुत अधिक लाभदायक होता है।
चेहरे से सम्बन्धित लक्षण : चेहरा मुरझाया हुआ लगना,
पीला चेहरा होना, चेहरे पर झुर्रिया पड़ना,
बूढ़ों जैसा चेहरा हो जाना, चेहरे पर खुजलाहट होने के
साथ-साथ जलन महसूस होना तथा चेहरे पर दरारे
पड़ना। इन लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने
के लिए एब्रोमा आगस्टा औषधि अधिक उपयोगी है।
गले से सम्बन्धित लक्षण : कंठ में खुश्की होना तथा जलन
होना, ऐसा महसूस होना जैसे की गले में कुछ अटक
गया हो तथा दर्द होने पर इस
एब्रोमा आगस्टा औषधि का उपयोग लाभदायक है।
मात्रा :
एब्रोमा आगस्टा औषधि की मूलार्क, 2x, 3x