गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

महराज दिलीप की गो सेवा


🎄🎄जय श्री राम 🎄🎄
महाराज दिलीप की गो सेवा 
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महाराज दिलीप और इन्द्र में मित्रता थी।एक बार राजा दिलीप स्वर्ग गये, लौटते समय मार्ग में कामधेनु मिली, किन्तु शीघ्रता के कारण दिलीप ने उसे देखा नहीं, न प्रणाम किया ।इससे रुष्ट हो कामधेनु ने शाप दिया --- 'मेरी संतान की कृपा के विना यह पुत्र हीन ही रहेगा ।'
           दिलीप को शाप का पता नहीं था ।किन्तु पुत्र न होने से वे स्वयं तथा प्रजा के लोग दुखी थे।वे महर्षि वसिष्ठ के आश्रम पर पहुँचे।महर्षि ने उन्हें नन्दिनी की सेवा करने का आदेश दिया ।
          महाराज ने आज्ञा स्वीकार कर ली।महारानी प्रातःकाल उस गौ की भलीभाँति पूजा करती थीं।वे गाय के साथ वन में जाते, हरी घास खिलाते, मक्खी-मच्छर उड़ाते और उसके शरीर पर हाथ फेरते।गौ के  बैठने पर बैठते, जल पीने के बाद जल पीते थे ।रात्रि में घी का दीपक जलाकर गौ के  समीप भूमि पर ही सोते थे ।एक दिन नन्दिनी तृण चरती हुई दूर निकल गयी।सहसा उन्हें गौ का चीत्कार सुनायी दिया ।उन्होंने जाकर देखा कि एक सिंह गौ को पंजों में दबाये बैठा है ।दिलीप ने धनुष उठाया और सिंह को मारने के लिए बाण निकालना चाहा किन्तु वह हाथ भाथे में ही चिपक गया ।
            इसी समय सिंह मनुष्य भाषा में बोला ----राजन्  ! व्यर्थ उद्योग मत करो।मैं साधारण पशु नहीं, भगवती पार्वती का कृपा पात्र हूँ ।मैं इस देवदारु वृक्ष की रक्षा करता हूँ ।जो पशु यहाँ आ जाते हैं, वे मेरे आहार होते हैं ।'
          महाराज दिलीप ने कहा --- माता के सेवक होने के कारण आप वन्दनीय हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।आप मेरे गुरु की इस गौ को छोड़ दें और बदले में मेरे शरीर को आहार बना लें ।
          सिंह ने कहा ---'आप नरेश हैं, आप एक के बदले सहस्त्रों गायें अपने गुरु को दे सकते हैं ।
          राजा ने कहा ----भगवन् ! मुझे शरीर का मोह नहीं ।मेरी रक्षा में दी हुई गौ मेरे रहते मारी जाय तो मेरे जीवन को धिक्कार है ।
          सिंह ने राजा को बहुत समझाया परंतु जब उन्होंने अपना आग्रह नहीं छोड़ा, तब वह बोला---'अच्छी बात  ! मुझे तो आहार चाहिए ।
          दिलीप का भाथे में चिपका हाथ छूट गया ।वे मस्तक झुका कर भूमि पर बैठ गये ।परंतु उन पर सिंह कूदे, इसके बदले आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी ।नन्दिनी का स्वर सुनायी पड़ा ---'पुत्र ! उठो।मैने तुम्हारी परीक्षा केलिए यह दृश्य उपस्थित किया था ।पत्ते के दोने में मेरा दूध दुहकर पी लो।तुम्हें तेजस्वी पुत्र प्राप्त होगा ।'
           दिलीप उठे।वहाँ सिंह कहीं था ही नहीं ।वे हाथ जोड़कर बोले ---'देवि ! आपके दूध पर पहले बछड़े का अधिकार है और फिर गुरुदेव का।उसके बाद मैं आपका दूध पी सकता हूँ ।
           दिलीप की बात सुनकर नन्दिनी और भी प्रसन्न हुई।आश्रम लौटने पर महर्षि वसिष्ठ भी सब बातें सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए ।गो सेवा के फल से उन्हें पराक्रमी पुत्र प्राप्त हुआ ।
जय गौ माता ।

                      डा.अजय दीक्षित

Dr Ajai Dixit@Gmail.Com

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