|| जय सियाराम ||
डा.अजय दीक्षित
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।। हरी ऊँ शरणम् ।।
क्या श्री राम ने शूद्र तपस्वी शम्बूक का वध किया था?
कई बार एसा हुआ है कि हिन्दू धर्म के विषय में कुछ लोगों ने शम्बूक की हत्या (श्री राम के द्वारा ) की बात की है । राम जी कि हम पूजा करते हैं ,जिनको एक आदर्श पुरुष मानकर पूरा भारत पूजता है,वे इतने निर्दयी कैसे हो सकते हैं कि बिना किसी कारन एक शम्बूक का वध केवल मात्र इसलिए कर दें कि शम्बूक शुद्र थे.
सर्वप्रथम तो में यहाँ पर एक बात अवश्य बताना चाहूँगा कि यह प्रसंग भवभूती द्वारा रचित उत्तर रामायण के तृतीय चरण में शम्बूक वध में आता है. और यह काव्य रूप में है. काव्य में भावार्थ निकाला जाता है,और हजारों वर्ष पूर्व रचित उत्तर रामायण का भावार्थ कोई दिव्य ज्ञानी पंडित ही लिख सकता है।
मै भी कुछ लोगों से मिला. शम्बूक वध की,कई पुस्तके पढ़ी, तो एक निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस प्रसंग को ब्रह्मण व शुद्र का प्रसंग बताने वाले या तो महामूर्ख हैं या फिर देशद्रोही ।
शम्बूक वध के तीसरे भाग में आता है कि राम के प्रहार से शुद्र शम्बूक का वध हो गया.राम को बदनाम करने वाले केवल यही बात लोगों को बहकाने के लिए कहते हैं ।
और दलितों का धर्मांतरण करने वाली इसाई मिशनरियां तो इस प्रसंग की इस घटना को और भी मसालेदार बनाकर दलितों के आगे परोसती हैं।
वास्तव में यह प्रसंग इस प्रकार है कि राम के पास एक वृद्ध ब्रह्मण अपने १३ वर्ष के पुत्र का मृत शरीर लेकर आता है और राम से कहता कि शम्बूक ने मेरे पुत्र का वध अपनी तपस्या के लिए कर दिया है।
मै किसी तरीके से अपने पुत्र का शव बचा पाया हूँ। (यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि शम्बूक को शुद्र इसलिए कहा गया है कि वह इक नरबली वाला अनुष्ठान कर रहा था. )जिसमें उसे १००० ऩर बली देनी थी। इस अनुष्ठान के द्वारा वह समस्त त्रिलोकी पर राज्य करना चाहता था ।
अब इसी प्रसंग की पूरी बात करते है.।
प्रसंग है कि "राम शम्बूक के पास जाते हैं और उसका वध कर देते हैं ।
लेकिन राम जी ने शाम्बूक का बध नही किया।
रामजी ने तलवार उसकी गर्दन पे रखी ।
तलवार के दिव्य तेज से शाम्बूक के सारे अवगुण तथा आसुरी शक्ति जल के भस्म हो गई । और शाम्बूक श्री राम जी के चरणों में नतमस्तक हो गया।
और अपने किये गये कृत्यों पे पछिताने लगा।
शम्बूक एक दिव्य पुरुष के रूप में परिवर्तित हो गया तथा :----
अन्वेष्ट्व्यो यद्सी भुवने भूतनाथ: शरण्य
बोलता हुआ श्री राम के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है । राम जी उसको अपने विष्णु रूप का दर्शन कराते हैं। चतुर्भुज रूप के दर्शन करके शाम्बूक
ब्राहमण पुत्र को जीवनदान देने के लिए राम जी से निवेदन करता है ।
राम जी वृद्ध ब्रह्मण के पुत्र को जीवनदान देते हैं।
और शाम्बूक उस वृद्ध ब्राहमण को अपना पिता स्विकार करके जीवन भर सेवा करता है ।
पुरे प्रसंग को पढ़कर सारा सत्य सामने आ जाता है कि इसका क्या भावार्थ होना चाहिए.
१- शम्बूक को शुद्र किसी जातिवाचक संज्ञा के रूप में नहीं कहा गया है.
२- राम ने शम्बूक का वध नहीं किया, उन्होंने शम्बूक के शुद्र रूप का वध किया और शम्बूक को अपने वचनों से ब्रह्मण बनाया.
३- प्रसंग कहता है कि इस प्रकार वृद्ध ब्रह्मण का पुत्र भी जीवित हो गया,यानि कि शम्बूक ने उस वृद्ध ब्रह्मण को अपना पिता मान कर उसकी सेवा शुरू कर दी.
४- राम ने केवल वही कार्य किया जो कि उनके महान चरित्र के अनुरूप था.
अब आप ही बताएं कि पूरे प्रसंग की बात न करके प्रसंग की केवलमात्र एक पंक्ति को ही मसाला बनाकर परोसने वाले लोगों को आप क्या कहेंगे?
हमतो उन्हें बेधर्मी कहेंगे।
डा.अजय दीक्षित
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।। हरी ऊँ शरणम् ।।
क्या श्री राम ने शूद्र तपस्वी शम्बूक का वध किया था?
कई बार एसा हुआ है कि हिन्दू धर्म के विषय में कुछ लोगों ने शम्बूक की हत्या (श्री राम के द्वारा ) की बात की है । राम जी कि हम पूजा करते हैं ,जिनको एक आदर्श पुरुष मानकर पूरा भारत पूजता है,वे इतने निर्दयी कैसे हो सकते हैं कि बिना किसी कारन एक शम्बूक का वध केवल मात्र इसलिए कर दें कि शम्बूक शुद्र थे.
सर्वप्रथम तो में यहाँ पर एक बात अवश्य बताना चाहूँगा कि यह प्रसंग भवभूती द्वारा रचित उत्तर रामायण के तृतीय चरण में शम्बूक वध में आता है. और यह काव्य रूप में है. काव्य में भावार्थ निकाला जाता है,और हजारों वर्ष पूर्व रचित उत्तर रामायण का भावार्थ कोई दिव्य ज्ञानी पंडित ही लिख सकता है।
मै भी कुछ लोगों से मिला. शम्बूक वध की,कई पुस्तके पढ़ी, तो एक निष्कर्ष पर पहुंचा कि इस प्रसंग को ब्रह्मण व शुद्र का प्रसंग बताने वाले या तो महामूर्ख हैं या फिर देशद्रोही ।
शम्बूक वध के तीसरे भाग में आता है कि राम के प्रहार से शुद्र शम्बूक का वध हो गया.राम को बदनाम करने वाले केवल यही बात लोगों को बहकाने के लिए कहते हैं ।
और दलितों का धर्मांतरण करने वाली इसाई मिशनरियां तो इस प्रसंग की इस घटना को और भी मसालेदार बनाकर दलितों के आगे परोसती हैं।
वास्तव में यह प्रसंग इस प्रकार है कि राम के पास एक वृद्ध ब्रह्मण अपने १३ वर्ष के पुत्र का मृत शरीर लेकर आता है और राम से कहता कि शम्बूक ने मेरे पुत्र का वध अपनी तपस्या के लिए कर दिया है।
मै किसी तरीके से अपने पुत्र का शव बचा पाया हूँ। (यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि शम्बूक को शुद्र इसलिए कहा गया है कि वह इक नरबली वाला अनुष्ठान कर रहा था. )जिसमें उसे १००० ऩर बली देनी थी। इस अनुष्ठान के द्वारा वह समस्त त्रिलोकी पर राज्य करना चाहता था ।
अब इसी प्रसंग की पूरी बात करते है.।
प्रसंग है कि "राम शम्बूक के पास जाते हैं और उसका वध कर देते हैं ।
लेकिन राम जी ने शाम्बूक का बध नही किया।
रामजी ने तलवार उसकी गर्दन पे रखी ।
तलवार के दिव्य तेज से शाम्बूक के सारे अवगुण तथा आसुरी शक्ति जल के भस्म हो गई । और शाम्बूक श्री राम जी के चरणों में नतमस्तक हो गया।
और अपने किये गये कृत्यों पे पछिताने लगा।
शम्बूक एक दिव्य पुरुष के रूप में परिवर्तित हो गया तथा :----
अन्वेष्ट्व्यो यद्सी भुवने भूतनाथ: शरण्य
बोलता हुआ श्री राम के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है । राम जी उसको अपने विष्णु रूप का दर्शन कराते हैं। चतुर्भुज रूप के दर्शन करके शाम्बूक
ब्राहमण पुत्र को जीवनदान देने के लिए राम जी से निवेदन करता है ।
राम जी वृद्ध ब्रह्मण के पुत्र को जीवनदान देते हैं।
और शाम्बूक उस वृद्ध ब्राहमण को अपना पिता स्विकार करके जीवन भर सेवा करता है ।
पुरे प्रसंग को पढ़कर सारा सत्य सामने आ जाता है कि इसका क्या भावार्थ होना चाहिए.
१- शम्बूक को शुद्र किसी जातिवाचक संज्ञा के रूप में नहीं कहा गया है.
२- राम ने शम्बूक का वध नहीं किया, उन्होंने शम्बूक के शुद्र रूप का वध किया और शम्बूक को अपने वचनों से ब्रह्मण बनाया.
३- प्रसंग कहता है कि इस प्रकार वृद्ध ब्रह्मण का पुत्र भी जीवित हो गया,यानि कि शम्बूक ने उस वृद्ध ब्रह्मण को अपना पिता मान कर उसकी सेवा शुरू कर दी.
४- राम ने केवल वही कार्य किया जो कि उनके महान चरित्र के अनुरूप था.
अब आप ही बताएं कि पूरे प्रसंग की बात न करके प्रसंग की केवलमात्र एक पंक्ति को ही मसाला बनाकर परोसने वाले लोगों को आप क्या कहेंगे?
हमतो उन्हें बेधर्मी कहेंगे।
Dr Ajai Dixit@gmail.Com
जय श्री राम
जय हनुमान
जय श्री राम
जय हनुमान
घटना के सत्य होने का प्रमाण या फिर असत्य होने का प्रमाण क्या है? ये भी बतलाएं...
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