🎄🎄जय श्री सीताराम जी 🎄🎄
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दन्तवक्त्र और विदूरथ का उद्धार
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शिशुपाल, शाल्व और पौण्ड्रक के मारे जाने पर उनकी मित्रता का ऋण चुकाने के लिए मूर्ख दन्तवक्त्र अकेला ही पैदल युद्ध भूमि में आ धमका।वह क्रोध के मारे आग बबूला हो रहा था । शस्त्र के नाम पर उसके हाथ में एक मात्र गदा थी।परंतु लोगों ने देखा कि वह इतना शक्तिशाली है कि उसके पैरों की धमक से पृथ्वी हिल रही है । भगवान श्री कृष्ण ने जब उसे आते देखा, तब झटपट हाथ में गदा लेकर वे रथ से कूद पड़े। फिर जैसे समुद्र के तट की भूमि उसके ज्वार--भाटे को आगे बढ़ने से रोक देती है, वैसे ही उन्होंने उसे रोक दिया । घमंड के नशे में चूर करुषनरेश दन्तवक्त्र ने गदा तानकर भगवान श्री कृष्ण से कहा -- 'बड़े सौभाग्य और आनंद की बात है कि आज तुम मेरी आँखों के सामने पड़ गये । कृष्ण ! तुम मेरे मामा के लड़के हो, इसलिए तुम्हें मारना तो नहीं चाहिए; परंतु एक तो तुमने मेरे मित्रों को मार डाला है और दूसरे मुझे भी मारना चाहते हो। इसलिए मतिमन्द ! आज मैं तुम्हें अपनी वज्रकर्कश गदा से चूर-चूर कर डालूँगा।
मूर्ख ! वैसे तो तुम मेरे सम्बन्धी हो, फिर भी हो शत्रु ही, जैसे अपने ही शरीर में रहने वाला कोई रोग हो। मैं अपने मित्रों से बड़ा प्रेम करता हूँ, उनका मुझ पर ऋण है । अब तुम्हें मारकर ही मैं उनके ऋण से उऋण हो सकता हूँ । जैसे महावत अंकुश से हाथी को घायल करता है, वैसे ही दन्तवक्त्र ने अपनी कड़वी बातों से श्री कृष्ण को चोट पहुँचाने की चेष्टा की और फिर वह उनके सिर पर बड़े वेग से गदा मारकर सिंह के समान गरज उठा।रणभूमि में गदा की चोट खाकर भगवान श्री कृष्ण टस से मस न हुए । उन्होंने अपनी बहुत बड़ी कौमोदकी गदा सम्हालकर उससे दन्तवक्त्र के वक्षःस्थल पर प्रहार किया । गदा की चोट से दन्तवक्त्र का कलेजा फट गया । वह मुँह से खून उगलने लगा।उसके बाल बिखर गये, भुजाएँ और पैर फैल गये। निदान निष्प्राण होकर वह धरती पर गिर पड़ा।
जैसा कि शिशुपाल की मृत्यु के समय हुआ था, सब प्राणियों के सामने ही दन्तवक्त्र के मृत शरीर से एक अत्यंत सूक्ष्म ज्योति निकली और वह बड़ी विचित्र रीति से भगवान श्री कृष्ण में समा गयी।
दन्तवक्त्र के भाई का नाम था विदूरथ।वह अपने भाई की मृत्यु से अत्यंत शोकाकुल हो गया । अब वह क्रोध के मारे लंबी लंबी साँस लेता हुआ हाथ में ढाल तलवार लेकर भगवान श्री कृष्ण को मार डालने की इच्छा से आया। जब भगवान श्री कृष्ण ने देखा कि अब वह प्रहार करना ही चाहता है, तब उन्होंने अपने छुरे के समान तीखी धार वाले चक्र से किरीट और कुण्डल सहित उसका सिर धड़ से अलग कर दिया ।
इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने शाल्व, उसके विमान सौभ, दन्तवक्त्र और विदूरथ को, जिन्हें मारना दूसरों के लिए अशक्य था, मारकर द्वारकापुरी में प्रवेश किया ।
DrAjai Dixit@gmail . Com
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